पाँच राज्यों के परिणामों का असर - म.प्र. में भी पडे़गा
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): जैसे-जैसे पाँच राज्यों में चुनावी शोर बड़ रहा है, अप्रत्यक्ष रूप से इसका प्रभाव मध्यप्रदेश के राजनैतिक वातावरण पर भी पड़ने लगा है। पाँच राज्यों में सबसे अधीक महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश के बदलते हुए राजनैतिक संकेत इस बार देश की राजनीति में परिवर्तन की छटपटाहट को स्पष्ट इंगित कर रहे हैं। अन्य चार छोटे-छोटे राज्यों में भी हवाओं के बदलने का रूख निरन्तर जारी है, इसका सीधा प्रभाव मध्य प्रदेश के राजनैतिक वातावरण में भी महसूस होने लगा है।
उत्तर प्रदेश वह राज्य है जो देश निर्माण के बाद से लेकर आज तक राष्ट्रीय राजनीति का निर्धारण करता है। इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव क्या जातिय विभाजन के आधार पर हो सकते है इस पर चर्चा पिछले छः माह से चल रही है। धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि हिन्दू-मुस्लमान का विभाजन करके संभवतः राष्ट्रीय राजनीति पर कब्जा कर लेने की पुरानी अवधारणा अब समाप्त हो रही है। उत्तर प्रदेश से मिल रहे संकेत कहते है कि जहां आपसी मतभेदों को बढावा देकर दंगे की स्थिति निर्मित कर भय के कारण वोट बटोर लिये जाते थे वो स्थिति इस चुनाव में नहीं आ रही है। उप जातिय विभाजन हमेशा की तरह प्रभावी हो सकता है किसानों की नाराजगी जाट समुदाय का विरोध परिणाम प्रभावित कर सकता है, पर चुनाव इस बार जातिय आधार पर नहीं किसान, मजदूर, बेरोजगार और प्रशासनिक लापरवाही के मापदण्डों पर ही लड़ा जायेगा। यह कारण भाजपा सहित अन्य राजनैतिक दलों को नई रणनीति बनाने के लिए बाध्य कर रहा है। उत्तरांचल जैसा राज्य उत्तर प्रदेश से अलग नहीं है समस्याओं का स्वरुप पहाडों की उपस्थिति के कारण थोड़ा बदल जाता है पर आम मतदाता अपने भविष्य की सुरक्षा को लेकर इस बार ज्यादा चिंतित है।
पाँच राज्यों के चुनाव परिणामों का व्यापक असर देश की राजनीति में पड़ना तय है। सीमावर्ती राज्य होने के कारण मध्य प्रदेश में यह परिणाम अपना व्यापक असर डालेंगे, वैसे भी कहा जाता है कि मध्य प्रदेश में चलने वाली राजनीतिक हवाओं का निर्धारण उत्तर प्रदेश से ही होता है। मध्य प्रदेश में पिछले 20 सालों से रूक-रूक कर सरकार चलाने वाली भाजपा को उत्तर प्रदेश की तरह ही कई प्रश्नों के उत्तर ढूंढने होंगे। राज्य में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं यथावथ बनी हुई है। सरकार की लाख कोशिशो के बावजूद अधिकारों का अतिक्रमण कर धर्म आधारित राजनीति का व्यापक प्रभाव इस राज्य में भी है। यह बात अलग है कि इस राज्य में कांग्रेस निष्क्रिय है और विपक्षी दलों के नाम पर किसी तीसरे राजनैतिक दल का अस्तित्व शून्य है।
कांग्रेस के अस्तित्व को एक रात में ईश्वर भी खड़ा नहीं कर सकता, कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की नवाबी शैली और कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा के कारण राज्य में कांग्रेस का अस्तित्व संकट में पड़ा हुआ है। जिन लोगों के कंधो पर कांग्रेस को जीवित करने का दायित्व है वे कथित प्रभावशाली नेताओं के रूप में सुरक्षा कर्मियों की एक बड़ी फौज लेकर पायलेट गाड़ी के साथ अभी भी राज्य में विचरण कर रहे है, इन स्थितियों में कार्यकर्ताओं का काम उन तक पहुंच पाना असंभव है।
एक संभावना यह हो सकती है कि राजनैतिक रूप से शून्य मध्य प्रदेश में तीसरे दल का उद्भव हो। वह दल जो आम व्यक्ति के साथ मिलकर हवाई नही जमीनी राजनीति तो कर सके। या फिर कांग्रेस के वर्तमान शीर्ष नेताओं को हाई कमान अधिकारहीन कर जमीन से जुड़े हुए नये नेतृत्व की खोज करें, उसे शक्ति दे और उसकी गतिविधियों को पूरा संरक्षण भी दे। इस तरह की कल्पना फिजूल है चुकी कांग्रेस का हाई कमान स्वयं बहुत कमजोर है, इसके उदाहरण पिछले एक साल की राजनीति के दौरान ही कई बार मिल चुके है। यदि तीसरे दल का उद्भव होता है तो यह तय है कि छोटे-छोटे वे दल जो विभिन्न जिलों के छोटे क्षेत्रों में अपना प्रभाव रखते है संयुक्त हो एक बड़े गठबंधन के रूप में परिवर्तित हो सकते है यह कोरी कल्पना नहीं है। कांग्रेस के अंदर इस तरह के प्रयासों को सत्य करने की कोशिश गोपनीय तरीके से प्रारंभ हो चुकी है। इसके बावजूद कुछ कांग्रेसी अभी भी हाई कमान पर आस्था रहे हुए है, वर्तमान संगठन के स्वरूप को मजबूत करने के बात सोचते है परंतु इसका क्रियात्मक परिवर्तन वर्तमान स्थितियों में असंभव है।