संभल के चलिए - 2022 में ...
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): एक रात में एक साल गुजर गया, हम 2021 से 22 में आकर खड़े हो गये। नये साल की नई चुनौतियों को आगाज़ हो गया। वास्तव में चुनौतियाँ तो पुरानी है बस समय गुजर गया है। आने वाला कल अपने साथ कोरोना के नये वेरिएंट को लेकर आया है। नये साल के पहले दिन माता वैष्णव देवी के दरबार में भक्तों के बीच मची भगदड़ में कुछ 12 से अधिक दर्शानार्थी अपनी जान गवां चुके है। ओमिक्रान का खतरा पूरे देश में क्रमशः बढ़ता जा रहा है। नया साल शुरू हो रहा है, इस साल में कोरोना अपने इस नये स्वरुप में कितना कहर ढायेगा कोई नहीं जानता।
बेरोज़गारी के अकड़े आने वर्ष में कम होंगे इसमें संदेह है, जिस तेजी के साथ देश के बुनियादी ढांचे में छेड़-छाड़ हो रही है लगता नहीं है कि युवाओं को रोजगार के लिए हम अधिक अवसर दे सकेंगे। केवल घोषणाओं को करके और बार-बार सपने दिखा कर हम जन असंतोष को दबाते रहेंगे या दूसरे अर्थो में कहे तो आने वर्ष के लिए टालते रहेंगे। क्योंकि समस्याओं का हल हमारे पास अब नहीं है, जब हल आज नहीं है तो आने वाले कल में उस हल की विस्तार की सम्भावना बहुत कम है। पूरे देश में मुफ्त अनाज का वितरण पाँच राज्यों के चुवाव तक नियमित है, उसके बाद फिर भूखे लोगों का आक्रोश बढेगा और अनाज का यह वितरण आगामी वर्ष तक के लिए फिर निरन्तर कर दिया जायेगा, क्योंकि लोगों के हाथ में काम न होने से उनकी क्रय करने की क्षमता समाप्त हो जायेगी। इस वर्ष में पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम देश के भविष्य का संकेत देंगे। आने वाले कल में भारत की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थितियाँ कैसी होगी ये परिणाम बतायेंगे। भारत की जनता अपने हितों के प्रति कितनी जागरूक है या मंदिर-मस्जित, हिन्दू-मुस्लामन, शमशान-कब्रस्तान जैसे मामले उसके आक्रोश को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है, यह इस वर्ष में पता चलेगा।
प्राकृतिक आपदाएं आती रहेंगी, क्योंकि हमने पर्यावरण को नष्ट कर दिया है। विकास के नाम पर हमने कांक्रीट एक जंगल खड़ा किया है जो कुछ उद्योगपतियों और धन कुबेरों के स्वार्थ को सिद्ध करता है और यह प्रक्रिया निरन्तर जारी रहेगी। इस दौरान प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता रहेगा और आपदायें अलग-अलग स्वरूप में क्रमशः दस्तक देती रहेंगी। आपदाओं से होने वाली इंसानी मौत पर हम मुआवजे का मरहम लगाकर महान बनते रहेंगे और आने वाला वर्ष भविष्य के विनाश के लिए एक नई कहानी लिखेगा।
भारतीय ही नहीं समुचे विश्व की संवेदनाएँ क्रमशः शून्य होकर तात्कालिक विषयों पर आधारित होगी। व्यक्ति-व्यक्ति के साथ अपने सम्पर्क और संबंधों को मजबूत बनाये रख सके शायद यही इस वर्ष की उपलब्धि होगी। समाज में हमने स्वयं इतनी दूरी बनानी शुरू कर दी है कि उन तमाम आदर्शो को जो व्यक्ति को भारतीय बनाकर जिंदा रखने के लिए प्रर्याप्त थे हम क्रमशः समाप्त करते जा रहे है। पाखंडी, पंडितो, महात्माओं, मौलवियों और पादरियों के जंजाल में हम अपनी भाषा संस्कृति तो खो ही रहे है। आने वाले भविष्य को एक ऐसे संकट में डाल रहे है, जहां मानवता की परिभाषा को पुनः बनाने में कई सौ साल लग जायेंगे।
वर्ष 2021 की सबसे बड़ी उपलब्धि यही थी कि हमने इंसानियत की कालीन में एक-एक तार को अलग करके उसे नामकरण कर दिया, एक तार को दूसरे तार के विरुद्ध खड़ा कर दिया। मानसिक विद्वेश 2021 में जिस चरम पर रहा उसने भारतीयता की परिभाषा को बहुत छोटा कर दिया। परिणाम यह है कि अब हम भारतीयों को वस्त्रों से पहचानते है, टोपियों से पहचानते है और उनकी इबादत के तरीकों के माध्यम से उनका नामकरण करते है। ये जरूर है कि हमने इस अलगाव को भी राष्ट्रवाद का नाम दे दिया। परिणाम कुछ भी हो 2022 समूचे विश्व के साथ भारतीयों के लिए भी एक चिंतन का वर्ष होगा। बहुत उम्मीद रखने की जरूरत नहीं है सभी ग्रह अनुकूल रहेंगे, कुछ तांत्रिक मानसिक उपायों से आप अपने विकास का मार्ग खोजने की कोशिश कर सकते है। पर कोशिश कीजिये कि कालीन में किये गये छेद और उससे बाहर निकले अलग-अलग तारों के मध्य अलगाव को ढाक कर कालीन को भारतीयता का रूप दिये जाने की कोशिश हम करते रहे। हमारा आने वाला भविष्य हमारे इस वर्ष की गतिविधियों पर बहुत आश्रित है। राजनेताओं की पीढियां बदल जायेंगी, राजनैतिक दलों के स्वार्थ विलुप्त हो जायेंगे, पर हमारी आने वाली पीढियां 2022 के हमारे कृत्यों के लिए कभी शर्मिंदा न हो इतना ही हम ध्यान दें, नव वर्ष आप सभी के लिए मंगलमय हो।