भूख है तो सब्र कर...
वृंदा मनजीत - क्या आपने मन में किसी भगवान का ध्यान कर उपवास करने का संकल्प लिया है? सप्ताह में एक दिन उपवास करते हो और कोई कुछ व्यंजन न खाने को कहते हैं उसे अवश्य खाने की इच्छा होती है, क्या मैं सही कह रही हूं न? एक बार मैंने अपनी बहन से पूछा कि यदि वह आज उपवास कर रही है तो नीबू पानी पी लेना ताकि कमज़ोरी न लगे। तो उन्होंने कहा, 'मैंने साबूदाने की खीचड़ी, आलू की सब्जी, शकरकंद, जीमीकंद, मुंगफली के लड्डु, राजगीरा की कढ़ी, राजगीरा के पराठे, सेब, केला, संतरे का रस, बादाम दूध आदि बनाया है।' उसने आगे बताया कि ‘फिर भी उसे चक्कर आ रहे थे क्योंकि दाल-चावल और पराठे नहीं खाए थे, तो डोक्टरने नीबु पानी पीने को बोल दिया है, इसलिए तु चिंता मन करना।’ इतना बताते बताते तो उसकी सांसें फुलने लग गई। क्या आपकी हालत वही है? उपवास के दूसरे दिन सुबह उठकर पसंदीदा व्यंजन खाकर ही संतोष मिला था?
आप एक सप्ताह में एक दिन उपवास करके हांफ जाते हैं, तो सोचिए, हमारे देश में लाखों लोग हैं जो रात को भूखे सो जाते हैं, इसलिए नहीं कि उन्होंने उपवास किया है, बल्कि इसलिए कि उनके पास खाने के लिए खाना ही नहीं है, और खरीदने के लिए पैसे।
विश्व इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने कहा है कि भारत में फसल उगाना कोई मुद्दा नहीं है क्योंकि भारत हर साल 225-230 मिलियन टन खाद्यान्न पैदा करता है, जो 2015-16 में बढ़कर 270 मिलियन टन था। बहुत सारा अनाज होने के बावजूद लोगों को भूखे रहना पड़े, यह कैसी विडम्बना है?
समस्या यह है कि हमारे पास अनाज, सब्जियां, फल, स्वच्छ हवा और साफ पानी जैसी बहुत सी चीजें हैं, लेकिन हम यह नहीं जानते कि उनका सही तरीके से उपयोग या वितरण कैसे किया जाए। और जो चीज मन को दुःखी करती है वह यह है कि हम किसी को भूखा देखकर भी उसकी उपेक्षा कर देते हैं। हमारी संवेदनाएं कुंद हो चुकी हैं और हम सोचते भी नहीं कि अगर समाज के चार-पांच लोग एक साथ मिल जाएं और उन वंचित लोगों को कुछ (अनाज, रोजमर्रा की चीजें) दें तो वे मुश्किल समय में अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
हमारे देश में विभिन्न स्तरों पर खाने-पीने की चीजों की बर्बादी हो रही है; जैसे कटाई, परिवहन, प्रसंस्करण, पैकेजिंग और खपत के साथ-साथ अधिकांश अनाज उचित भंडारण के अभाव में बर्बाद हो जाता है। सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों का स्थिर विचारों के साथ पालन करने से बहुत नुकसान होता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो सरकारी अधिसूचना में परिवहन द्वारा पूर्व में जमा की गई पदार्थ या वस्तु को एक स्थान पर अग्रेषित करने की व्यवस्था की जाये। अब अगर गेहूं, चावल, दालें या टाइल या लकड़ी का सामान आदि पहले आते हैं और खराब होने वाली सब्जियां या फल जैसे टमाटर, पालक, केला बाद में आते हैं जो जल्दी खराब हो जाते हैं परंतु डिलीवरी के समय से पहले आई वस्तु को सरकारी मानकों को मानते हुए पहुंचाने की सलाह दी जाती है। कहते हैं कि सरकारी अधिकारी अधिसूचना का पालन करें ऐसेमें जो चीजें खराब न हों उन्हें जल्द आगे बढ़ने देते हैं और तब तक आधी सब्जियां और फल खराब हो चुके होते हैं। लेकिन यह समझदारी इसी में हैं कि फल सब्ज़ियां भले ही बाद में आए हों परंतु उन्हें पहले आगे बढ़ाना चाहिए।
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि भारत में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी है। मानव जीवन के अस्तित्व के लिए भोजन आवश्यक है। इन्टरनेशनल फूड सिक्योरिटी एन्ड न्युट्रिशन ओर्गेनाइजेशन के अनुसार, भारत में 19 करोड से अधिक लोग कुपोषित हैं। यह भारतीय आबादी का लगभग 14-15% है जिसमें यह कहा जा सकता है कि भारत दुनिया में सबसे बड़ी कुपोषित आबादी का गढ़ बन गया है।
यह कहना भी जरुरी है कि संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भारत में उत्पादित लगभग 40 प्रतिशत भोजन विभिन्न तरीकों से बर्बाद हो जाता है। इस कारण भारत का हर साल एक लाख करोड़ रुपये खर्च होता है जिसका असर देश की जीडीपी पर भी पड़ता है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GSI) की बात करें तो भारत 88 देशों में 63वें स्थान पर है।
आज हम जलवायु परिवर्तन या प्रदूषण जैसे कई ज्वलंत मुद्दों का सामना कर रहे हैं जो मुद्रास्फीति के कारण अर्थव्यवस्था में कई कठिनाइयों का कारण बनते है। भोजन के महत्व को समझने और भोजन की बर्बादी को यथासंभव कम करने का प्रयास करने की आवश्यकता है जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है।
किसी भी कारण से खड़ी फसल के नुकसान को रोकने के लिए, परिवहन में संग्रहीत अनाज को आकस्मिक क्षति, प्रसंस्करण या पैकेजिंग के दौरान खराब होने से रोकना हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन अगर घर पर संग्रहीत या पका हुआ भोजन बहुत अधिक हो जाता है या किसी भी कारण से खराब हो जाता है तो उसे कचरे के ढेर में जाने से हम ही बचा सकते हैं। इसके लिए थोड़ी देखभाल और प्लानिंग की जरूरत होती है।
यदि आप हर माह राशन लाते हैं तो मॉल में या दुकान पर जाते समय एक सूची बना लें और अनुमानित वजन भी लिख लें ताकि अतिरिक्त सामान घर में न आ सके।
• घर में पका हुआ अतिरिक्त भोजन या गैर-ज़रूरी सामान ज़रुरतमंद को दे देना चाहिए।
• एक तरह से मौसम के अनुसार फल, सब्जियां या अनाज खाना चाहिए। हालांकि कई घरों में मटर, गाजर का हलवा, पाकी आम का रस, मेथी या धनिया या पुदीना जैसी चीजों को साल भर सुरक्षित रखने का प्रयास किया जाता है। हालांकि मौसमी फल और सब्जियां उसी मौसम में खाने चाहिए।
• जब सप्ताह की सब्जियों और फलों का उपयोग करने का समय आता है, तो जल्दी खराब होने वाली सब्जियों और फलों का उपयोग पहले करें।
भोजन को संरक्षित करने के तरीके
सब्जियां - धनिया, पुदीना, मेथी या पालक के पत्ते निकाल कर नमक या सोडा पानी से धोकर रुमाल पर सुखा लें। इसे टिशू में लपेटें और मेश बैग में रख दें तो यह लंबे समय तक ताजा रहेगा।
सब्जियां - नमी को सोखने के लिए शिमला मिर्च, खीरा, बैंगन जैसी सब्जियों को कपड़े के थैले में डालें।
आलू के साथ लहसुन डाल दीजिये ताकि आलू खराब ना हो जाये.
कच्चे आम को नमक के पानी में थोड़ी देर के लिए रखें ताकि यह लंबे समय तक अच्छा रहे।
गाजर को दोनों तरफ से काट लें और अधिक समय तक ताजा रखने के लिए एक एयरटाइट कंटेनर में रखें।
मीठी नीम के पत्तों को भूनकर एक एयरटाइट कंटेनर में रखें।
टमाटर को ताजा रखने के लिए उन्हें छेद वाले या जालीदार प्लास्टिक बैग में बैग में डाल दें।
अदरक और मिर्च का पेस्ट बनाकर कांच की बोतल में भरकर फ्रिज में रख दें।
दही में एक या दो चम्मच शहद डालकर रखें, दो-तीन दिन तक बिना फ्रिज के ताजा रहेगा।
तुर की दाल और चावल को तेल लगाकर रखेंगे तो उसमें कीड़े नहीं लगेंगे. दूसरे अनाज में कड़वे नीम के पत्ते डालें।
अनाज का संरक्षण
जैसे-जैसे फसल का मौसम आता है, पढ़ने और देखने के लिए बहुत सी खबरें आती हैं कि बारिश के कारण गोडाउन में रखा अनाज बर्बाद हो गया, चूहे के काटने से, कवक या कीटों के कारण बहुत सारा अनाज खराब हो गया। कई किसानों और दूध व्यापारियों को टीवी पर सब्जी को सड़क पर फेंकते, वाहनों के नीचे कुचलते या दूध के डिब्बे सड़क पर फेंकते देखा गया है क्योंकि सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी या उचित मूल्य नहीं मिला। ऐसे समय उन्हें अपने गरीब-भूखे भाई-बहनों की याद नहीं आती?
कई गोदाम हैं जिनमें वितरण की व्यवस्था के साथ अनाज का भंडारण किया जाता है। इन गोदामों का आकार सामान्य से बड़ा है। जो व्यापारी सामान खरीदने आता है, उसे अनाज लेने अंदर आने और सही भुगतान के साथ बाहर जाने की अच्छी व्यवस्था करनी पड़ती है।
इसके अलावा, कई छोटे व्यापारियों को अपने अनाज को बड़े गोदामों में रखना महंगा पड़ता है। ऐसे व्यापारियों के लिए सार्वजनिक गोदाम बनाए गए हैं। जहां वे कम समय के लिए अपने अनाज का भंडारण कर सकें ताकि कम कीमत पर अपना अनाज संभालकर रख सकें।
अन्य निजी गोदाम हैं जिनमें डीलर और वितरक सामान खरीदने के साथ-साथ ऑनलाइन शिपिंग और पैकिंग की व्यवस्था भी करते हैं।
सरकार बाजार भी तैयार करती है जहां थोक में अनाज का भंडारण किया जाता है और वहां से डीलर को आपूर्ति की जाती है।
बहुत कम गोदाम होते हैं जहां सामग्री को सुरक्षित रखने के लिए सही तापमान तय किया जाता है। जिसमें ताजे फूल, फल, सब्जी जैसी चीजों के लिए खास तरह का कोल्ड स्टोरेज बनाया गया है।
अगर हमने आपको घर के बने खाने को सुरक्षित रखने का तरीका बताया तो अब कुछ लोगों द्वारा शुरू की गई सेवा के बारे में जानना दिलचस्प होगा।
ये बात है गुड़गांव की। यहां की एक सोसाइटी के लोगों ने कम्यूनिटी फ्रिज लगा रखा है। फ्रिज में शाकाहारी और मांसाहारी सामान रखने के लिए अलग-अलग डिब्बे हैं। लोग अपने घर का बना खाना सुरक्षित रूप से पैक कर यहां रख सकते हैं। इसके उपर मांसाहारी या शाकाहारी ऐसे स्टिकर्स चिपकाए जाते हैं ताकि लेने आने वाले को पता चले कि उसे क्या लेना है।
ऐसा करने से न केवल कूड़ेदान में कचरे की मात्रा कम होती है बल्कि जरूरतमंदों को भोजन भी मिलता है।
कुछ जगहों पर केक, पेस्ट्री, बिस्कुट, चॉकलेट जैसी चीजें भी रखी जाती हैं ताकि जिनका जन्मदिन है वे ऐसी चीजें ले जा सकें। अहमदाबाद की बात करें तो गर्मियों में कई जगहों पर प्याउ रखने का रिवाज है। बड़े मटके और गिलास रखे जाते हैं। एक बार एक पति-पत्नी कहीं दूरसे आए और पानी मांगा। हाथ में पानी का गिलास पकड़ा ही था कि पत्नी को चक्कर आया और वह जमीन पर गिर पड़ी। वहां काम करने वाले स्वयंसेवकों में से एक ने पास की एक दुकान से तत्काल कोल्ड ड्रिंक दी, जिससे पत्नी को होश आया। यह कभी-कभी अत्यधिक गर्मी के कारण होता है। फिर वहां नींबू, चीनी और नमक रखना शुरू कर दिया ताकि अगर किसी को भीषण गर्मी में यदि चक्कर आए तो यह उनके लिए बहुत रामबाण साबित होगा।
यह बात आपको पसंद जरुर आएगी
यदि आपके घर में खाना बन गया और फिर कुछ मेहमानों के आने पर यह तय हुआ कि आप मेहमानों के साथ डिनर करने जा रहे हैं तो बनाए हुए भोजन का क्या करेंगे?
• दाल – दूसरे दिन गेहूं के आटे में नमक, मिर्च, हल्दी मिला लें। अब प्याज को बारीक काट कर उसमें डाल दें। चाहें तो हरी मिर्च और अदरक भी डाल सकते हैं। अब इस आटे को दाल से गूंदकर पराठा बना लें। घर के बने दही के साथे परिवार इसे खूब पसंद करेंगे।
• चावल का मूठिया - चावल को अच्छी तरह से मैश कर लें। इसमें गेहूं, बाजरा और बेसन का आटा थोड़ा थोड़ा डालें। अदरक, मिर्च, धनिया, नमक और एक चुटकी चीनी डालें। अगर आपको नींबू पसंद है तो आप इसे भी डाल सकते हैं। इस आटे के लंबे गुलाब जामुन की तरह गोले बनाएं और धीमी आंच पर फ्राई करें। स्वादिष्ट मुठिया हरे धनिये की चटनी के साथ स्वादिष्ट लगेंगे।
• चंद्रमुखी लड्डु - रोटी को क्रश कर लें। उसके चुरे के अनुपात में घी और गुड़ डालें। पूरे चुरे से लड्डु बना लें उसके ऊपर एक काजू डालें। न केवल बच्चे बल्कि वयस्क भी चंद्रमुखी लड्डु पसंद करेंगे।
• सब्जियां – यदि बची हुई सब्जियों का क्रीएटीव व्यंजन बनाना है तो सब्जि में फिर से तड़का लगाएं। इसे थोड़ा तीखा बनाने के लिये गरम मसाले डालिये। ताजी रोटी बनाकर इस गरमा गरम वेजिटेबल को रोटी पर लगाएं। इसके बाद उसका रोल बना लें। यदि रोटी खुलने का डर हो तो टुथपिक से सील कर दें। यह रोटी फ्रेंकी जैसी लगेगी और बच्चे बड़े चाव से खाएंगे।
• केले अक्सर पड़े रहते हैं और लगभग आखिरी दो या तीन में केले काले हो जाते हैं और गलने लगते हैं। ऐसे केले में कई गुण होते हैं।
1. इसे मैश करके इसमें आटा और मसाले डालकर पराठा बनाया जा सकता है।
2. इससे मिल्कशेक भी बनाया जा सकता है लेकिन इसे तुरंत पीना होगा। इसका स्वाद बेहतर बनाने के लिए इसमें बोर्नविटा या कॉफी या इलायची पाउडर और कुछ बादाम और काजू भी मिलाएं।
एक ब्यूटि ट्रीटमेन्ट भी है। नरम और काले रंग के केले में थोड़ी सी मुल्तानी मिट्टी डालें, एलोवेरा जेल और एक चुटकी चावल का आटा मिलाकर मिक्सी में डालकर मुलायम पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट को चेहरे/हाथों पर पैक की तरह लगाएं। सूख जाने पर ठंडे पानी से धो लें। आपकी त्वचा नरम मुलायम होगी।
आजकल वॉट्सएप पर कई विडियो आते हैं। इसी समय मुझे यह विडियो मिला जो मुझे लगा कि इस लेख के साथ सटीक जा रहा है इसलिए इसे यहां हूबहू पेश कर रही हूँ।
‘एक सर्वे के अनुसार देश में जितनी आबादी है उससे दोगुना खाना रोज बनता है। लेकिन फिर भी लोग भूख से मर रहे हैं और बच्चे कुपोषण के शिकार है। एग्रिकल्चर मिनिस्ट्री के हिसाब से पचास हजार करोड का खाना देश में हर साल गटर में बहाया जाता है। हां, यह उसी देश की बात है जहां अन्न को भगवान माना जाता है। और खाने के दाने को फेंकना हराम माना जाता है। एक ऐसा ओर्गेनाइजेशन जिसका नाम ‘भूख’ है उसके सर्वे के अनुसार करीब 20 करोड भारतीय रोजाना बिना भोजन के सोते हैं। 17 लाख बच्चे हर साल भूखमरी और कुपोषण से मर जाते हैं। देश की 45 प्रतिशत जमीन जो बंजर होने लगी है जहां वॉटर लेवल डाउन हो गया है उसका कारण है कुछ जमीनों से जंगल काट दिए गए हैं ताकि खेती की जा सके और लोगों का पेट भर सकें। लेकिन इस भारी कीमत पर हम जो अनाज उगाते हैं उसे खाते नहीं फेंक देते हैं। सोचिए, कितना नुकसान हो रहा है आपके खाने को वेस्ट करने की आदत से। 300 मिलियन तेल हम रोज जलाते हैं उस खाने को पकाने के लिए जो नालियों मैं बहा दिया जाता है।
यदि आप इन्सान है तो प्लीज राशन का सामान उतना ही खरीदें जितने की जरूरत है। ऑफर्स के चक्कर में ज्यादा कभी न लें क्योंकि वह कूडेदान में ही जाएगा। खाने का सामान हम भारतीय खरीदते हैं उसका 30 प्रतिशत सामान फेंक देते हैं। स्टेटिस्टिक्स को ध्यान में रखें, बाजार से सब्जी लेकर आते वक्त ध्यान रखें कि घर में कितनी इस्तेमाल होगी या कितनी वेस्ट होगी। हरी सब्जियों को पहले बनाकर खत्म करें अन्यथा फेंकने में जाएगी। दिन का खाना बच गया है तो रात में ही फ्रिज से निकालकर इस्तेमाल कर लें। दूसरे दिन का प्लान करेंगे तो खराब हो सकता है। रात में बचें तो उसका ब्रेकफास्ट कर लें। आफिस में या कहीं भी काम करते हैं वहां केन्टिन की सुविधा उपलब्ध हैं या होटल जहां आपकी पहचान हैं या किसी शादी की पार्टी में जहां खाना रात में बच जाता है तो किसी एनजीओ से मिलकर उस बचे खाने को गरीबों तक पहुंचा ने के लिए मेनेज किजिए। उन सबसे बडी बात देश के सभी युवाओं से विनती है कि जब कभी बाहर आउटिंग के वक्त कुछ खाने का कार्यक्रम बने तो घर में फोन जरुर लगाएं कि आज खाना नहीं खाउंगा वरना देश की मेहनत भी खाने के साथ नाली में जाएगी और साथ में आपकी मां की मनता भी। जहां अन्न का अपमान होता है वहां लक्ष्मी नहीं आती। जिस घर में जहां खाने की बेइज्जती होती है वहां बरकत नहीं होती।
इस स्लोगन को अपने दिमाग में उतार दें ‘उतना ही लें थाली में कि व्यर्थ न जाए नाली में।’’
तो अंत में, इस लेख के शीर्षक में दुष्यंत कुमार त्यागी द्वारा लिखी गई पंक्ति को समाप्त करते हैं।
भूख लगी है तो सब्र करो, रोटी नहीं तो क्या हुआ?
आजकल दिल्ली में हैं झेर-ए-बहस ये मुद्दआ
इसका अर्थ समझते हुए, आइए हम इस मामले को स्वयं उठाते हैं। केवल वातानुकूलित कमरे में बैठकर गरमागरम चाय पीते हुए गहन चर्चा करने की बजाय हम सब मिलकर कुछ करें ताकि हमारे समाज में कोई भूखा न रहे।