(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव निर्वाचन की यह सूचना राज्य निर्वाचन आयोग कल जारी कर सकता है। इसके साथ ही मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव निर्वाचन को लेकर समस्त नियमों एवं उपनियमों का पालन अनिवार्य हो जायेगा। अधिसूचना जारी होने के उपरांत राज्य शासन की चयनीत कार्यक्रमों पर विराम लग जायेगा और शहर, गांव और कस्बों में फेले हुये योजनाओं से संबंधित सभी विज्ञापन, पोस्टर निकाल दिये जायेंगे। मतदान को किसी भी स्तर पर कोई भी व्यक्ति प्रभावित न कर सके, यह देखना अब निर्वाचन आयोग का काम होगा।
निर्वाचन की यह प्रक्रिया अपने महत्वपूर्ण मोड पर आकर खड़ी हो गई है। अपने आप को जनहित कार्यक्रमों का एक मात्र श्रोत को दिखाने में भाजपा पूरी तरह कामयाब रही है। समाज के हर वर्ग, व्यक्ति और समूहों को लाभ देने के लिये न सिर्फ भाजपा ने कायक्रमों की घोषणा की बल्कि उनका व्यवहारिक क्रियान्वयन करके आम मतदाता के दिल में एक विशिष्ठ जगह बना ली है। दूसरी ओर ऐसा लगता ही कांग्रेस यह चुनाव एक औपचारिकता के कारण स्वयं को विपक्षी दल बनाये रखने के लिये लड़ रही है। कांग्रेस की सारी उम्मीदे इस बात पर कायम है कि नाराज़ मतदाता आखिर जायेगा कहां, अंतिम क्षणों में भाजपा के विकल्प के रूप में उसको कांग्रेस का ही चयन करना पडेगा। जब मतदाता इतना मजबूर है फिर कांग्रेस व्यर्थ में श्रम क्यों करें। कांग्रेस के किसी चाहने वाले उम्मीदवारों की लिस्ट अभी तक लंबित है, इसका प्रमुख कारण नई-नई हिन्दू पार्टी बनी कांग्रेस के अंदर फिर से विपक्ष का डर बैठ जाना है। अभी पितृपक्ष जायेंगे, कांग्रेस की सूचना जारी होगी, आंतरिक विद्रोह होगा उसे रोकने, दबाने या कुचलने की कोशिश होगी। इन सबके बावजूद कांग्रेस में आत्मविश्वास का स्तर बहुत ऊंचा है। मध्यप्रदेश के मतदाताओं को कांग्रेस अभी भी 1947 का मतदाता मान रखा हैं। जो राजनैतिक गतिविधियों को न समझने की कोशिश करता था और ना ही राजनेताओं की चालबाजियों को कभी चर्चा का बिन्दु मानता था। वर्तमान में अधिसूचना जारी होने के समय हालात यह है कि कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। यह तय है मतदाता उसे भारी बहुमत से जीता रहा है, ऐसा कांग्रेस को लगता है। दूसरी ओर भाजपा अपनी समस्त शक्तियों को विधानसभा चुनाव परिणामों को अपने अनुकूल बनाने में व्यय कर रही है। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश में निर्वाचन है इसमें संदेह नहीं। परंतु निर्वाचन की औपरारिकताओं को पूरा कर पाने में दोनों ही दल संकोच कर रहे है। परिणाम यह है कि कार्यकर्ता नियमित रूप से जितना उदासीन हुआ करता था उतना ही उदासीन है। निर्वाचन आयोग के सक्रिय होने के पूर्व तक राजनैतिक दल अपनेे ही उम्मीदवारों को लेकर संशय में पड़े है। ऐसी स्थिति में इसका परिणाम पर क्या असर पडेगा इसका अनुभव राज्य को पहली बार होने वाला है।