(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर, कांग्रेस जहां मुद्दों की तलाश में बिखरी हुई नज़र आ रही है। वहीं भाजपा की केन्द्रीय नेतृत्व ने राज्य में पुनः सत्ता स्थापना के लिये गंभीर प्रयास करने शुरू कर दिये हैं, जैसी की संभावना व्यक्त की जा रही थी। इन विधानसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ के छिन्दवाड़ा मॉडल को भाजपा विशेष तौर पर लक्ष्य करने जा रही है। इसी कड़ी में छिन्दवाड़ा में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, अपना पहला दौरा जल्द करने जा रहे हैं। इस दौरे की सबसे बड़ी खासियत यह है कि, प्रधानमंत्री छिन्दवाड़ा में आदिवासी धर्म गुरूओं के साथ चर्चा करेंगे और भोजन भी करेंगे।
मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों को यह गौरव हासिल है कि उन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में स्वयं का धर्म गुरू निर्मित कर रखा है। अदिवासी समुदाय ने उनकी मान्य परम्पराओं को बिना किसी बाहरी सहारे के जीवित और संचालित रखने में इन धर्म गुरूओं की विशेष भूमिका है। वास्तव में अशिक्षित या अल्प शिक्षित आदिवासी समूह इन्हीं गुरूओं के मार्ग दर्शन में अपने छोटे से क्षेत्र में स्वयं को संगठित रख पाता है। धर्म गुरूओं के साथ संवाद किसी अंर्तराष्ट्रीय या राष्ट्रीय विषय पर नहीं होना यह तय है। केन्द्रीय गृहमंत्री की उपस्थिति में प्रादेशिक स्तर के सक्षम नेता का आदिवासी के विकास की रूप रेखा को लेकर एक ऐसा दृष्य उपस्थित करेंगे कि क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के लिये भाजपा के पक्ष में धर्म गुरूओं की वाणी एक निर्देश की तरह जारी हो।
अदिवासी समूह को संगठित करना भाजपा के लिये बहुत जरूरी है। पिछली बार भी कांग्रेस की 15 माह की सरकार इन्हीं आदिवासियों के गुस्से के कारण बन पाई थी। यह बात राज्य के मुख्यमंत्री और संगठन के समस्त सक्षम नेता भलिभांति जानते हैं। राज्य के विभिन्न क्षेत्र में बिखरे हुये आदिवासी समुदायों के मध्य, यदि भाजपा इन धर्म गुरूओं के भ्रमण और प्रवचन जैसी गतिविधियों को तेज कर पाई तो सामाजिक विचार धारा में पुनः भाजपा के प्रति लगाव पैदा कर पाने में वह सक्षम हो जायेगी। वैसे कांग्रेस समूचे राज्य की तरह आदिवासी वर्ग को अपने पक्ष में लेने के लिये कोई बड़ा प्रयास नहीं कर रही है। कांग्रस में मुद्दों का आभाव है और बडे़ नेताओं की उपेक्षा के कारण राज्य में कांग्रेस का संगठन भी चुनाव करीब आते-आते वास्तविक रूप में बिखरता जा रहा है। अमित शाह के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जिस तरह राज्य में सक्रिय होने जा रहे  हैं उससे कांग्रेस की बची कुची संभावना पर आघात पहुंचना तय है।
पता नहीं क्यों कांग्रेस, अपने समस्त नेताओं को एक साथ राज्य स्तरीय अभियान के लिये क्यों नहीं भेज पा रही। कई राजनैतिक चिंतकों को यह समझ में आ रहा है कि कांग्रेस के पास इच्छा शक्ति का और संसाधनों का आभाव है। साथ ही राज्य के बडे़ नेताओं की पारिवार एवं सामाजिक परेशानियां या क्रियाकलाप कहीं जांच के दायरे में न आ जाएं इस बात का डर है। वास्तव में कांग्रेस का कार्यकर्ता अभी भी उम्मीद कर रहा है कि संगठन बंद कमरों से निकल कर खुली हवा में आम मतदाता के साथ संवाद की स्थिति में आयेगा और भाजपा की 20 साल की सरकार की नाकामियों को मुद्दा बना पाने में सक्षम होगा। इसके विपरित वास्तविकता यह है कि चुनाव के कई महीनें पहले कांग्रेस, भाजपा के सामने धाराशाही है। यदि यहीं हाल रहा तो भविष्य की निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी होने के पूर्व ही प्रदेश की जनता ही चुनाव के परिणामों की घोषणा कर देगी जो भाजपा के पक्ष में होंगे। चुनाव के पूर्व कांग्रेस संगठन के विभिन्न प्रकोष्ठों को जिस तरह सक्रिय होना चाहिए, उसके विपरित वे कहीं ज्यादा निष्क्रिय हो गये है। इसका प्रमुख कारण संगठनों को प्रदेश कांग्रेस से वित्तीय संसाधन न मिल पाना बताया जाता है। भविष्य के परिणाम वर्तमान की व्यवस्था में संकेत बन रहे हैं। पर कांग्रेस बेफिक्र है, सर्वेक्षण और कम्प्यूटर उसकी सरकार बहुमत के आधार पर बनने के संभावनाएं व्यक्त कर रहें हैं।