सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
देश की राजनीति में जितने प्रयोग उत्तर प्रदेश में हुए है उतने संभवतः किसी भी अन्य राज्य में नहीं हुए होंगे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो राष्ट्रीय राजनीति की परिभाषा बदल देने का दम केवल उत्तर प्रदेश में है। यूं ही नहीं कहा जाता कि उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय राजनीति की दिशा और दशा को निर्धारित करता है। यह दावा उत्तर प्रदेश की जनसंख्या, वोटों की संख्या या विधानसभा-लोकसभा की सीटों की संख्या के आधार पर नहीं किया जाता।
उत्तर प्रदेश के संदर्भ में जितने भी दावें प्रस्तुत किये जाते है आने वाले चुनाव को लेकर हो रही गतिविधियाँ भविष्य की राजनीति की संरचना करती दिख रही है। पिछले सात वर्षों से केन्द्र की राजनीति में कब्ज़ा किये हुए भाजपा ने जो राजनैतिक आधार तैयार किया था वह जातिय था, एक तरह उसे एक सरल गेम प्लान भी कहा जाता है। एक जाति को सामूहिक रूप से तैयार करके दूसरी जाति के प्रति असंतोष पैदा करना और फिर एक बड़े वर्ग के संरक्षक या नेता बनकर उनका समर्थन हासिल कर लेना अभी तक की राजनीति में भाजपा का खेल नजर आता है। राम मंदिर आंदोलन की शुरूआत से लेकर काशी होते हुए अब मथुरा तक पहुंचने की तैयारी भाजपा की 50 वर्षो की राजनीति को सत्ताधारी बनाने के लिए पर्याप्त थी।
वर्तमान में विधानसभा चुनाव के माहोल में उत्तर प्रदेश नें राजनीति की इस धारा को तोड़ दिया है। जाति विभाजन से आगे बढ़कर उपजाति विभाजन और उससे भी माइक्रो लेबल पर जाकर अति पिछड़ा समुह का निर्माण और उसके प्रभाव का प्रत्यक्षीकरण उत्तर प्रदेश ने ही किया है। यूं तो उत्तर प्रदेश एक पिछड़ा हुआ गरीब प्रदेश माना जाता है, पर इसमें दो राय नहीं कि राजनीति के रूप में इस प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति की चैतना राजनीति में देश के आम व्यक्ति के औसत से कही ज्यादा है। इस क्षेत्र का व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक है, मानसिक रूप से मजबूत है और श्रम करने में इसका कोई जवाब नहीं है। जो भी व्यक्ति उत्तर प्रदेश छोड़कर अपने काम की तलाश में किसी अन्य संभावना वाले प्रदेश में पहुँचता है, वहा राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से अपने प्रभाव को स्थापित करने में सफल रहा है। यह क्षेत्र मानवीय संवेदनाओं से भरपूर है, इस क्षेत्र के लोगों को लाख भड़का लिजिएं वें अपने स्वार्थो के लिए पीढ़ियों के अपने संबंधों और रिश्तों को कभी नहीं तोड़ेंगे। 
वर्तमान में उत्तर प्रदेश ने भाजपा के भ्रम को तोड़ना शुरू किया है। यही कारण है कि भाजपा में भगदड़ की स्थिति निर्मित होती जा रही है। वरिष्ठ नेता भी नहीं समझ पा रहे है कि बिगडती हुई परिस्थितियों को वे किस तरह संभाले। समाज के सबसे निचले वर्ग ने इस बार विद्रोह कर दिया है जिसे संभालने की तैयारी भाजपा के पास नहीं है। इसलिए अब राम मंदिर के बाद काशी विश्वनाथ और फिर मथुरा को केन्द्र में लाकर भगवान गिरी की राजनीति को ही आधार बनाया जा रहा है।
इस बार संघर्ष से कांग्रेस लापता है और भाजपा की टक्कर समाजवादी सहित पिछड़े हुए लोगों के छोटे-छोटे संगठनों को मिलाकर बनाये गये एक बडे़ं समुह से है। भाजपा को संभवतः यह कल्पना थी कि योगी के भगवा वस्त्र और केन्द्रीय भाजपा नेतृत्व की लच्छेदार बातें उत्तर प्रदेश को गुमराह करने और एक बार फिर उसे पाँच साल का समय इस राज्य में मिलेगा यह कल्पना धीरे-धीरे असंभव प्रतित होने लगी है। उत्तर प्रदेश का आम आदमी पिछले पाँच वर्षों दौरान भागवा वस्त्रों में किये गये योगी कार्यो का मूल्यांकन और मोदी के दावों का मूल्यांकन अपनी रोजी-रोटी को सामने रख कर कर रहा है। इस मामले में प्रचार माध्यम में चल रहे विज्ञापन कम से कम उत्तर प्रदेश में मतदाता की मानसिकता बदलने मे सक्षम नहीं है। 
एक दृष्टि में लगता है कि 10 मार्च को आने वाले पाँच राज्यों चुनाव परिणाम भारतीय मतदाता की बदलती सोच और देश में चल रहे एक व्यक्ति के शासन के विद्रोह में एक नया फरमान बर प्रस्तुत होंगे। जिसके बारे में भाजपा जानती है कि इन चुनाव में मिली हार 24 में दिल्ली पहुंचने का रास्ता आज से ही बंद कर देगी। संशय दोनों ही और से है और मतदाता जागरूक होकर हर राजनेता राजनैतिक दल की औकाद को भंलिभांति परिक्षण कर रहा है।