80-20 अनुपात में भारत को बांटने की कोशिश
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): क्या समूचे भारत का परिदृश्य अब 80 और 20 के अनुपात में पहुंच चुका है। क्या भारतीयता की पहचान 80 और 20 के अनुपात में आकर खड़ी हो गई है। क्या बार-बार चुनाव के नाम पर लॉडीस्पीकर से निकलने वाला ज़हर अब 80 और 20 के अनुपात को राष्ट्रीय स्तर पर एक ठोस आधार प्रदान कर रहा है। क्या इस देश को दिशा देने वाले नेता अब इतने बौने और विचारहीन हो चुके है कि देश के पास 80 और 20 के अनुपात में बटने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया है। इन सभी प्रश्नों का उत्तर प्रत्येक भारतवासी को जो अभी तक निष्पक्ष है ढूंढना होगा। कहीं हम कठपुतली तो नहीं हो गये है जिसमें स्वयं अपनी डोर उन चालाक, धूर्त, बईमान और स्वार्थी लोगों के हाथ मे सोप दी है, जो भारत को अनुपात के आधार पर चलाने के स्वप्न देखते हैं।
बहुत दूर नहीं गुजरी है अभी 19वीं सदी। जहां तमाम विरोधाभास के बावजूद पड़ोसियों के घर से एक कटोरी शक्कर लेना चायपत्ती ले लेना या दो मुट्ठी आटा ले लेना संबंधों का मजबूत बनाने का उपक्रम होता था। इस पर न देने वाला घमंड करता था और न लेने वाला शर्म महसूस करता था। एक मोहल्ला होता था जो अलग-अलग परिवारों से मिलकर बन कर बनता था पर एक परिवार की तरह मोहल्ले के सभी घर सभी के सुख-दुख में बीमारी-आरामी में शामिल होते थें। मोहल्ला 80 और 20 के अनुपात में नहीं बनता था, मोहल्ला बनता था आत्मीय संबंधों से और परस्पर एक दूसरे के सम्मान से। इसे आप मोहल्ला कहें या गांव परिवार के बुजुर्ग और परिवार की संताने मोहल्लें की अमानत होते थे। कोई शर्म नहीं थी अपने परिवार के गुण-अवगुणों को दूर करने के लिए एक दूसरे से मदद लेने में।
80 अनुपात 20 यह फार्मूला आम आदमी ने नहीं दिया, आम आदमी आज भी उसी मोहल्ले के संस्कारों से जुड़ा हुआ है जहां मानवता बसती है। जहां धर्म का स्थान नहीं होता व्यक्ति और उसकी विनम्रता संबंधों का मुख्य आधार होती है। अनुपातों के आधार पर बांटने का यह सिलसिला उन्होंने से शुरू किया है जिन्हें हमने अपना नेता मानकर राष्ट्र की बागडोर उनके हाथों में सोपने का मन बना लिया था। हमें जिन्दा रहने के लिए अधिकार पूर्वक इस जिम्मेवारी को उनके हाथों से वापस लेना होगा वर्ना संदेह है 80 और 20 के अनुपात में बांटने वाले बुद्धिहीन, अकर्मणय, हिंसक और अपराधी ये तत्व 80 को भी अलग-अलग अनुपातों में बांटकर अपनी सत्ता की भूख को शांत करने की कोशिश करेंगे।
परिणाम होगा कि धीरे-धीरे व्यक्ति-व्यक्ति से कटता जायेगा और एक नऐ सम्प्रदाय का जन्म होगा जो आदम युग कि उस छुपी हुई कहानी का पुनः चित्रण होगा जहां इंसानी इंसान का गोश्त खा कर जिन्दा रहना पसंद करेगा। परिस्थितियां बदल रही हैं किसी दार्शनिक ने कभी कहा था कि भविष्य में प्रत्येक मनुष्य के शरीर में जन्म के साथ ही एक ऐसी चीप लगा दी जायेगी जो जीवन भर किसी तानाशाह के एक इशारे पर उसे क्रियाशील और अक्रियाशील बनाने के लिए पर्याप्त होगी। भविष्य के इस दार्शनिक चिंतन को आज महसूस करके देखियें न चाहते हुए भी कहीं एक अदृश्य चीप सभी राजनैतिक दलों द्वारा हर व्यक्ति के शरीर में प्रविष्ट कराई जा रही है और विचारों में 80 और 20 का अनुपात भरा जा रहा है। भारतीयों के मनुभावों और प्रवृत्तियों का अध्ययन करने वाले विद्वानों का हमेशा से यह मत रहा है कि व्यक्ति की जीवन शैली, विचार, रहन-सहन और कृत्यों को यदि सबसे अधिक कुछ प्रभावित करता है तो वह स्वयं व्यक्ति के अंदर बैठा हुआ उसका डर है। इसलिए इस देश में लगभग सभी धार्मिक, ग्रन्थों, विचारकों ने निडरता का संदेश दिया है। जो माहोल आज निर्मित किया जा रहा है उसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक भय बहुत बड़ी तादात में है। अस्थिरता की आशंका पर अब 80 और 20 का अनुपात व्यक्ति के सोचने की शक्ति को प्रभावित कर रहा है। शायद ही कोई इंसान यह सोच पाता हो कि 80-20 ही सही, है तो समूचा भारत एक ही। आज समाज में 80-20 की विगठन है तो कल यही बिखराव स्वजातीय बंधुओं और फिर परिवार तक भी पहुंचेगा। अंत में अकेले रह जायंेगे तो हम, जिनके पास दुःख-सुख में शामिल होने वाला वह मोहल्ला नहीं रहेगा जो हमारे आत्मबल को बनाये रखने मे मदद करता रहा है।