सबकी पहुंच से दूर हुआ शिवराज का रिकार्ड
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): भारतीय जनता पार्टी के किसी भी मुख्यमंत्री द्वारा रिकार्ड समय तक सत्ता में रहने का श्रेय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मिला है। शिवराज ने राज्य में आज सत्ता में रहते हुए 15 साल 11 दिन का समय पूरा कर लिया है। इस दौरान पार्टी के अंदर की राजनैतिक गतिविधियों और पार्टी की बाहर टूटे हुए विपक्ष ने शिवराज का भरपूर साथ दिया। शिवराज ने सत्ता का संचालन जिस खुबी के साथ किया है उसकी बांगी नहीं मिलेगी। समाज के सबसे छोटे वर्ग को मंच पर खड़ा होकर सत्ता शीर्ष के रूप में कैसे जोड़े रखा जा सकता है वो राजनीति में शिवराज से ही सिखा जा सकता है।
शिवराज सिंह चौहान के नाम पर जो रिकार्ड आज स्थापित हुआ है उसे संभवतः कभी नहीं तोड़ा जा सकेगा।15 वर्षो की अवधि के दौरान शिवराज सिंह को पार्टी के अंदर से पार्टी को कोई बढ़ी चुनौती नहीं मिली। उमा भारती के राजनैतिक आभा मंडल की समाप्ति के बाद वास्तव में पहले एक साल को छोड़ दे तो शिवराज पूरी तरह प्रभावी दिखते है। भाजपा के पितृ पुरुष श्री सुन्दरलाल पटवा के देहांत के बाद वैसे भी भाजपा की राजनीति किसी नेतृत्व की तलाश कर रही थी। शिवराज का चयन मुख्यमंत्री पद के लिए राजनीति में अनायास होने वाली एक घटना थी। जिस व्यक्ति ने कभी किसी कुर्सी पर बैठकर किसी प्रशासनिक पद का कार्य न किया हो उसे अचानक सत्ता सौपी जाए तो जो संभव हो सकता है वो सब कुछ शिवराज के साथ हुआ।
शिवराज ने धीरे-धीरे राजनीति की बारीकियों को समझते हुए अपनी महत्वाकांशाओं पर कड़ा नियंत्रण किया। वे अनुभव के साथ-साथ मध्यप्रदेश के विभिन्न समाजों और वर्गो को एक जुट रखने की दिशा में आगे बढ़ते चले गये। शिवराज के शासन काल को प्रशासनिक अधिकारियों के भरोसे चलने वाले सत्ता माना जाता है। इस राजनैतिक के संचालन में शिवराज का पूरा साथ राजनैतिक रूप से सक्रिय उनकी पत्नी साधना सिंह ने भी दिया है। साधना सिंह को मध्यप्रदेश की भाजपा राजनीति में भाभी जी का संबोधन मिला हुआ है। शिवराज की छोटी-मोटी समस्याओं और कई प्रशासनिक उलझनों में साधना सिंह की भूमिका को कोई नकार नहीं सकता। यही कारण है कि 15 वर्षो तक मध्यप्रदेश की सत्ता को कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, गोपाल भार्गव जैसा कोई भी बड़ा नेता कोई चुनौती नहीं दे सका।
15 वर्षो के उपरांत भाजपा के वरिष्ठ कहे जाने वाले इन नेताओं की राजनैतिक आयु अब लगभग समाप्त हो गई है। यह संभावना बहुत कम है कि उनमें से कोई कभी शिवराज को चुनौती देने के लायक भी बन सकेगा। दूसरे अर्थो में देखे तो वर्तमान में अपने अनुभव के आधार पर शिवराज ने मध्यप्रदेश की भाजपा राजनीति में जिस तरह टुकड़े-टुकड़े कर कब्जा किया है उसें संगठित करके कोई भी राजनेता आज शिवराज को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है।
शिवराज सिंह चौहान पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते है और जनता की समस्याओं में सीधे साक्षातकार कर उसका तुरंत हल निकालने में माहिर है। यही कारण है कि कांग्रेस की 15 महीने की सरकार घिरने के बाद जिस शिवराज ने मध्यप्रदेश में अपनी सत्ता को निरंतर किया उसके निर्णय और कार्य करने की प्रणाली कहीं अधिक स्थिर नजर आई। मध्यप्रदेश में भाजपा के नेताओं की मजबूरी है कि वे शिवराज की और साथ चले, उससे अलग हटकर कोई नई राजनीति शुरू करने का सीधा अर्थ अपने राजनैतिक जीवन को खतरे में डालना होगा। पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद नेतृत्व परिवर्तन की हल्की सी आहट कैलाश विजयवर्गीय के रूप में नजर आई थी। परंतु अति अंहकार के कारण विजयवर्गीय राजनीति की सभी दौडों से खुद-ब-खुद पराजीत होकर बाहर हो गये। वास्तव में शिवराज के इतने लम्बे कार्यकाल के लिये उनका भाग्य भी अधिक जिम्मेवार है। जब भी वे मुसीबत में पडे है कोई न कोई परिस्थिति समानांतर रूप से ऐसी निर्मित हुई है जिसमें शिवराज को मुसीबत से निकालने का एक आसान रास्त दे दिया। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण व्यापम जैसे महा शक्तिशाली घोटाले में शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार का सीधे-सीधे बचके निकल जाना माना जा सकता है। उम्मीद यही है कि राज्य का अगला विधानसभा चुनाव कमजोर कांग्रेस के सामने मजबूत शिवराज के मध्य होगा और रिकार्ड की यह अवधि इतना आगे जायेगी कि इसकी बाहरी लाइन को भी भविष्य में कोई नेता छूने की हिम्मत नहीं करेगा।