(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
20 साल बाद, कांग्रेस मध्यप्रदेश में जनता की समस्याओं के प्रति भाजपा की सरकार को सचेत करने के लिये और राष्ट्रीय स्तर पर चल रही कथित राजनैतिक विषमताओं के विरोध में सड़क पर उतरी। प्रदेश के मतदाताओं को विपक्ष के इस चेहरे का लम्बे समय से इंतजार था। मध्यप्रदेश की महंगाई, हिन्सा, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं पर जनता के आक्रोश को प्रगट करने का कोई मंच ही नहीं बन पा रहा था। परंतु कांग्रेस का यह पैदल मार्च उस समय हुआ जब राज्य में विधानसभा चुनाव सर पर है। सहज रूप से भी कांग्रेस का आम मतदाता कांग्रेस की इस गतिविधि को चुनाव में वोट पाने के लिये एक कोशिश करार दे सकता है।
वैसे भी यह कथित जनअंदोलन उतना भयावह नहीं हुआ जितना दांवा किया गया था। 50 हजार लोगों की भीड़ के साथ अंसतोष जाहिर करने की इच्छा धरी की धरी रह गई। जानकार बताते है कि इस आंदोलन में 5 हजार के लगभग पूरे प्रदेश से कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भाग लिया, फिर भी कांग्रेस इसे सफल मान रही है। यह जरूरी भी है कि जिस पार्टी के पास आज अपने सक्रिय कार्यकर्ताओं की पहचान ही नहीं है, उसके लिये 5 हजार का आकड़ा भी छोटा नहीं होता। इस पैदल मार्च के दौरान पुलिस तंत्र द्वारा पानी फेककर, बेरिकेड लगाकर और भारी संख्या में पुलिस बल उपस्थित कर, आंदोलन को भयावह बनाया गया। बताया जाता है कि राज्य के सभी कांग्रेसी नेता राजभवन के इस घेराव के आंदोलन को सहयोग नहीं कर रहे थे। यही कारण था कि राज्य के अलग-अलग हिस्सों से उतने ही कार्यकर्ता भोपाल पहुंचे, जितने विधानसभा प्रत्याशी हो सकते थे। 
कांग्रेस का यह आंदोलन सफल रहा, इसका संदेश राज्य के दूर दराज के हिस्सों में भी जायेगा। उम्मीद यह की जानी चाहिए कि चुनाव के पहले यदि कांग्रेस पुनः इस तरह के आयोजन को पुनः जन्म देती है, तो इसमें भाग लेने वालों की संख्या अधिक होगी।
वास्तव में यह प्रमाण था की जमीनी धरातल पर कांग्रेस की राजनीति विधानसभा चुनाव को देखते हुये किस हद तक सक्रिय है। वास्तव में कांग्रेस का कार्यकर्ता अगले 6 महीनें तक ही सही राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय होने के लिये तैयार है कि नहीं। इस पैदल मार्च में सबसे अधिक अनुपस्थिति कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की रहीं। यदि आयोजन की रूपरेखा और क्रियान्वयन पार्टी ने दिग्विजय सिंह शैली में किया होता तो राहुल गांधी की भारत जोडों यात्रा की तरह यह आयोजन भी सफल हो चुका होता। भोपाल के जवाहर चैक से लेकर राजभवन तक पैदल मार्च करते समय कुछ कार्यकर्ताओं को चक्कर आ गये तो कुछ अचानक हुये पुलिस के लाठी प्रहार से घायल भी हो गये ऐसा बताया जाता है। 
इस आयोजन ने एक प्रश्न जरूर छोड़ा है कि समय रहते मध्यप्रदेश की कांग्रेस अपने स्वरूप को राजनैतिक रूप से अधिक मजबूत करने जा रही है या वर्तमान में चल रहे लचर ढांचे को ही अगले चुनाव में हथियार के रूप में उपयोग करने जा रही है। वास्तव में भाजपा के नेता आज के प्रदर्शन से काफी खुश होंगे और अपने उज्जवल भविष्य को देख रहे होंगे ।