सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के पुनर्गठन की कोशिश प्रारंभ हो गई है। अभी पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने में समय है पर भविष्य में अपनी पैठ को मजबूत करने के लिए कवायद तेज हो गई है। मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव लगभग 18 महीने बाद है, आज से ही कांग्रेस के भविष्य पर अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने के लिए कांग्रेस नेताओं द्वारा प्रयास प्रारंभ कर दिया गया है। 
वर्तमान में कांग्रेस पक्ष के नेता कमलनाथ की सत्ता की चुनौती देते हुए उनसे एक पद खाली कराकर उस पर अपना अधिकार जमाने की कोशिश के लिए षड़यंत्र शुरू हुए है। कांग्रेस दल के प्रदेश स्तर के नेताओं को इस बात के लिए सहमत किया जा रहा है कि वे हाई कमान को यह पुख्ता जानकारी दे कि विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष दोनों ही पदों पर एक साथ रह कर कमलनाथ कांग्रेस के पक्ष में न्याय नहीं कर पा रहे है। यही करण है कि राज्य में संगठन की गतिविधियां शून्य है और कांग्रेस की राजनैतिक गतिविधियां भी शून्य हो चुकी है। इन स्थितियों में भविष्य मे होने वाले चुनाव में दल का संगठित होकर खड़े हो पाना असंभव है।
पांच राज्यों के चुनाव जब समाप्त होंगे तो समूचे देश कि राजनीति जातिगत समीकरणों से पूरी तरह जकड़ी होगी। मध्यप्रदेश जैसे राज्य में पिछड़ा वर्ग, आदिवासी और अनु.जनजाति वर्ग के मध्य सत्ता और अधिकारो की दौड प्रारंभ होगी। इसमें सहयोगी समूह के रूप में अल्पसंख्यक वर्ग को भी शामिल किया जायेगा। वास्तव में मध्यप्रदेश में कांग्रेस अपनी पहचान कायम नहीं रख पा रही है, उसके पास न कोई चिन्ह है और नाही कोई नारा जिसे बुलन्द करके वह सामान्य मतदाता के सामने अपने तथ्यों को रख सके। भाजपा के हाथ 15 महीनों मे सत्ता सोपने के बाद कांग्रेस सक्रिय नहीं रह पाई, कांग्रेस के कई दिग्गज नेता इस दौर में लुप्त हो गये। परिणाम यह हुआ कि दमदार नेताओं के अभाव में पार्टी की राजनीति की पूरी बागडोर दिग्गिविजय सिंह और कमलनाथ के हाथों मे आ गई, स्वयं दिग्गिविजय मानते है कि चुनाव के लिहाज से उनकी सक्रियता पार्टी के लिए नुकसान देह होती है। संभवतः इसलिए उन्होंने विकल्प के तौर पर अपने पुत्र जयवर्धन सिंह का राजनैतिक उत्कर्ष तय किया है। जयवर्धन सिंह अपने छोटे से राजनीतिक जीवन में कमलनाथ मंत्रीमंडल में केबिनेट मंत्री के पद पर रहे थे या दूसरे शब्दों में कहे तो प्रदेश का सबसे अजूबा मंत्रीमंडल जयवर्धन सिंह को प्रोत्साहन देने के लिए एक मुख्यमंत्री और शेष 28 केबिनेट मंत्रियों का मध्यप्रदेश में पहली बार बना था। जयवर्धन वर्तमान में भी पूरी तरह दिग्गिविजय सिंह से संरक्षण में उनके मार्गदर्शन में अपनी राजनैतिक गतिविधियों का समय-समय पर संचालन करते है। उन्हें नियमित नेता के रूप में प्रदेश में वर्तमान में स्वीकार नहीं किया जाता। इसके बावजूद वे युवा है और मध्यप्रदेश में युवा कांग्रेस के एक दमकते हुए सूर्य है। यह बात दूसरी है कि पार्टी के भविष्य के संभावनाओं के स्तर पर उनका विवेचन अभी तक नहीं हो पाया है।
कांग्रेस में विकल्प के रूप मे फूलसिंह बरैया जो कभी बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर कांग्रेस में आये थे और विधानक जीतू पटवारी के नाम को कांग्रेस अध्यक्ष के विकल्प के रूप में दोहराया जा रहा है। यह बात अलग है कि ये तीनों ही नाम दिग्गिविजय सिंह शिविर के है और प्रदेश अध्यक्ष जैसी जिम्मेवारी के पद पर इनसे प्रभावी प्रदर्शन की उम्मीद नहीं रखी जा सकती, अभी कांग्रेस के अन्य गुटों से कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नाम आना शेष है। इस दौर में कमलनाथ मध्यप्रदेश में संगठन को अधीक मजबूत बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहे है। मध्यप्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र में जहा कांग्रेस साफ हो गई है वे पुर्न स्थापना के विशेष प्रयास करने जा रहे है, परंतु राजनीति के जानकारो का मानना है कि जमीनी स्तर पर कांग्रेस को स्थायित्व देने के लिए जिस योजना कौशल और उसके क्रियान्वयन की जरूरत है वह कमलनाथ नहीं दिखा सकते, इस पक्ष के लिए कमलनाथ हमेशा दिग्गिविजय सिंह पर आश्रित रहे है। परंतु पिछले दिनों प्रकाश मे आये दोनों नेताओं की एक वाक युद्ध ने कांग्रेस की अंदरूनी समीकरण बिगाड़ दिया दिये है। संभवतः इसलिए संशोधित कांग्रेस की परिकल्पना करने की जरूरत पड़ रही है। जो भी हो भविष्य के निर्णय हाई कमान की व्यवहारिकता और कुशलता के परिचायक होंगे।