(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश की राजनैतिक स्थितियों में चुनाव के करीब आते-आते लगातार परिवर्तन के संकेत और कुटनीतिक बिसातों की उपस्थिति चुनाव को महत्वपूर्ण बनाती जा रही है। पिछले सात दिनों के दौरान कांग्रेस द्वारा बिछाई जा रही राजनैतिक बिसात के संकेत मिलने शुरू हो गये है। भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व में ही चुनाव के अंतिम चरण में किसी अज्ञात ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करने का संकेत दिया था। अब यह सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ है पिछले पांच वर्षो के दौरान जिस राजनैतिक संरचना को जन्म दिया है वो एक अभूतपूर्व चक्रव्यहू की तरह है।
पिछले सात दिनों से लगातार मिल रहे संकेतों के अनुसार कमलनाथ ने पिछले पांच वर्षो के दौरान 15 महीने सत्ता में रहने के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में परम्परागत शैली से एक अलग दिशा में ले जाने के लिये स्वयं की योजना पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। जहां कुछ दिन पूर्व भारतीय जनता पार्टी के नेता इस बात पर अश्वस्त थे कि वे अंतिम क्षणों में वे कांग्रेस को भी बाघ्य कर देंगे कि वो उनके दल की विजय यात्रा के मध्य रूकावट न बने। वहीं कमलनाथ ने सर्वेक्षणों का भी रहस्य धीरे-धीरे मिलने लगा है। जानकार बताते है कि मध्यप्रदेश में यू ही कांग्रेस विजय के स्वप्न नहीं देख रही उसके पीछे एक ठोस आधार है। कमलनाथ के पिछले पांच वर्ष अपने परिवार से दूर रह कर मध्यप्रदेश की राजनीति को एक नई शक्ल दी है। जिसका एहसास पारम्परिक राजनीति का विश्लेषण करने वाले लोगों के द्वारा किया जाना संभव नहीं है। कमलनाथ के निशाने में इस समय ग्रामीण स्तर तक का अंतिम कार्यकर्ता तक आ चुका है। अपनी शैली में काम करते हुये कमलनाथ चाहते है कि हर कार्यकर्ता हर बूथ तक शांति के साथ अपने कर्तव्यों को अंजाम दंे। राजनीति में सम्पर्क अब तक व्यक्तिगत माना जाता था, पहली बार राजनैतिक सम्पर्को को एक नई परिभाषा देने का काम किया जा रहा है। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव प्रबंधक के पद पर जमीनी नेता नरेन्द्र सिंह तौमर को जिम्मेवारी देकर मुख्यमंत्री पर पड़ने वाले चुनावी प्रचार एवं प्रबंधन के बोझ को कम करने की कोशिश की गई है। सर्वाधिक विवाद दोनों ही दलों में उन क्षेत्रों में सम्पर्क का है जिन्हें पिछड़ा ओर उपेक्षित माना जाता है। आदिवासी अल्प संख्यक अनु.जनजाति वर्ग में किस दल ने अभी तक कितनी पेठ बना ली है यह समझ पाना असंभव है। भाजपा के नेताओं ने स्वयं कांग्रेस की प्रस्तावित नई प्रचार एवं सम्पर्क नीति को विश्लेषित करना शुरू किया है। जानकार बताते है कि भीड़तंत्र को जोड़े बिना कमलनाथ ने मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बहुत बड़ा आकार ले लिया है। इस बार कमलनाथ की राजनीति पिछले बार की राजनीति से बिलकुल अलग नजर आयेगी। यह दावा किया जाना कि कमलनाथ स्वविवेक से अलग हटकर दबाव की राजनीति में कोई काम करेंगे संभव नहीं हैं। छिन्दवाडा की तरह ही कमलनाथ ने जिस तरह मध्यप्रदेश को अलग-अलग भाग एवं अंशों में विभाजित कर उसका पांच साल का विश्लेषण किया है, वह नई चुनावी पद्यति की ओर इशारा करता है। भाजपा की तरह कांग्रेस को भी यह ज्ञात है कि दल के अंदर कुछ तत्व पार्टी विरोधी गतिविधियों में सक्रिय होकर अंतिम क्षणों में चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते है। उन स्थितियों में इस आपातकालीन चुनावी संरचना को जन्म देना है इसकी योजना न सिर्फ बनाई जा सकती है बल्कि उसका परिक्षण भी किया जा चुका है। प्राप्त हो रही नई सूचनाओं के अनुसार कांग्रेस का यह दावा हवाई नहीं है कि वह राज्य में पूर्व बहुमत की सरकार की ओर बढ़ रही हैं। दांव पेचों का यह सिलसिला और नई राजनैतिक संरचना के परिक्षण का दौर चुनाव के मध्य में ही हो पाना संभव है । इन परिस्थितियों में यह नहीं मना जा सकता कि भाजपा के द्वारा बजाये जा रहे नगाड़ों के मध्य कमलनाथ कि अत्याधुनिक नवीन चुनाव प्रणाली राज्य में पूरी तरह असफल होकर भाजपा को आसान जीत की ओर बढ़ने देगी।