सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
कहते है राजनीति में उस वस्तु को अपना हथियार नहीं बनाना चाहिए जिस पर आप स्वयं नियंत्रण न कर सकें। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की आक्रमक हिन्दू राजनीति से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने भी विभिन्न स्तरों पर हिन्दू आस्थाओं और संत-महात्माओं को श्रय देना शुरू किया है। इसका परिणाम कांग्रेस को सार्वजनिक मंच पर मिर्ची बाबा के आक्रोश के रूप में झेलना पड़ा है। उल्लेखनीय है कि मिर्ची बाबा कांग्रेस की सत्ता में आने के पूर्व राज्य की राजनीति में वरिष्ठ नेता दिग्गिविजय सिंह के पक्ष में धार्मिक अनुष्ठान करने का काम करते थे।
हिन्दू राजनीति में कांग्रेस का प्रवेश कांग्रेस के लिए ही गले की फांसी बनता जा रहा है। भिण्ड जिले में कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की सभा में मंच में स्थान न मिल पाने के कारण मिर्ची बाबा उखड़ गये और उन्होंने अपने इस अपमान के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोविन्द सिंह को जिम्मेवार ठहरा दिया। इतना ही नहीं मिर्ची बाबा ने तत्काल दल बदलते हुए राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा से उनके आवास पर जाकर उनसे भेंट की और यह जाहिर कर दिया कि कांग्रेस संत-महात्माओं का आदर कर पाने में अक्षम है। उनकी घोषणा के अनुसार अब वे कमलनाथ से तब ही मिलेंगे जब गोविन्द सिंह उनके अपमान के लिए उनसे माफ़ी नहीं मांग लेते।
प्रश्न यह है कि मिर्ची बाबा को कमलनाथ के या कांग्रेस के राजनैतिक मंच पर जाने की जरूरत क्यों पड़ी। दूसरे शब्दों में कहे तो वे किस अधिकार से कमलनाथ के साथ कांग्रेस पार्टी का मंच साझा करना चाहते थे। मंच पर जगह न मिल पाने के कारण मिडिया के सामने इसे हिन्दू धर्म का अपमान और साधु-संतों की अवमानना उन्होंने कैसे घोषित कर दिया। यह घटना क्रम अचानक हुआ था और यह अभिव्यक्ति भी अचानक हुई या किसी की सोची-समझी राजनैतिक चाल के तहत इसे अंजाम दिया गया था। कमलनाथ की मध्यप्रदेश में पद संभालने के बाद राज्य के बुंदेलखण्ड क्षेत्र से एक दूसरी साध्वी रामसिया भारती ने भी कांग्रेस का दामन धामा था। जिला स्तर के नेताओं के षड़यंत्र के कारण वह बडामलहेरा चुनाव हार गई, पर उसकी उपस्थिति का अहसास इतने वर्षो में कांग्रेस में कभी नहीं हुआ। रामसिया भारती को पार्टी ने न कोई मंच दिया और नाही कोई महत्व। परिणाम यह है कि रामसिया स्वयं कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा की और मुड़ जाने के लिए बाध्य हो रही है। 
वास्तव में कांग्रेस हिन्दू धर्माचारियों फर्जी संतों का उपयोग अपनी राजनीति के लिए देश में कहीं नहीं कर पाई। संत-महात्माओं के नाम पर कुछ भगवाधारियों ने कांग्रेस को अपना जरूर लिया पर उसमें कांग्रेस का कोई भला नहीं हुआ। प्रियंका गांधी सार्वजनिक तौर पर सड़क पर नारियल फोड़ते हुए जुते पहने हुए देखी जा सकती है। कांग्रेस के नेताओं को यह ज्ञान ही नहीं है कि धार्मिक स्थालों पर आम मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए किन बुनियादी तैयारियों की जरूरत है। कांग्रेसी यह मानते है कि किसी देवी-देवता का मंदिर बना देने से यह अपनी पूजन करती हुई अपनी तस्वीर को सार्वजनीक करने के मात्र से हिन्दू मतदाता प्रभावित हो जायेगा। 
दूसरी और भाजपा धर्म के राजनैतिक मर्म को समझती है, उसे ज्ञात है कि किन साधु-संतों या फ़र्जी बाबाओं के भरोसे आम व्यक्ति पर कब क्या प्रभाव डाला जा सकता है। इसके लिए पार्टी धर्म को समझने वाले और उसका व्यवहारिक उपयोग सुनिश्चित करने वाले समूह से अलग से मंत्रणा करती है। वास्तव में धर्म का राजनीति में उपयोग कोई मजाकिया विषय नहीं है। यदि मिर्ची बाबा जैसे संतों के भरोसे कांग्रेस ने अपने भविष्य का निर्धारण प्रारंभ कर लिया तो पार्टी कोे मझधार में फ़सने के लिए तैयार रहना होगा। ऐसा नही है देवा बाबा से स्व. इंदिरा गांधी ने आशिर्वाद नहीं लिया था। स्वामी जगत गरू शंकराचार्या, स्वामी स्वीरुपा सरस्वती के सामने कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने बार-बार सीर नहीं झुकाया था। परंतु इस राजनैतिक चाल में एक गम्भीरता थी, जिसमें हिन्दू मतदाताओं के विचारों को कांग्रेस के पक्ष में मोड़ने के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी। धर्माचारियों के माध्यम से राजनीति का सत्यानाश जिस तरह हो रहा है उससे यही माना जाना चाहिए कि कांग्रेस हिन्दू संस्कारों की मदद तो लेना चाहती है पर उसके पास इस दिशा में कार्य करने के लिए योजना बनाने वालों की भारी कमी है।