सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
राजनीति के मूल्यों के साथ अब किया जाने वाला खिलवाड़ परम्परागत राजनैतिक शैली को समाप्त कर राजनीति और माफ़िया करण के गठजोड़ की और खुले रूप से बड़ रहा है। सिद्धांतों और परम्पराओं पर आधारित राजनैतिक मूल्यों के लगातार गिरने से भारत जैसे राष्ट्र में एक बड़े असमंजस्य की स्थिति निर्मित होने जा रही है। प्रभावशाली राजनैतिक दल कानून को हथियार बनाकर माफ़िया को सहुलियत देकर जनतंत्र की परीक्षा लेना चाहता है। आज़ादी के बाद से ये सभी काम यदा-कदा लुपछिप के किये जाते थे, इसे बदनामी का मुख्य कारण माना जाता था, पर अब राजनीति इतनी निर्भीक हो गई है कि केवल चुनाव जीत की लिए वो सिद्धांतों को छोड़ अपने अस्तित्व को ही दांव पर लगाने जा रही है।
पिछले दिनों एक ख़बर ने व्यापक असर दिखाया था, बालात्कार और हत्या के आरोपी अपराधी राम रहीम को निर्धारित समय सीमा के पूर्व पेरोल पर छोड़ने की अनुमति दे दी गई। दूसरी घटना आज हुई जिसमें किसानों की हत्या के आरोपी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के पुत्र को हाईकोर्ट की एक बेंच द्वारा जमानत दे दी गई।
दोनों ही घटनाएं प्रथम दृष्टि में सामान्य नहीं लगती, अपराधी के रूप में प्रमाणित राम रहीम का व्यापक प्रभाव पंजाब और हरियाणा में है। ठीक चुनाव के पहले राम रहीम को पेरोल देना एक योजना के तहत ही किया गया है, ऐसा राजनीति जानने वालों का मानना है। राम रहीम के विरुद्ध लगाये गये आरोप किसी भी स्थिति में सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं किये जा सकते, परंतु उसके सामाजिक प्रभाव को देखते हुए किसी पक्ष द्वारा उसके मतदाताओं को प्रभावित करने की यह एक सफल कोशिश हो सकती है। अपने 21 दिन के पेरोल में राम रहीम उन समस्त गतिविधियों का संचालन करेगा जिससे वह अपने अनुनायियों का समर्थन किसी विशेष राजनैतिक दल को दे सकें।
यह घटना स्पष्ट करती है कि जेलों में बंद अपराधी अब राजनीति के लिए कितने महत्वपूर्ण हो चुके है। प्रभावशाली राजनीतिक दल अपनी समस्त मर्यादाओं को छोड़ कर इन अपराधियों के माध्यम से आम मतदाताओं को प्रभावित या भयभित करने के लिए कानून के साथ खिलवाड़ करने पर आमादा है। 
दूसरी और किसानों की हत्या के आरोपी के रूप में जेल में बंद आरोपी जिस पर उत्तर प्रदेश की पुलिस ने हत्या का षड़यंत्र, हत्या का प्रयास और हत्या करने के आरोप अपनी जांच के दौरान लगाये है को जमानत इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच द्वारा दे दी जाती है। अभी तक केंद्रीय गृह राज्यमंत्री को सरकार ने आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी मंत्री मंडल से अलग नही किया है। इसके पीछे तथ्य यह है कि उत्तर प्रदेश के ब्राम्हणों पर गृह राज्यमंत्री का व्यापक प्रभाव है और भाजपा ब्राहम्ण वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए जमानत जैसे षड़यंत्र में निष्क्रिय होकर शामिल हो रही है। ऐसा नहीं है कि अपराधियों का राजनैतिक उपयोग पहले किसी दल द्वारा नहीं किया गया, परंतु लोक-लाज की शर्म और जनता के प्रति ईमानदार छवि को बचाने के लिए अभी तक किसी ने इतना खुला दुत्साहस नहीं किया है। यह पहली बार है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव को अपने पक्ष मंे करने के लिए हर कानूनी और गैरकानूनी हथकंडे को पूरी तरह प्रयोग किया जा रहा है। भाजपा के लिए वैसे भी उत्तर प्रदेश में हालात अनुकूल नहीं है, अलग-अलग सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार गृहमंत्री के लड़के का जमानत पर रिहा होना राज्य के चुनाव में किसान मतदाताओं पर व्यापक विपरित प्रभाव डालेगा, जो राजनैतिक पंडित जाटों की मनोदशा को समझते है उनका तर्क है कि जाट अपनी उपेक्षा को और वर्तमान सरकार के इस षड़यंत्र को उत्तर प्रदेश, पंजाब हरियाणा, उत्तराचंल राज्य में वोटों के माध्यम से करारा जवाब देगा। यदि ऐसा हुआ तो यह भविष्य में षड़यंत्र करने वाले राजनैतिक दलों के लिए एक बड़ी शिक्षा होगी।