(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
पूरे प्रदेश में इन दिनों कांग्रेस 7 चरणों में कमलनाथ संदेश यात्रा निकाल रही है। यात्रा का पहला चरण भोपाल से दतिया तक प्रारंभ भी हो चुका है। इस संदेश यात्रा के माध्यम से कांग्रेस आम मतदाताओं को 15 महीनें में कमलनाथ जी द्वारा मुख्यमंत्री रहते हुये जनता के हीत में किये गये कार्यो के बारे में विस्ताव से बतायेगी। साथ ही यह भी स्पष्ट करेगी कि जनता के आशीर्वाद से जो एक बार पुनः कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना है इस कार्यकाल में कांग्रेस द्वारा क्या-क्या काम किये जायेंगे। 
वास्तविक स्थिति यह है कि कमलनाथ संदेश यात्रा राज्य के अलग-अलग हिस्सों में अब 15 महीनों के कार्यो को जनता तक पहुंचाने जा रही है। देश की वर्तमान राजनीति स्थितियों में जहां किसी काम को केवल सोचकर कल्पना में सिद्ध मानकर व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार किया जाता है। वहीं कांग्रेस को सरकार जाने के 45 माह बाद, 15 महीने के कार्यो के बारे में जानने के लिये आम जनता को अवगत कराने के लिये संदेश यात्रा का सहारा लेना पड़ा है।
संदेश यात्रा बहुत बड़ा राजनैतिक मुहिम नहीं है। इसे वह इबारत नहीं कह सकते जिससे मतदाताओं के विचारों में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन कांग्रेस के पक्ष में आयेगा। 45 महीने बाद कोई 15 महीने के इतिहास को जनता के हित में प्रमाणित करते हुये अचानक जुलूस लेकर प्रवचन करने दरवाजे पर खड़ा हो जाय, तो उस मुहिम की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। राजनैतिक क्षेत्रों में यह प्रश्न उठ रहा है कि यह यात्रा कमलनाथ संदेश यात्रा क्यों है। इसे कांग्रेस संदेश यात्रा या जनसंदेश यात्रा के रूप में निकाला जा सकता था। कांग्रेस को कमलनाथ संदेश यात्रा से ऐसा क्या हासिल होने वाला है जो आगामी चुनाव में उसकी लोकप्रियता को बढ़ा सके। वास्ताव में कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष होने के बावजूद समूचे मध्यप्रदेश में स्थानीय छत्रको के कारण समूचे नेता नहीं बन पाए। अपने गुट को मजबूत करने के लिये जिस तरह के प्रयास कांग्रेस जैसे राजनैतिक दल में होते है, कुछ वैसा ही प्रयास इस यात्रा के मध्यम से किया जा रहा है। कांग्रेस को इस समय जरूरत है उन ज्वलंत मुद्दों की जो मतदाता में उत्साह पैदा करने के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं के प्रति विश्वास पैदा कर सके। पिछले 18 साल की सरकार के दौरान कांग्रेस के नेताओं की एक बड़ी संख्या भाजपा के साथ मिलकर व्यवसाय करने में संलग्न पाई गई है। यह बात अलग है कि चुनाव को लेकर एक आंतरिक जनअसंतोष मतदाताओं के मध्य है जिसके कई कारण है। परंतु भाजपा यदि चाहे तो उन कारणों को अभी भी कमजोर या समाप्त करने की दिशा में कदम उठा सकती है। वर्तमान में कांग्रेस की ओर से चुनाव का संचालन प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष कमलनाथ और उनके राजनैतिक चाणक्य दिग्विजय सिंह के हाथ में है। पिछली परम्पराओं के अनुसार प्रदेश अध्यक्ष को किसी भी समस्या को समझने में अभी भी 30 सेकण्ड लगते हैं। जबकी उनसे मिलने आने वाले व्यक्ति को भोपाल पहुंचने में 30 घंटे लग जाते है। अनुमान लगाया जा सकता है कि इस तरह की मुलाकते कितना आपसी विश्वास और समर्पण एक दूसरे के प्रति पैदा कर सकती है। दूसरी ओर भाजपा मतदाताओं की उपेक्षाओं के बावजूद घर-घर सम्पर्क करने का अभियान संचालित कर रही है। यह बात अलग है कि आंतरिक विद्रोह और मतदाताओं की उपेक्षा का उसे हर कदम पर सामना करना पड़ रहा है। वास्तव में कांग्रेस को उन बुनियादी कार्यक्रमों की जरूरत है जो उसे मानसिकरूप से परेशान मतददाताओं के साथ खड़ा कर सके। परंतु इसके विपरीत हेरान परेशान मतदाताओं के मध्य कांग्रेस नेतृत्व का झंडा लेकर बिना उनके साथ खड़े हुये आगे बढ़ना चाहती है। राजनैतिक परिस्थितियां यह स्पष्ट करती है कि आगामी विधानसभा चुनाव दोभारी है। परिणाम बहुमत के आधार पर किसी भी पक्ष में चला जाये पर यह संभावना निरंतर कम होती जा रही है। एक दमदार संख्या बल के भरोसे कोई राजनैतिक दल क्या दावा कर पायेगा कि सरकार वह अपने दम पर संचालित कर रहा है। कांग्रेस की इस असमंजस की स्थिति का लाभ लेने की कोशिश भाजपा कर रही है। दूसरी ओर कांग्रेस के वो नेता जो पिछले 20 वर्षो के के दौरान व्यवसाय दृष्टि से भाजपा के साथ खड़े हुये थे, आज भी दामन छोड़ने को तैयार नहीं है। चुनावी गणित किस पक्ष मे जाता है वह संभवतः मध्यप्रदेश में पहली बार अंतिम क्षणों तक स्पष्ट नहीं हो सकेगा।