(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
कांग्रेस में क्या अरूण यादव दल को छोड़कर किसी अन्य दल या माध्यम के जरिये अपने भविष्य की राजनीति करने जा रहे हैं। यह संकेत कांग्रेस के एक  ओर वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ जी के सबसे करीबी व्यक्ति सज्जन सिंह वर्मा द्वारा एक भोज के दौरान पत्रकारों को दिया गया है। इस संकेत को सोशल मीडिया में हाथों हाथ ले लिया गया। राजनीति को समझने वालों ने इसे कांग्रेस के एक विशेष खेमें के प्रति संगठन में प्रभावी लोगों की सोच बताया। अरूण यादव के पिता स्व. सुभाष यादव, मध्यप्रदेश कांग्रेस में 70 के दशक के बाद एक प्रभावशील, किसान और सहकारिता नेता के रूप में पहचानें जाते थे। सुभाष यादव का पूरा जीवन सिर्फ कांग्रेस के दायरे में सिमित रहा। उन्होंने अपने गुरू पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के नेतृत्व में मध्यप्रदेश की राजनीति में सहकारिता का एक नया इतिहास लिखा था। जिसकी बराबरी चार दशक बाद तक कोई नहीं कर सका है। यह मान जाना कि सुभाष यादव का बेटा अरूण यादव कांग्रेस से अलग होकर किसी नई राजनीति की भूमि तलाश करेगा! हजम नहीं होता।
अरूण यादव केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में राज्यमंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं और कांग्रेस के हाईकमान कहे जाने वाले राहुल गांधी के मित्र और शुभचिंतकों में हैं। अरूण यादव की गांधी परिवार के साथ इसी निकटता के कारण, कांग्रेस की एक लॉबी हमेशा उनके विरुद्ध खड़ी रही। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अरूण यादव के कार्यकाल को न सिर्फ विवादास्पद बनाया गया, बल्कि उसे कमजोर भी प्रमाणित भी किया गया। पिछले दिनों खण्डवा लोकसभा चुनाव में जब अरूण यादव ने दावेदारी प्रस्तुत की, तो प्रदेश स्तर के प्रभावशील नेताओं ने षड़यंत्रपूर्वक कांग्रेस हाईकमान के सामने उसे अस्वीकार कर दिया। यही कारण है कि विरासत में मिली हुई नेतृत्व की क्षमता के बावजूद अरूण यादव के राजनैतिक जीवन एक ठहराव आ गया। 
राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा जब मध्यप्रदेश में प्रवेश कर रहीं थी, तो राहुल गांधी के पूर्व से ही मित्र रहे अरूण यादव और उमंग सिंघार को एक षड़यंत्र की तहत निष्क्रिय किया गया। यही कारण था कि अरूण यादव के स्थान पर सुरेन्द्र सिंह शेरा नामक निर्दलीय विधायक को इस क्षेत्र में यात्रा की जिम्मेवारी सौपी गई। मालवा-निमाड से गुजरती हुई इस यात्रा में इन दोनों ही युवा नेताओं को जो आदिवासी और पिछड़े वर्ग का न सिर्फ नेतृत्व करते हैं बल्कि राहुल गांधी के विश्वसस्त व्यक्तियों में इन्हें शामिल किया जाता है।
अरूण यादव के राजनैतिक जीवन पूर्णविराम लगाने के लिये लगातार कोशिशें की जाती रही हैं। बावजूद इसके कि पिछड़ा वर्ग के नेतृत्व की क्षमता मध्यप्रदेश में किसी अन्य नेता के अनुपात में अरूण यादव में कही ज्यादा है। पिता द्वारा छोड़ी गई सहकारिता की विरासत और किसानों से सम्पर्क बनाये रखने की प्रवत्ति अरूण यादव को राजनीति में स्थान देती हैं। सज्जन सिंह वर्मा के बयान से यह स्पष्ट होता कि कांग्रेस अरूण यादव को साथ लेकर चलने में सम्भवतः रूची नहीं ले रही है। यह बात अलग है कि सहकारिता, किसान और पिछडा वर्ग के मध्य खड़े होने वाले किसी एक चेहरे का कांग्रेस में नितांत आभाव है। आदिवासी युवाओं के मध्य कार्य करने में सक्षम उमंग सिंघार को कांग्रेस की षड़यंत्रकारी नीति उनके एक परिवार के विवाद को लेकर पहले ही निष्क्रिय कर चुकी है। कुल मिलाकार राजनीति में अपने ही परिवार को शीर्ष पर पहुंचने की परम्परा को बलवती को बनाये रखने के लिये, अगले विधानसभा चुनाव में इन दोनों नेताओं की बलि अनिवार्य है। यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि अरूण या उमंग किन्हीं भी परिस्थितियों में हार मानकर षड़यंत्रों के चलते कांग्रेस से किनारा करेंगे। यह बात अलग है कि दोनों ही नेता मिलकर प्रादेशिक नेताओं के षड़यंत्र का खुलासा हाई कमान के सामने कर सकते हैं और यही डर है कि जो बार-बार, अलग-अलग माध्यमों से इन दोनों नेताओं की कब्र खोदने के लिये आमादा है।