(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर) :
विधानसभा चुनाव की तिथि करीब आने के साथ-साथ राजनैतिक क्षेत्रों में स्वयं को जनता का असली प्रतिनिधि दिखाने की होड़ बड़ती जा रही है। सत्ताधारी दल भाजपा लगातार उन घोषणाओं को करने में व्यस्त है, जो समाज के विभिन्न वर्गो में उसकी संवेदनशीलता के प्रति असर दिखा सकती है। फिर चाहे वह लाड़ली बहना योजना हो या फिर अन्य रियायतों का मसला। कांग्रेस अब धीरे-धीरे इलेक्शन मोड में आ रही है, 13 मार्च को भोपाल में जनता से संबंधित विभिन्न मुद्दों को लेकर, राजभवन पर घेराव के लिये एक मार्च निकाला जाना प्रस्तावित है। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मध्यप्रदेश के सभी चुनाव क्षेत्रों में क्रमवार दौराकर जमीन से लेकर आकाश तक के कार्यकर्ताओं और नेताओं को सक्रिय करने की जिम्मेवारी सौपी है। फिलहाल दिग्विजय सिंह विन्ध्य क्षेत्र के दौरे में हैं। इसके बाद कांग्रेस के कार्यक्रम के अनुसार वे पिछले विधानसभा चुनाव में पराजीत हुये उन क्षेत्रों का दौरा करेंगे, जहां कांग्रेस को संभावना नज़र आती है।
प्रमुख राजनैतिक दलों के साथ-साथ गोड़वाना गणतंत्र पार्टी, आम आदमी पार्टी और आदिवासी वर्ग से संबंधित अन्य संगठन भी अपनी क्षमताओं का विस्तार कर रहें हैं। बड़े राजनैतिक दल क्रमशः इन दलों से विभिन्न माध्यमों से सम्पर्क बनाने की कोशिश में है। ताकि समाज के अंतिम वर्ग तक सरकार बनाने के लिये आवश्यक समर्थन की तलाश की जा सकें। भोपाल में होने वाले राजभवन के घेराव का नेतृत्व कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ स्वयं करेंगे, इसके लिये प्रदेशभर के कांग्रेसियों को निमंत्रण भेजा गया है। 
दूसरी ओर सर्वेक्षणों का सिलसिला विभिन्न स्तर पर लगभग प्रत्येक सक्षम नेता और प्रत्येक राजनैतिक दल द्वारा संभावनाओं की तलाश में शुरू किया जा चुका है। कांग्रेस यह मान सकती है कि आदिवासी एवं अत्यंत पिछडे़ं क्षेत्रों में महंगाई की मार से परेशान आम आदमी इस बार उसकी ओर रूख करेगा, यही कांग्रेस के लिए आशा का बहुत बड़ा केन्द्र है। परंतु इस सम्भावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि लगभग ढाई सालों से पूरे देश में बट रहा मुफ्त राशन और केन्द्र सरकार द्वारा लागू की गई कई जनहितकारी योजनाएं इस सपने को पूरा होने देने में बाधित बनेंगी। 
आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास कमलनाथ एक चेहरे के रूप में मौजूद हैं, जिनके 15 महीनों के शासन को इस इस राज्य को करीब से देखा है। स्वयं कांग्रेस के नेता इस बात पर अश्वस्त है कि कमलनाथ के चेहरे पर विधानसभा का चुनाव लड़ा जा सकता है। परंतु उस चेहरे में किसी अन्य विवादास्पद नेता का चेहरा छद्म रूप में नज़र आ गया तो कांग्रेस के सारे प्रयास विफल भी हो सकते हैं। दूसरी ओर कांग्रेस ने जिस तरह दिग्विजय सिंह को पूरे राज्य की असंतुष्ट कांग्रेस लाबी को समझाने के लिये अधिकृत्र किया है, उसका व्यापक प्रभाव भी पड़ना असंभव है। पिछले 20 वर्षो के शासनकाल के दौरान मध्य में बनी हुयी 15 महीनों की सरकार के अचानक गिरने के लिये भी कथित रूप में दिग्विजय सिंह को आरोपी बनाया जाता है। समूचे राज्य में कांग्रेस पक्ष में कांग्रेस का हाई कमान निष्प्रभावी है। मध्यप्रदेश में होने वाले इन चुनाव में कांग्रेस हाई कमान की भूमिका भी प्रत्यक्ष रूप से कमलनाथ को ही निभानी होगी। इसका दूसरा अर्थ यह हुआ कि राज्य में चल रहे संतोष दिलाने वाले कांग्रेस के अभियान से जो कुछ पैदा होगा वहीं भविष्य की राजनीति का आधार बनेगा। इस स्थितियों में कांग्रेस का एक बड़ा पक्ष जो वरिष्ठता के बाद भी असंतुष्ट है इस रणनीति का विरोध कर सकता है। यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि जिस तरह भाजपा में शिवराज सिंह अंत में सब कुछ संभाल लेंगे, उसी तरह कमलनाथ अपनी वरिष्ठता और अनुभव के आधार पर राज्य की राजनीति को संतुलित कर पाने में सफल होंगे। परिणाम चाहे कुछ भी हो, दोनों ही बड़े राजनैतिक दल छोटे-छोटे राजनैतिक समूहों से न सिर्फ परेशान है, बल्कि उन्हें परिणाम परिवर्तित करने वाला माध्यम भी मानते है। भाजपा स्वयं को सन्तुलित रखने का प्रयास कर रही है। पर अंर्तकलह चाहे वह सिंधिया समर्थकों के कारण हो या कुछ दिनों में करोड़पति बने गये जनप्रतिनिधियों के एक विशेष लाबी के कारण हो, दल के लिये भविष्य में परेशानी का कारण बन सकती है। कुछ भी हो आने वाले चुनाव स्पष्ट रूप से मध्यप्रदेश के भाग्य का निर्धारण करने जा रहे हैं।