(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
अजीब स्थिति में फ़स गई है मध्यप्रदेश की कांग्रेस। विधानसभा चुनाव सर पर है, एक-एक दिन करके विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी स्वयं को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करने का कोई अवसर नहीं गवा रही। वहीं कांग्रेस की नाव को पार लगाने वाले स्वयंभू नेतृत्व कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर रहे हैं कि कांग्रेस के संगठन में ही लोचा है। एक दिन पहले दिये गये बयान ने मध्यप्रदेश के चाणक्य कहें जाने वाले राज्य के कांग्रेसी राजनीति के नीति निर्धारक दिग्विजय सिंह, बूथ लेवल मेनेजमेंट की कमजोरियों को स्पष्ट करते हुये संगठन की ओर उंगली उठाते हैं। वहीं संगठन जिसकी बागडोर पिछले पांच सालों से दिग्विजय सिंह के ही अनन्य सहयोगी और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने संभाल रखी है। तो अब कमलनाथ भी स्पष्ट रूप से यह स्वीकार कर रहे हैं कि कांग्रेस का संगठन केवल चुनाव के समय ही सक्रिय होता है, शेष समय पर संगठन का अस्तित्व मृत होता है। पिछले पांच सालों से कमलनाथ ही मध्यप्रदेश के कांग्रेस संगठन को संभाल रहे हैं, 15 महीनें की सरकार चलाने का श्रेय भी उनके पास है। राजा और महाराजा की अंहकार की राजनीति के बीच अपनी सरकार को गवा देने का श्रेय भी उन्हें जाता है। फिर पिछले 45 वर्षो में माननीय कमलनाथ जी ने चाणक्य दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस के संगठन को मजबूत क्यों नहीं किया। इस काम के लिये आखिर हाई कमान ने या किस बड़ी राजनैतिक ताकत ने उनको रोका था, यह प्रश्न अभी भी हवा में लटका हुआ है।
राजनीति के जानकार मानते है कि मध्यप्रदेश में बाल कांग्रेस की संरचना पिछले 5 वर्षो की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है। आने वाले चुनाव में यह बाल कांग्रेस क्या भूमिका निभाने वाली है और इससे संगठन को क्या लाभ मिलने वाला है, इस प्रश्न ने सारे कांग्रेसियों को परेशान कर रखा है। कांग्रेस के राजनैतिक इतिहास में संभवतः यह पहला अवसर है जब ज़मीन से 10 फ़ीट ऊपर खड़े होकर, ज़मीन की राजनीति करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस संगठन के पास मुद्दें नहीं है, वास्तव में संगठन इस उम्मीद पर टिका हुआ है कि भाजपा अपने कर्मों से मरेगी और आने वाले समय में मतदाता एक तरफा कांग्रेस के पक्ष में ही मतदान करेगा। यह भी उम्मीद है कि भाजपा छोड़कर बाहर निकलने वाला संभवित मतदाता आखिर जायेगा कहां। विकल्प के तौर पर इस मतदाता को प्रभावित करने के लिये तरह-तरह के वायदे किये जा रहे हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो भाजपा जिन वायदों को कह रही है उन्हीं का आकार बड़ाकर कांग्रेस भविष्य की रणनीति को सफल देखना चाहती है। कांग्रेस संगठन में क्रियाशील और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ या कूटनीतिज्ञ फिलहाल तक दूर रखे गये है और कमान केवल एक बाहरी रणनीतिकार और दो नेताओं ने संभाल रखी है।
अब स्थिति यह है कि कांग्रेस के दोनों ही अग्रणी नेता संगठन को कमज़ोर और निष्क्रिय मान चुके हैं। बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को बूथ मेनेजमेंट में अक्षम घोषित कर चुके है। कांग्रेस हाई कमान मध्यप्रदेश को अपनी राजनीति का क्षेत्र मानने से पहले से ही मना कर चुका है। कांग्रेस के स्थानीय, क्षेत्रीय नेता अपने-अपने इलाकों में विश्राम की मुद्रा में धार्मिक अनुष्ठान और स्वयं की खेतीबाड़ी में लगे हुये है। कुल मिलाकर भ्रमित कार्यकर्ता को दिशा देने के लिये कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ही अपनी पूरी शक्तियों का उपयोग कर रहे हैं। परंतु जब संगठन को ही सक्षम नेतृत्व कमज़ोर मान ले उन स्थितियों में किसी राजनैतिक दल का भविष्य कितना सुरक्षित हो सकता है इस प्रश्न का उत्तर कही नहीं है।  वैसे भी कांग्रेस की राजनीति कमरों में क़ैद होकर आकड़ो के अनुसार चलने की आदि हो चुकी है, जिसका वास्तविकता से कोई लेनादेना नही है। सही अर्थो में कांग्रेस में अभी तक कोई ऐसी महत्वपूर्ण घोषणा या वायदा नहीं किया है जो आम चुनाव के समय मतदाता के विचारों में कोई परिवर्तन ला पाने में सक्षम है। उल्टा कांग्रेस खेमें में ही चिन्ता इस बात की है कि यदि कांग्रेस जीत गई तो मुख्यमंत्री और शेडों मुख्यमंत्री के रूप में 15 महीनों तक परीक्षण किया गया इतिहास एक बार पुनः प्रभावशील होगा। जिसके लिये कांग्रेस के किसी भी स्तर का कोई भी नेता अब तैयार नहीं है, यदि कांग्रेस जीती तो बगावत अब इसी मुद्दे पर होगी। वैसे भी कांग्रेस की संभावना स्वयं उसके अग्रज नेता प्रतिदिन के हिसाब से कम करते जा रहे हैं।