सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
देश के विभिन्न राज्यों में भाजपा से मुकाबला करने के लिए कई क्षेत्रीय दल जन्म ले रहे है। पश्चिम बंगाल के अंतिम अनुभव के बाद यह तय हो गया है कि इन दलों का अस्तित्व केवल डराने के लिए या अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए नहीं है। यदि यह दल अपनी पर आ जाये राज्य की सत्ता को भी अपने हाथों में लेने की क्षमता रखते है। इसे दूसरे अर्थो में कहें तो क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग राज्यों में भाजपा का विकल्प क्रमशः तैयार हो रहा है। पर राष्ट्रीय स्तर पर 2024 में भाजपा और नरेन्द्र मोदी से मुकाबला करने के लिए अभी तक कोई भी मैदान में नज़र नहीं आता। 
यदि यह मान भी लीजिये कि तब तक कई राज्यों के क्षेत्रीय दल राज्य जीतने के बाद एक गठबंधन बना लेंगे, और भाजपा को नुकसान भी पंहुचा सकेंगे तो भी देश में मजबूत शासन देने के लिए कोई ठोस विकल्प या आधार नहीं रह जायेगा। क्षेत्रीय दलों की सीमाएं अपने राज्य तक सिमित होती है, उनसे राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी पहल की उम्मीद नहीं की जा सकती। यह तय है कि 2024 में भाजपा से राष्ट्रीय स्तर पर टक्कर लेने के लिए क़ागज़ी तौर पर कांग्रेस ही एक मात्र विकल्प होगी। परंतु तब तक कांग्रेस राज्यों में धीरे-धीरे अस्तित्व खोते हुए निष्प्राण हो चुकी होगी। जैसे-जैसे समय गुजरता जा रहा है वर्ष 2024 का चुनाव विकल्प के अभाव में अलग-अलग कुनवों को जोड़कर लड़ा जाना प्रतीत होता है। इन राज्यों में तो कांग्रेस अब अपना अस्तित्व क्या ही बचा पायेगी, पर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी टूटी हुई कमर को सीधा करके खड़ा हो पाने का दुःसाहस वो कर सकेगी इसमें भी संदेह होना चाहिए। राजनैतिक दल होंने के नाते बुनियादी राजनीति की जो जरूरते हैं उन्हें समझ पाने में और पूरा कर पाने में कांग्रेस का नेतृत्व अक्षम है। जो कांग्रेस स्वाधीनता आंदोलन के समय देश की नब्ज़ पहचानती थीं, वह दिवाली रूप से इतनी दिवालिया हो चुकी है कि उसे स्वयं की मृत्यु का भी पूर्वाभाव नहीं हो रहा है। 
भाजपा भले ही राज्यों की प्रतियोगिता को हार जाये या उसमें कमजोर प्रमाणित हों, पर 2024 की लड़ाई के लिए राष्ट्रीय स्वंय संघ द्वारा बनाये गये फार्मूले के आधार पर वह अपनी दावेदारी भारी भरकम तरीके से रखेगी। अब तक की राजनैतिक चालों को देखते हुए यह संदेह कतई नहीं होना चाहिए कि यदि भाजपा आज 80 प्रतिशत अंकों के साथ 2024 में अजय है तो कांग्रेस केवल 15 से 20 प्रतिशत अंक लेकर अपने अस्तित्व पर आ रहे संकट से बचने के तरीके ढूढ़ रही है। भाजपा की हर चाल एक निश्चित समय के बाद परिणाम देने वाली है, जबकि कांग्रेस केवल कम्प्यूटर के भरोसे और चंद हवाई नेताओं के भरोसे सत्ता में पुनः वापसी के स्वप्न देख रही है। 2024 की लड़ाई कैसी होगी उसका परिचय आने वाले दिनों में पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद मिल जायेगा। पर यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि इन परिणामों के बाद भी कांग्रेस कुछ सिख सकेगी और बुनियादी तौर पर अपने भविष्य के विजय के लिए कोई ठोस कदम उठा सकेगी। 
आने वाले समय में सबसे बड़ा संकट यही सामने आने वाला है कि भाजपा की राष्ट्रीय सरकार के सामने राज्यों में प्रभुत्व रखने वाला बिखरा हुआ विपक्ष कितनी चुनौती बन सकेगा। वर्तमान गतिविधियों से यह स्पष्ट होता है कि आरएसएस में वर्ष 2024 कि तैयारियों के लिए नई ज़मीन बनाना शुरू कर दी है। आरएसएस का भरोसा भाजपा पर भले ही न हो पर भाजपा बाध्य है इस बात के लिए कि वो संघ के निर्देशों के आधीन ही प्रत्येक चुनावी कार्यक्रमों को अम्लीय जामा पहनाएं। पाँच राज्यों के चुनाव भविष्य की रणनीति की दिशा को बनाने में मददगार होंगे, और हमेशा के लिए देश की राजनीति से कांग्रेस के अस्तित्व को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी साबित होंगे।