(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
राजशाही की परंपरा का पालन करते हुये, अगले विधानसभा चुनाव के लिये कांग्रेस ने अपना दिग्विजयी रथ जून माह तक के लिये मैदान में उतार दिया है। राजा-महाराजाओं के युग में स्वयं को चक्रवर्ती और बलवान घोषित करने के लिये, अश्वमेघ यज्ञ में घोड़ा छोड़ने की परंपरा थी। यह घोड़ा, धरती में जहां-जहां जाता था उसे सुरक्षित रखने के लिये एक सेना नायक और सिपाहियों का एक खास दस्ता भी साथ में भेजा जाता था। यह घोड़ा, पृथ्वी में अलग-अलग राज्यों में घूमकर, अपने राजा की यश गाधा को प्रचारित करता था, राजा के लिये समर्थन जोड़ता था और उन सारे राजनैतिक समीकरणों को भी व्यवस्थित करता था, जो घोड़ा छोड़े जाने वाले राजा के राजनैतिक वैभव वृद्धि कर सकें।
समय बदल चुका है। मध्यप्रदेश राज्य में अश्वमेघ का घोड़ा नहीं दिग्विजयी रथ रवाना हुआ है। आने वाले विधानसभा चुनाव में विपक्षियों के सभी मंसूबों को धाराशाही करने के लिये नाराज बैठे हुये कार्यकर्ताओं, नेताओं और समर्थकों में एक नया उत्साह भरने के लिये यह रथ राज्य में निरंतर चलेगा। यह रथ उन सभी बुझे हुये कांग्रेस के दीपकों को उनकी हैसियत दिखायेगा। जो गुजरें हुये कल में पार्टी का आधार स्तम्भ होते थे। इस रथ की कमान समग्ररूप से मध्यप्रदेश ही नहीं देश के कांग्रेसी राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले राजा दिग्विजय सिंह को सौपी गई है।
इस रथ के भ्रमण के लिये और इसके राजनैतिक प्रभाव का पूर्वानुमान लगाने के लिये किन-किन वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को प्रदेश कार्यालय ने विश्वास में लिया यह तथ्य अज्ञात है। पर यह सत्य है कि मध्यप्रदेश के चुनाव के लिये यदि कोई अकेला व्यक्ति नेतृत्व और जिम्मेवारी उठा सकता है तो वो दिग्विजय सिंह है। कांग्रेस को उन छुटभय्ये नेताओं की जरूरत नहीं है, जो राज्य के अनेक अंचलों में अपने पारिवारिक प्रभाव, जातिय प्रभाव या कार्यकर्ता गठबंधन के प्रभाव को अभी भी बनाये हुये हैं। कांग्रेस का यह विजय रथ जिन-जिन चुनाव क्षेत्रों से गुजरेगा, इसकी धूल मात्र से एक नई चिंगारी स्वयं पैदा होगी। निराश पड़े हुये कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को झक मारके कांग्रेस की सम्भवनाओं को अधिक बलवती बनाने के लिये पुनः सक्रिय होना होगा। 
मध्यप्रदेश में विपक्ष के रूप में भाजपा इस दिग्गिवजयी रथ के आयोजन को अपने लिये एक शुभ संकेत मान रही है। कांग्रेस 15 माह की सरकार के अनुभव के आधार पर पुनः राजनीति और प्रशासन के लिये दो अलग-अलग धु्रवों में विभक्त होकर अगली सरकार की योजना तैयार कर रही है। दिग्विजय सिंह की इस यात्रा से मध्यप्रदेश में कांग्रेस को विजय मिले या न मिले, यह तय है कि आने वाले एक दशक के लिये राज्य की कांग्रेसी राजनीति में एक व्यक्ति का झंडा जरूर बुलंद हो जायेगा। इसके साथ ही मध्यप्रदेश कांग्रेस में प्रभावी कहे जाने वाले कई नेताओं की हैसियत का अंदाज भी इस यात्रा के सफल समापन के साथ हो जायेगा। इस यात्रा से टिकट के दावेदारों को झक मारकर इस रथ के स्वागत और इसके प्रति समर्पण के भाव को कायम रखना होगा। राजनीति को जानने वाले यह मानते है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस हाई कमान की कोई रूची न होने के कारण हाई कमान का इस राज्य में कोई निजी निवेश न होना है। इसके साथ ही इस यात्रा से दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों तक, कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के प्रति एक नई जनआस्था का जन्म होगा, जिससे जिसके कुछ अंश के लाभ पार्टी को अवश्य मिलेगा। पार्टी ने आगामी चुनाव के लिये जिस कमद को उठाया है उसके दूरगामी परिणाम मध्यप्रदेश में कांग्रेस को देखने के लिये मिलेंगे। इन सबके बावजूद मध्यप्रदेश में कांग्रेस का हाई कमान मौन रहकर इस दिग्विजयी रथ के परिणाम को अपने विजय के संकेत के रूप में स्वीकार करेगा, संभवतः यही नियती है।