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भोपाल (एडवाइजर): हालांकि उनके अपने ही उन्हें "अस्थिर चित्त" बता चुके हैं!उनका मजाक भी बहुत उड़ाया गया है।कोई उनकी बात को गंभीरता से नहीं लेता है।लेकिन वे पिछले कुछ समय से बहुत ही गंभीर मुद्दे उठा रही हैं।पहले उन्होंने समाज के लिए सबसे घातक साबित हो रही शराब का मुद्दा उठाया था।अब वे शिक्षा और स्वास्थ्य की बात कर रही हैं।उन्हें लगता है कि इस सरकार के जो चार महीने बचे हैं उनमें बहुत कुछ किया जा सकता है।
 लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि उनकी सुनेगा कौन?
 आप ठीक समझे हैं..मैं मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की ही बात कर रहा हूं।वही उमा भारती जो 2003 में प्रचंड बहुमत से बीजेपी को प्रदेश में सत्ता में लाईं थीं। और 9 महीने में ही उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।उसके बाद से अब तक  वे राजनीति के वियाबान में भटक रही हैं।हालांकि उन्हें मोदी सरकार में जगह मिली थी।लेकिन वे कुछ खास नहीं कर पाईं।करीब 4 साल से वे बिल्कुल खाली हैं।
 उमा भारती ने दो साल पहले प्रदेश में शराबबंदी का मुद्दा उठाया था।इसके लिए उन्होंने धरना दिया।प्रदर्शन किया।शराब की दुकान पर पत्थर भी फेंके!उनके लंबे आंदोलन के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनकी बात तो मानी लेकिन बस कहने भर को।पर वे उस पर भी "खुश" हो गईं थीं।
 लेकिन इस बार उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अतिगंभीर मुद्दों को उठाया है।उनका मानना है कि प्रदेश  में स्थिति भयावह है।लेकिन वे यह भी कह रही हैं कि अगर सरकार चाहे तो अगले चार महीनों में भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
 उमा पिछले दिनों बीमार पड़ी थीं।अस्पताल भी गई थीं।उसी अनुभव के आधार पर उन्होंने शिवराज सिंह को ट्वीट करके स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान देने का अनुरोध किया है।
 उमा ने लम्बा ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा है - प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में भयावह अंतर ने मुझे बेचैन कर दिया है। जो हाल प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के अंतर का है वही सरकारी और प्राइवेट स्कूलों का भी है।गरीब आदमी न प्राइवेट अस्पताल का बिल भर सकता है और न ही प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों की फीस भर सकता है।
 उमा का कहना है कि यह रहस्य की बात है कि गरीबों को यह पता ही नही है कि सरकारों की ओर से उन्हें कोई रियायत दी जा रही है।जबकि केंद्र और राज्य सरकार ने उनके लिए बहुत सारी रियायतें दी हैं।
 उमा ने अपने स्वभाव के विपरीत बहुत ही गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है - हमारी सभाओं पर तो करोड़ों खर्च हो रहे हैं।उधर सरकारी अस्पतालों के आईसीयू और बर्न यूनिट में एसी न होने से गरीब लोग,खासकर महिलाएं और बच्चे तड़प रहे हैं!यह असमानता हमारे लिए शर्मनाक है।
 पूर्व मुख्यमंत्री ने नेताओं और सरकारी अफसरों से यह अपील भी की है कि वे अपना इलाज सरकारी अस्पतालों में ही कराएं।
 हालांकि उमा को लगता है कि चुनाव के बाद सरकार तो बीजेपी की ही बनेगी और उसमें उनका पूरा सहयोग भी रहेगा। उनका यह भी मानना है कि अगले 4 महीनों में भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
 लेकिन चुनाव के बाद पूरा प्रयास शिक्षा और स्वास्थ्य में अमीर और गरीब के बीच इस भयानक फर्क को दुरुस्त करने में ही लगाना होगा।
 हालांकि शराब बंदी की उमा की मांग को शिवराज सिंह ने शराब की दुकानों के साथ चलाए जाने वाले अहातों को बंद करके टरका  दिया था।फिर भी उनका कहना है कि 1980 में जैसा सुकून मुझे मेरी मां से मिला था वैसा ही सुकून नई आबकारी नीति बना कर बड़े भाई मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने दिया है।हालांकि उन्होंने 1980 में मां के साथ के अनुभव की वजह का खुलासा नहीं किया है।
 यह अलग बात है कि उमा की शराब बंदी की मांग के दौरान ही शिवराज सरकार ने देसी और विदेशी शराब की दुकानों पर दोनों तरह की शराब बेचने का फैसला करके दुकानें दुगुनी कर दी थीं।लेकिन उमा खुश तो बात खत्म!
 उमा का दावा है कि शिवराज सिंह चौहान उनके बड़े भाई हैं।शिवराज सिंह चौहान ने भी 5 दिन पहले ही यह कहा था कि उमा भारती उनकी पहली लाडली बहना हैं।राज्य में महिलाओं को एक हजार महीना देने की अपनी घोषणा पर अमल के पहले शिवराज ने उमा के घर जाकर,उनके पांव छूकर आशीर्वाद लिया था।उमा ने भी उन पर फूल बरसा कर आशीर्वाद दिया था।
  इन भाई बहन के "आपसी प्यार" की बात भी अक्सर होती रहती है।
 वैसे अपने देश में भाई बहन की कई जोड़ियां मशहूर हुई हैं।जिनकी मिसाल दी जाती है।जैसे विष्णु और पार्वती की जोड़ी।कृष्ण और सुभद्रा की जोड़ी।उनका द्रोपदी से भी ऐसा ही रिश्ता था।
 बात रावण और सूर्पनखा की भी होती है।अपनी इसी बहन की नाक के लिए रावण राम से भिड़ा और अपना सर्वस्व उजड़वा बैठा।
हिरणाकश्यप और होलिका के चर्चे हर साल होली के मौके पर होते हैं। होलिका सब कुछ जानते हुए भी अपने भाई के कहने पर प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई थी।
 वैसे देवकी और कंस भी भाई बहन ही थे!
 ये उदाहरण पुराने हैं।लेकिन कलयुग की इस भाई बहन की जोड़ी की बात कुछ अलग ही है। भाई बहन के पांव छूकर आशीर्वाद तो लेता है लेकिन बहन की बात शायद नही सुनता।यही वजह है कि बहन को ट्वीट के जरिए अपनी बात कहनी पड़ती है।गंभीर मुद्दे बताने के लिए न वह भाई के पास जाती हैं और न भाई उनके पास आते हैं।दोनों के बीच बातें अक्सर पत्र और ट्वीट के जरिए ही होती हैं।
 वैसे अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है।17 ..18 साल पहले  की ही तो बात है!कैसे छोटी बहन ने बड़े भाई के सिंहासन का रास्ता रोकने की कोशिश की थी। और बड़े भाई ने अपना "राजपाट" बचाने के लिए कैसे हथकंडे अपनाकर "छोटी" बहन को प्रदेश की राजनीति से ही बाहर खदेड़ दिया था।आज भी वह राजनीति के वियाबान में भटक रही हैं।
 चूंकि मामला राजनीति का है,तो उसमें कुछ भी संभव है।अब भाई ने बहन को "पहली लाडली बहना" घोषित किया है उम्मीद की जानी चाहिए कि वह उसकी चिंता दूर करने की "सार्थक" कोशिश भी वह करेगा?
 पर कुछ भी हो अपना एमपी है तो गज्जब!भाई बहन की ऐसी जोड़ी और देखी है कहीं..?
अरुण दीक्षित
 ओर से साभार