कांग्रेस की घोर पराजय के बाद अब राज्यों में भी-चिंतन और क्रियाशील समूह बनेंगे
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने सबसे अधिक हा-हा कार कांग्रेस ने मचाया है। पंजाब में सरकार खोने के बाद गोवा और उत्तराचंल में नई सरकार न बना पाने के कारण कांग्रेस का नेतृत्व संकट में आया गया है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के समूह जी-23 ने भारत की राजधानी दिल्ली में बैठके करके दबाव डालने की नीति प्रारंभ कर दी है। वैसे भी समूचे देश में कांग्रस के नेतृत्व पर और उसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठ रहे है। इस तरह का विद्रोह 2023 में चुनाव में जाने वाले मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी प्रारम्भ होने के संकेत मिल रहे है।
प्रश्न यह है कि वह नेतृत्व कैसे हो सकता है जो अपने समूह को विजय दिला पाने में नाकाम हो। जिसके पास न कोई योजना हो न कोई नेतृत्व हो और इतना प्रभा मण्डल भी न हो कि वह भविष्य की चुनौतियों को प्रारम्भ में समझ सकें। इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढना कांग्रेस के प्रत्येक सदस्य ने हर स्तर पर प्रारंभ कर दिया है, जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक नेतृत्व में परिवारवाद और चैदराहट के विरुद्ध आवाजे उठनी शुरू हो गई है। वैसे भी कांग्रेस का अस्तित्व अब लगभग समाप्ति की और है और ऐसे कोई कार्यक्रम है नहीं जो कांग्रेस को जीवित करने के लिए भविष्य की योजना के रूप में सामने लाये जा सके। चंद कथित पढ़े-लिखे जैसे लगने वाले उन लोगों के हाथ में राजनीति सौप दी गई है जिनका भारत की जमीन से कोई वास्ता ही नही है। उनकी क्षमता केवल इतनी है कि वे तकनीकि की के माध्यम से बहुमत का निर्माण काल्पनिक रूप से कर सकते है, अच्छी अंग्रेजी बोल लेते है जिस भाषा का भारत के बहुसंख्य लोगों से कोई वास्ता ही नहीं है।
पूरे देश के साथ मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस के अंदर ही एक नये विचारशील समूह के जन्म की कथा प्रचलित हो रही है। लोग बताते है जी-20 के नाम से एक नया समूह विकसित किया जा रहा हैं। जिसमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मालवा, महाकौशल, विन्ध्य, बुन्देलखण्ड और मध्यभारत के प्रतिनिधियों के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर चल रहे जी-23 समूह के नियमों के अनुसार कार्य करेंगे। यह समूह प्रदेश के राजनैतिक समस्याओं और कांग्रेस की भयावह स्थिति को सुधारने के लिए समय-समय चिंतन करेंगा, नई नीतियों का निर्माण करेगा और प्रदेश कांग्रेस को बाध्य करेगा की जमीन से जुड़कर राजनीति करने वाले कार्यकर्ताओं को कांग्रेस प्रथमिकता दे।
इस समूह का निर्माण पूर्व मंत्रियों पूर्व पार्टी के पदाधिकारी रहे नेताओं के अतिरिक्त किसान, व्यापारी और उद्योगपति प्रतिनिधियों को मिलाकर किया जा रहा है। खबर तो यह भी है कि यह समूह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से मान्यता प्राप्त न हो के बाद भी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ और राजस्थान से अलग-अलग अपनी रिपोर्ट और विश्लेषण राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को प्रेषित करेगा। तीन राज्यों में बन रहे इन समूह मे शामिल लोग कांग्रेस हाई कमान के ऊपर प्रत्यक्ष रूप से इस बात का दबाव डालेंगे कि उम्मीदवारों के चयन से लेकर संगठन में पदाधिकारियों की पदस्थापना तक कांग्रेस को बेहतर बनाने वाले और विजय दिलाने वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाए। प्रदेश स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व नेताओं के परिवारों को आश्रय देने वाला और पोषित करने वाला न बन जाए, बल्कि कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता के आधार पर उनकी क्षमता के आधार पर जवाबदारी सौपी जाए।
इस तरह के समूह के निमार्ण की प्रक्रिया पिछले दो माह से चोरी-छिपे चल रही थी। मंत्रणाओं के माध्यम से यह तय किया जा रहा था कि 10 मार्च को परिणामों के आने के बाद उनकी समिक्षा कर इस तरह के प्रयासों को मूर्त रूप दिया जाए। इस समूहों के कुछ नेताओं का यह भी मानना है कि युवा कांग्रेस जैसे जीवन संगठन को हर राज्य में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। महिला कांग्रेस सिर्फ प्रदेश कांग्रेस कमेटी में बैठने वाली प्रदर्शन की वस्तु नहीं होनी चाहिए। पार्टी के वरिष्ठ हो चुके नेताओं के विचारों का सम्मान किया जाना चाहिए और उसके निचोड़ से ही नई नीतियों और कार्यक्रमों का निर्माण किया जाना चाहिए। अब कांग्रेस की बूरी स्थिति के बाद कांग्रेसी अपने स्वतंत्र विचारों को प्रकट करने के लिए समूह निर्माण कर दबाव की राजनीति पर जोर दे रहे है। उन्हें उम्मीद है कि पाताल में जा रही कांग्रेस को इन समूह के विचारों से एक नई गति मिलेगी।