(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
सिंधिया राजपरिवार के वर्तमान प्रतिनिधि ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला करके उन्हें गद्दार और विश्वासघाती करार देकर, यदि कांग्रेस यह सोच रही है कि ग्वालियर क्षेत्र में वह अपनी जीत को सुनिश्चित कर लेगी तो यह असंभव है। सिंधिया राजपरिवार के विरूद्ध अभियान चलाने में कभी उनके ही खिदमतगार रहे कांग्रेस के एक वर्तमान वरिष्ठ नेता ही सबसे आगे रहते हैं। इतिहास के जानने वाले यह मानते है कि अपने अन्नदाता या स्वामी के प्रति आंशिक विद्रोह का भाव हर अधिनस्थ प्यादे में मौजूद रहता है। परंतु कांग्रेस में रहते हुये महाराज के प्रति विद्रोह का सार्वजनिक प्रदर्शन करने का यह अनुठा मामला हर बार चुनाव के समय ही जोर पकड़ता है। सिंधिया ने कांगे्रेस छोड़ी इसके कारण ही 15 माह की ही अवधि के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार धाराशाही हो गई। परंतु ग्वालियर क्षेत्र में भारी विजय के बाद जीत के आये हुये विधायकों और उनके आदर्श ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति जो उपेक्षा का भाव 15 महीनों के दौरान पैदा किया गया उसके लिये भी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और कभी सिंधिया परिवार के जमीदार रहे स्वयं को राजपरिवार कहने वाले अकेले नेता का हाथ था।
15 माह की सरकार ने शुरू से यह संभावना थी कि सिंधिया उपेक्षा बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे और अपमानित होकर कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। इसके लिये जमीदार परिवार द्वारा सिंधिया के कुछ समर्थक विधायकों को बड़े पद और मंत्रालय देकर गोपनीयतौर पर अपने पक्ष में बनाये रखने की कोशिश की गई थी। परंतु विखण्डन के बाद सिंधिया के प्रति उनके समर्थकों के ठोस समर्पण के कारण विखण्ड को रोका नहीं जा सका।
आज भी रह-रह कर, सिंधिया पर हमले करने की कोशिश एक विशेष नेता द्वारा की जा रही है। ग्वालियर क्षेत्र को जानने वाले लोगों का मत है कि ग्वालियर के आम मतदाता की निष्ठा और समर्पण सिंधिया राजपरिवार के प्रति अटूट है। वास्तव में इस क्षेत्र के लोग  महाराज सिंधिया को आज भी अपने मस्तक में लगे हुये तीलक की भांति पूजते हैं। इन स्थितियों में कभी राजपरिवार के मुलाजिम रहें जमीदार द्वारा सिंधिया के प्रति असम्मानजनक व्यवहार ग्वालियर क्षेत्र में कांग्रेस के विरूद्ध एक बड़ा आंदोलन बन सकता है। 
राजा-महाराज के मध्य चल रहे इस कूटनीतिक युद्ध में कमलनाथ के नेतृत्व में खड़ी हो रही कांग्रेस जबरन पीस रही है। कांग्रेस के नेतृत्व में इतनी क्षमता नहीं है कि राजशाही के प्रति आज भी आम व्यक्ति के सम्मान और समर्पण का वह आकलन कर सकें। कमलनाथ विकास पुरूष के रूप में राज्य के विकास को गति दे सकते हैं, पर राजा-महाराजा के मध्य चल रहे इस युद्ध में वे जबरन ही एक हिस्सा बन जाते हैं। सिंधिया, ग्वालियर में कल भी शाश्वत थे और आज भी उनका वैभव कमजोर नहीं पड़ा है। फिर एक नहीं दस जमीदार विद्रोह का बिगुल बजा दें, आम ग्वालियर निवासी के सहयोग से सिंधिया राजपरिवार उनका सामना करने के लिये तत्पर है। वैसे भी राजशाही के दौर में प्रजा के लिए राजा भगवान की तरह होता था और इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि रानी लक्ष्मीबाई की घटना के अतिरिक्त और कोई घटना इतिहास में कहीं अस्तित्व रखती है जहां सिंधिया राजपरिवार ने अपने क्षेत्र की प्रजा के साथ कोई गद्दारी की हो। आगामी विधानसभा चुनाव में बार-बार दिग्विजय सिंह द्वारा सिंधिया के विरोध में चलाये जा रहे अभियान का सबसे विपरित प्रभाव ग्वालियर क्षेत्र में ही पड़ना है। इतना ही नहीं  बार-बार सिंधिया का विरोध कांग्रेस छोड़कर गये सिंधिया समर्थकों को लाभ के रूप में भविष्य की राजनीति में मिलना तय है। अब इसे दो-धारी राजनीति ही कहेंगे कि कमलनाथ के साथ खड़े होकर भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उस राजनीति को श्रेय दे रहे हैं जो कांग्रेस के भविष्य के लिये नये संदेह की बीजों को जन्म देती है।