सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
उत्तर प्रदेश में अंतिम चरण के चुनाव का समय नज़दीक आ गया है। इसके साथ ही देश के पांच राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया निर्धारित समय में पूरी कर ली जायेगी। निर्वाचन प्रक्रिया समाप्त होने के तुरंत बाद चुनाव परिणामों का लेखा-जोखा सर्वेक्षण के आधार पर टीवी चेनल में नज़र आने लगेगा। साथ ही पांचों राज्यों के उम्मीदवारों की धड़कनें 10 मार्च पर केन्द्रित हो जायेगी। जब चुनाव आयोग इन राज्यों के परिणाम घोषित करेगा।
उत्तर प्रदेश राज्य में इस बार के निर्वाचन में कांटे की लड़ाई बनी रही है। पर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस युद्ध में कांग्रेस न जीतने की उम्मीद के साथ मजबूती के साथ पूरे समय अपने चुनाव अभियान का संचालन करती रही। गांधी परिवार के नेतृत्व की इस जिद को इस पीढ़ी में प्रियंका गांधी ने आगे बढ़ाया है, यह अनुमान किया जाता है कि कांग्रेस 10 से 20 सीटों के मध्य कहीं जाकर विश्राम ले लेगी। उसका कारण यह बताया जाता है कि पूरे राज्य में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में उत्साह की बहुत कमी थी। इसके साथ ही भाजपा और समाजवादी पार्टी के मध्य हो रहे इस संग्राम में कांग्रेस अपनी भूमिका कही नहीं देख रही थी। बहुजन समाज पार्टी ने इन निर्वाचन में स्वयं को निष्क्रिय बनाये रखा प्रचार अभियान में भी बसपा अन्य दलों की अपेक्षा काफी पीछे रही।
परंतु कांग्रेस ने यह समझते हुए पराजय सामने खड़ी है आम मतदाता के सामने अपने पक्ष को मजबूती के साथ रखा प्रियंका गांधी ने लगभग पूरे राज्य का दौरा किया। गरीब, किसान, युवा गृहणियों विभिन्न जाति के नेताओं, पंथ एवं सम्प्रयादयों के नेताओं और अनुनाइयों से सीधे बात की। संभवतः यह प्रियंका गांधी का पहला अनुभव था जब वातानुकूलित कमरे से बाहर निकल कर वे आम व्यक्ति और उसकी समस्याओं को समझ पा रही थीं। उत्तर प्रदेश की राजनीति इस देश की राजनीति की नब्ज़ कही जाती है प्रियंका ने इस नब्ज़ पर हाथ रखा है। 
वास्तव प्रियंका गांधी विधानसभा चुनाव की आड़ में कांग्रेस के लिए उस सक्रिय और संवेदनशील नेतृत्व की पहचान बन रही थी जो आम व्यक्ति आम व्यक्ति और मतदाता को न सिर्फ जानता है बल्कि पहचानता भी है। यह उम्मीद की जानी चाहिये कि राजनीति का यह अनुभव कांग्रेस को एक मजबूत संवेदनशील और आम आदमी की भावनाओं से युक्त नेतृत्व दे पाने में सक्षम होगा। स्व. इंदिरा गांधी के बाद प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की और से जो प्रयास किया है उसके परिणाम निकट भविष्य में होने वाले राज्यों चुनाव पर अवश्य पड़ेंगे। अब प्रियंका को समझाने के लिए या यह कहे कांग्रेस नेतृत्व को समझाने के लिए किसी नोट की जरूरत नहीं पड़ेगी। नेतृत्व स्वयं समझ जायेगा कि सामने आ रही समस्या का निराकरण राजनैतिक दृष्टि से मतदाता की भावना के अनुरूप कैसे किया जाए।
प्रियंका गांधी इस पूरे चुनाव प्रचार के दौरान बनारस के कबीर मठ जैसे आश्रम में तीन दिन रूकी यह समाचार साधारण नहीं है। कबीर को समझ लेने का अर्थ इस देश की मूल भवनाओं को एक साथ आधे से अधिक समझ लेना हे। भारतीय लोकतंत्र जीस आधारशीला को स्व. इंदिरा गांधी के बाद खोज रहा था उसके आंशिक लक्षण स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में पूर्ण होते हुये नज़र आऐ थे। परंतु प्रियंका गांधी अपनी स्थायी राजनीति कीं पहली सीढ़ी में ही जनतंत्र के मूल आधार के इतने करीब पहुंच जायेंगी इसका अंदाज नहीं था। प्रियंका के लिए कांग्रेस अब विशिष्ट लोगों की नहीं आम लोगों की पार्टी बन जायेगी। यह भावनात्मक परिवर्तन कांग्रेस को नया जीवन देने के लिए और अपनी मान और प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए एक सुनहरा अवसर होगा। प्रियंका का उत्तर प्रदेश प्रवास एक राजनैतिक संयोग था यह नहीं कहा जा सकता पर इतने बड़े अभियान को एक योजना भी नहीं माना जा सकता। यह पूरा अभियान वास्तव में प्रियंका गांधी ने स्व-विवेक से परिस्थितियों के अनुसार व्यवहार करते हुए पूरा किया है। इसके परिणाम आगामी लोकसभा चुनाव में स्पष्ट रूप में नजर आएंगे और देश के बहुसंख्य चाटुकार नेताओं को अब कांग्रेस के मूल सिद्धांतों को और उसकी व्यवहारिक परिणीति को एक बार पुनः पढ़ना होगा तभी संभवतः वे कांग्रेस के भविष्य के नेतृत्व के साथ कदम ताल कर पायेंगे।