सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
भारत में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के पहले ही कई अनुमानों और कयासों का बाज़ार गर्म हो गया है। किस दल के हारने या जीतने से राष्ट्रीय राजनीति में क्या परिवर्तन होगा और देश की नई राजनीतिक दिशा क्या होगी इस पर अनुमान लगाये जा रहे हैं। इतना ही नहीं देश के प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी के राजनैतिक भविष्य को भी अनुमानों की कसौटी में तोला जा रहा है। 
पांच राज्यों के चुनाव में मान लीजिए भाजपा पुनः बहुमत प्राप्त कर लेती है और स्वतंत्ररूप से सरकार बना पाती है तो क्या योगी राज्य के मुख्यमंत्री पुनः बनाये जायेंगे या भाजपा का दूसरा खेमा राजनाथ सिंह या किसी बड़े नेता पर आधारित हो भविष्य के लोकसभा चुनाव की योजना बनायेगा। तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि यदि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो क्या सिमित संख्या जितने के बाद बहुजन समाज पार्टी दबाव में ही सही भाजपा की सरकार बनाने में मदद करेगी। दूसरी और यदि अखिलेश जीते तो समाजवादी पार्टी की सरकार बन जायेगी। यदि जीत का अंतर कम रहा और सरकार बनाने के लिए बाहरी मदद की जरूरत पड़ी तो उवेसी या कांग्रेस अपनी जीती हुई सिमित सीट संख्या को अखिलेश की मदद के लिए प्रस्तुत करेंगे। उन परिस्थितियों में जब भाजपा जीतती है तो केंद्रीय सरकार को अपना वर्चस्व बनाये रखने में कोई परेशानी होती नहीं दिखती। यदि भाजपा हारती है तो उत्तर प्रदेश की पराजय राष्ट्रीय स्वयं संघ के देश व्यापी भविष्य के कार्यक्रमों पर कितना असर डालेगी क्या यह परिवर्तन प्रधानमंत्री के राजनैतिक भविष्य के लिए भी ख़तरनाक साबित हो सकता है।
उत्तर प्रदेश में भाजपा को जीत के लिए जो आधार चाहिए वह खिसक चुका है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे की रिहाई के बाद भी कोई बहुत बड़ा ब्राहम्ण समर्थन भाजपा के पक्ष में नहीं खड़ा हो रहा है। दूसरी और किसान, जाट, गुजर, और मुस्लमान वर्ग भाजपा के पक्ष में नज़र नहीं आता। यह माना जा रहा है कि 10 प्रतिशत मुस्लमान महिलाएं राज्य में मोदी सरकार के पक्ष में परिवर्तित हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो यह चुनाव परिणाम में प्रभाव डालने वाला एक बहुत बडा फेक्टर होगा। उत्तर प्रदेश की वर्तमान लड़ाई भाजपा विरुद्ध सपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन से है। प्रदेश में चल रही हवाएं यह स्पष्ट करती है कि भाजपा पुरानी स्थितियों को बनाये रखने में अक्षम प्रमाणित हो रही है। इसका जितना श्रेय मुख्यमंत्री योगी को जाता है उतना ही प्रधानमंत्री मोदी को भी। यह कहा जा रहा है कि सात साल की सत्ता के बाद भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व में परिर्वतन की सीढियां यही से शुरू होती है। पिछले दिनों जनता में कम हुए आकर्षण के कारण और आरएसएस के पारम्परिक एजेंडों को बरकरार न रख पाने के कारण मोदी और अमित शाह की साख पर गहरा प्रभाव पड़ा है। दूसरी और स्वयं भाजपा में भी एक बहुत बड़ी लोबी इस बात के लिए लगातार प्रयासरत है कि राष्ट्रीय राजनीतिक से गुजराती अस्तित्व को समाप्त किया जाए। 
चुनाव की दृष्टि से उत्तरांचल कांग्रेस और आम आदमी के मध्य संघर्ष की भूमि बना हुआ है। इसी तरह गोवा में भी चल रहे संघर्ष में भाजपा कही नहीं है, ऐसा ही कुछ हाल मणिपुर का भी सामने आता है। पांच राज्यों की चुनाव प्रक्रिया राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक राजनीति में एक नये परिर्वतन की शुरूआत कर सकती है। इन परिवर्तनो का प्रभाव वर्तमान की कई जानी-मानी हस्तियों, राजनैतिक दलों और सरकार के वर्तमान एजेंडें में पड़ना स्वाभाविक है। वास्तव में यह चुनाव 2024 में होने वाले लोकसभा के आम चुनाव की भूमि तैयार कर रहे है। एक बड़े महायुद्ध के पहले इन चुनाव के बाद के अंतराल का उपयोग राजनैतिक दल और उनके नेता स्वयं के व्यवस्थापन और व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए करेंगे, जिससे वर्ष 2024 के बाद राजनैतिक के सिद्धांत और परिभाषाएं पुनः बदली जा सके।