समीक्षा बैठकों में - कांग्रेस में बवाल
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के साथ ही कांग्रेस में विस्फोट की स्थिति बन गई है, पूरे देश में कांग्रेस दो राज्यों तक सिमित रह गया है। पिछले दिनों मिली हार की समीक्षा के लिए की गई बैठक एक औपचारिकता मात्र थी। हमेशा की तरह कांग्रेस नेतृत्व पर विश्वास व्यक्त करना और इशारों ही इशारों में कांग्रेस से ऊपर उठ कर स्वयं को स्थापित करने की कोशिश करना कार्य समिति के सदस्यों का मुख्य एजेंडा नजर आया। अंत में बहुत ही घटिया हिन्दी मे रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कार्य समिति की बैठक का विवरण मिडिया के सामने प्रस्तुत कर दिया। औपचारिकता की पूर्ति हुई अब कांग्रेस अगला चुनाव हारने के लिए पुनः प्रस्तुत है, पार्टी में न कुछ बदला था न बदलेगा। यह जरूर घोषित किया गया कि भविष्य में एक चिंतन शिविर अयोजित किया जायेगा। जिसमें कांग्रेस के पतन के कारणों और भविष्य में एक बेहतर रूपरेखा तैयार करने कि कोशिश की जायेगी।
वास्तव में कांग्रेस अब नजर नहीं आती, चाहे जी-23 समूह के नेताओं की चर्चाओं को देखले या कार्य समिति की। कांग्रेस का जो स्थायी चिंतन हुआ करता था उसका आभाव हो चुका है अपनी सारी बीमारियों के बावजूद सोनिया गांधी इस मरी हुई कांग्रेस को कब तक ढो पायेंगी इसमे भी शंका है। कांग्रेस कों शर्म, हया और झिझक जैसी चीजें गायब हो चुकी है, कांग्रेस में शामिल प्रत्येक नेता के लिए कांग्रेस अब लाभ की और ले जाने वाला एक साधन मात्र बचा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इन बुजुर्ग या अकर्मण्य नेताओं को कोई भी दूसरा राजनैतिक दल अपने अंदर प्रवेश करने नहीं देना चाहेगा। अपने आप को भारत का भाग्य विधाता मानने वाले कांग्रेस की समाप्त हो चुकी पीढ़ी के इन नेताओं के पदचिन्हों पर कांग्रेस का एक बड़ा युवा वर्ग भी चल रहा है, जिसे मालूम है डूबती हुई कांग्रेस की कश्ती में से जितना अधिक से अधिक कमा सकते हो कमा लो।
कांग्रेस के अंदर पार्टी की छवि को निर्मित करने वाले उप संगठनों या प्रभावशील व्यक्तियों की अब को पूछ-परख नहीं रह गई है। उत्तर प्रदेश चुनाव में पहली बार कांग्रेस के किसी वरिष्ठ नेता ने कितने लम्बे समय तक जमीन पर चलकर आम व्यक्तियों के मध्य रह कर जमीनी राजनीति का अनुभव किया है। वर्ना कांग्रेस को वह पीढ़ी अभी भी काबिज रहना चाहती है जो घर से दस कदम दूर जाने के लिये भी किसी वाहन की जरूरत महसूस करती है। वातानुकुलित कमरे में बैठकर और अच्छी अंग्रेजी बोलकर कांग्रेस के भविष्य को नहीं सुधारा जा सकता। यह तय माना जाना चाहिए कि भविष्य में होने वाले अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को कोई विशेष लाभ नहीं होने वाला है। भारतीय जनता पार्टी और अब आम आदमी पार्टी अपनी-अपनी चालों से कांग्रेस को घेरने के लिए प्रयाप्त है ।
आम मतदाता का मानस भी अब बदल चुका है, नेताओं की जी हुजूरी करने का युग क्रमशः समाप्त हो रहा है। और विशेषकर उन कांग्रेस के नेताओं का जो दिमागी रूप से दिवालिया होने के बावजूद भी प्रतिदिन इत्र लगाकर समाज के बिच अपनी झूठी शान को बघारने में लगे रहते है। आम आदमी को नेतृत्व चाहिए तो उन आम नेताओं का जिस पर उसकी पहुंच कभी भी कहीं भी हो सके, और इस सलिके को सिकने में आज के कांग्रेसी नेताओं को बरसों लगेंगे। कुल मिलाकर देश की एक बड़ी राजनीतिक पार्टी अपने ही कुकर्मो के कारण लुप्त होने की दिशा में अग्रसर है। राजनीति को जानने वाले वर्तमान में कांग्रेस के अस्तित्व को क्षेत्रीय दल के रूप में देखने लगे है। धीरे-धीरे यह स्वरूप में नगर पालिका और पंचायत चुनाव तक आकर सिमित हो जायेगा, जिस के दम पर कांग्रेस आजादी के आंदोलन की अपनी घिसी-पिटी कथाओं को बार-बार बेचने की असफल कोशिश करेगी।