(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बड़े परिवर्तन के संकेत मिलने लगे हैं। कांग्रेस का राज्य स्तरीय संगठन वर्तमान में पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं है, इस तथ्य से कोई भी राजनैतिक विचारक असहमत नहीं हो सकता। चुनाव के पूर्व एक स्पष्ट संभावनाओं वाला दल, अंतिम क्षणों तक मुद्दों की तलाश करता रहें और कभी हनुमान जयंती या धर्म संसद के नाम पर कुछ फर्जी लोगों को जोड़कर अपनी शक्ति में वृद्धि की कल्पना करता रहें, यह स्पष्ट विजय का संकेत नहीं हो सकता। पिछले एक सप्ताह से मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तीनों ही राज्यों में बड़े परिवर्तन की आहट सुनाई देने लगी है। राजस्थान में अशोक गेहलोत के विरूद्ध पायलेट ने अपना मोर्चा खोल दिया है। छत्तीसगढ़ में भी संगठन में बदलाव की ख़बरें जोर पकड़ रहीं हैं। वहीं मध्यप्रदेश में भी कल तक कमलनाथ के पक्ष में रणनीति बनाने वाले, एक प्रभावशील वर्ग ने वरिष्ठ किन्तु उपेक्षित कांग्रेस नेताओं का समूह पार्टी अध्यक्ष के पद पर बदलाव के संकेत के साथ आला कमान तक भेज दिया है। 
राजस्थान की राजनीति को कांग्रेस के हाई कमान ने ही निर्णयों के अभाव में और स्पष्ट नीति न होने के कारण उलझाकर रखा है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि सचिन पायलेट की मांग कांग्रेस के हित में है। अशोक गेहलोत अपनी जिद के आगे और स्वयं को राजनीति का जादूगर को प्रमाणित करने की इच्छा के कारण पायलेट को अनदेखा कर रहे हैं। राजस्थान में कांग्रेसियों का एक बड़ा वर्ग युवा सचिन पायलेट के विचारों से सहमत होता हुआ उनके पक्ष में खड़ा हुआ है। यदि पायलेट की बात मानी जाती है तो राजस्थान में भाजपा का जनाधार और पूर्व में किया गया भ्रष्टाचार उसके गले की फांसी बन जायेगा जिससे निकल पाना वर्तमान में भाजपा के लिये संभव नहीं है। 
दूसरी ओर मध्यप्रदेश की राजनीति में पिछले तीन-चार दिनों से एक अजीब सी हलचल मची हुई है। कांग्रेस का एक वर्ग धीरे-धीरे मुखर हो रहा है और इस तथ्य को बार-बार दोहरा रहा है कि कमलनाथ वरिष्ठ जरूर हैं, परंतु आपसी सामंजस्य और सहयोज कि नीति पर कांग्रेस शैली की राजनीति कर पाने में सफल नहीं है। यही कारण है कि वरिष्ठ कांग्रेसियों का एक युवा वर्ग संगठन की गतिविधियों पर और उसकी कार्य प्रणाली पर प्रश्न उठाता जा रहा है। राजनीति के संकेत यह कहते हैं कि इस मोड़ पर कमलनाथ अपने अत्यंत विश्वत बनाये गये सिपहसालारों से ही पराजित हो रहें हैं। वास्तव में अंसतोष का यह खेल मध्यप्रदेश में एक साथ पैदा नहीं हुआ है, चिंगारी को किसी एक स्रोत के माध्यम से लगातार हवा दी जा रही है। इस षड़यंत्र के पीछे एक नये राजनीतिक समुदाय का उदय भी प्रभावशाली ढंग से किया जा रहा है, जो कांग्रेस की भविष्य बनने की तैयारी में है। वैसे भी कमलनाथ ने मध्यप्रदेश की राजनीति को एक संकुचित दायरे में चंद लोगों के मध्य लाकर खड़ा कर दिया है। कमलनाथ अपने विश्वस्त व्यक्तियों का चयन कर पाने में अक्षम रहें हैं, उन्होंने व्यक्तिगत निष्ठा और षड़यंत्रों से दूर राजनीति की परिकल्पना कुछ इस तरह की है कि उससे राजनीति के मूल सिद्धांत ही समाप्त हो गये हैं। पिछले दिनों में अपने बयानों के मध्यम से कमलनाथ जैसे वरिष्ठ नेता ने भाजपा और उसके मुख्यमंत्री पर जिस भाषा के साथ हमला किया उसे राजनीति में स्वीकार्य नहीं कहा जा सकता। चुनाव के पूर्व कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के पास राजनैतिक जमावट और कुटनीतिक तौर पर एक बड़ी निष्ठावान सेना को पैदा करना पहली जरूरत थी। बदलती हुई स्थितियों में यह संकेत गहरे होते जा रहें हैं कि विधानसभा चुनाव के पूर्व मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ और राजस्थान की भांति किसी बड़े राजनैतिक परिवर्तन का दौर आ सकता है। कमलनाथ की अनुपस्थिति का नुकसान कांग्रेस को भुगतना होगा। परंतु परीक्षण इस बात का होगा कि वर्तमान राजनैतिक शैली और षड़यंत्र से उपजी हुई भविष्य की राजनैतिक शैली से कांग्रेस के हित में क्या जाता है।