(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
यह लगभग तय हो चुका है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल दो नेताओं के भरोसे अपनी लोकप्रियता, प्रशासनिक क्षमता और जनकल्याण की भावना को स्थायी भाव में परिवर्तित कर मतदाताओं के मध्य अपने समूचे दल को स्थापित करने और उन्हें जिताने के लिये कार्य करेंगे। दोनों ही दल में प्रदेश का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति अलग होगा और अभियान को संचालित करने वाला अलग।
भाजपा ने प्रदेश स्तर पर आगामी चुनाव को दृष्टिगत रखते हुये दो दशक से चले आ रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को अपना चेहरा माना है। शिवराज बड़चड़ कर चुनावी सभाओं और घोषणाओं पर हावी हैं। वहीं पार्टी के अध्यक्ष बीडी गौतम संगठन को चुस्त-दुरूस्त करने में अपना समय व्यतित कर रहें हैं। यह बात अलग कि गौतम पार्टी के चुनावी  अभियान के सार्वजनिक मंच से नदारत हैं। संभवतः भाजपा ने मध्यप्रदेश की पूरी जिम्मेवारी शिवराज सिंह की राजनैतिक क्षमताओ तक सिमित कर दी है। इस चुनाव में जय पराजय के श्रेय किसी भाजपा के किसी अन्य नेता के पक्ष में नहीं है यह लगभग तय हो चुका है। यही कारण है कि भाजपा के अंदर विरोध की एक चिंगारी धीरे-धीरे सुलग रही हैं, जो कभी-कभी दीपक जोशी जैसे प्रत्याशियों के बयानों और क्रियाकलापों से सामने आ जाती है। बताया यह जाता है कि एक बहुत बड़ी तादात दीपक जोशी की श्रेणी में खड़े होने के लिये आंतरिक रूप ये तैयार है। इसके साथ-साथ वर्षो से उपेक्षित पड़े हुये वरिष्ठ भाजपा नेता और सिंधिया समर्थकों के आगमन के बाद सत्ता से हाथ धो चुके कई भाजपाई नेता इस कड़ी में शामिल है। 
दूसरी ओर कांग्रेस में चल रही गतिविधियां यह स्पष्ट संकेत देती है कि दिग्विजय सिंह राजनैतिक संरचना, राजनीति के क्रियान्वयन मैदानी चुनावी कार्यक्रमों सहित उन सभी महत्वपूर्ण कड़ियों का नेतृत्व कर रहें  हैं, जो सरकार बनाने के लिये जरूरी है। दिग्विजय सिंह उन 66 सीटों को जीत का मुख्य आधार बना रहे हैं जहां कांग्रेस लम्बें समय से जीत नहीं सकी। दूसरी ओर भाजपा की भांति यहां भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ मैदानी गतिविधियों की सूचनाओं को प्राप्त करने में तो सफल है, परंतु किसी भी नीति के क्रियान्वयन के लिये उन्हें दिग्विजय सिंह की सहमति अनिवार्य है। स्वतंत्ररूप से कमलनाथ द्वारा निर्णय न लिये जाने की दशा में सभी समस्याएं निपटारे के लिये दिग्विजय सिंह के पास भेज दी जाती है। 
इस दौर में कांग्रेस ने 15 महीनों की पिछली सरकार से सबक लेकर नेतृत्व का एक नया समूह पैदा हो रहा है। जो शैडो मुख्यमंत्री की 15 महीनों के परम्परा के पूरी तरह विरोध में है। कांग्रेस को स्थानीय स्तर पर किसी बडे़ नेता की जरूरत नहीं होती है। सूचना तंत्र इतना सटिक और सफल माना जा रहा है कि जीती हुई सीटों की गणना के बाद अब कांग्रेस नेतृत्व संभवतः पहले मंत्रीमण्डल की सूची को अंतिम रूप दे रहा होगा। जानकार मानते है कि कांग्रेस की जीत का मुख्य आधार कमलनाथ हैं। पर व्यवहारिक रूप में दिग्विजय सिंह के व्यापक प्रभाव को और उनके द्वारा संगठित किये जा रहें कांग्रेस कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत हित से पहले पार्टी हित में सक्रिय कर पाना उनके लिये असंभव है। कांग्रेस उन बुनियादी जन समस्याओं की और ध्यान नहीं दे पा रही है, जो आम व्यक्ति को चुनाव के अंतिम क्षणों में पार्टी से जोड़ने का काम कर सकें। इसके बावजूद विभिन्न श्रोतों से मिल रही जानकारी बार-बार इस बात की पुष्टि कर रही है कि भाजपा के लम्बें शासन काल से बोर हो चुका आम मतदाता इस बार अपनी रूची बदलने की ओर बड़ रहा है, और संभवतः कांग्रेस भी इसी संभावना में आगामी चुनाव में विजय के स्पष्ट संकेत देख रही है। अन्य क्षेत्रीय दल या निर्दलीय विधायकों का मध्यप्रदेश में सदैव की भांति कोई जोर नही है। मुट्ठी भर विधायक अन्य श्रोतों से भी जीत कर आये तो वे सत्ताधारी दल के पक्ष में खड़े होकर अपने अस्तित्व की रक्षा करते रहेंगे। वैसे कर्नाटक चुनाव के परिणाम और उससे पैदा होने वाला उत्साह मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव व्यापक असर डालेगा।