(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश, कांग्रेस हाई कमान की वरीयता सूची में शामिल नहीं है। इस बात के संकेत समय के साथ मजबूत होते जा रहे है कि कांग्रेस हाई कमान राज्य को कांग्रेस शासित राज्य में शामिल करना नहीं चाहता। मध्यप्रदेश में जिस तरह की राजनैतिक हलचल चल रही है, उससे यह स्पष्ट होता है कि सभी राजनैतिक परिस्थितियां कांग्रेस के पक्ष में होने के बावजूद कांग्रेस हाई कमान की उपेक्षा और प्रदेश स्तरीय नेताओं की महत्वाकांशा इस राज्य को पुनः भाजपा के हाथ में सुरक्षित रूप से पहुंचा देगी। यही हाल छत्तीसगढ़ और राजस्थान का है पर वहां चल रहे परस्पर राजनैतिक षड़यंत्र पर कांग्रेस हाई कमान की निगाह बनी हुई है। जबकि मध्यप्रदेश की ओर से हाई कमान ने पूरी तरह अपनी आंखें बंद कर रखी है ।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस सत्ता से कितनी दूर है इसका अनुमान लगाने की फुर्सत राज्य या केन्द्र में बैठे हुये कांग्रेसी नेताओं को नहीं है। जिस तरह कांगे्रस हाई कमान ने उत्तर प्रदेश, हिमाचल एवं अन्य राज्य को प्राथमिकता की श्रेणी रखकर वहां के स्थानीय नेताओं की राजनैतिक महत्वाकांशाओं पर अंकुश लगाया था, वह प्रक्रिया कम से कम मध्यप्रदेश के लिये नजर नहीं आती। चुनाव जितने के पूर्व जितने की योजनाएं बनाई जाती है, मतदाताओं पर अलग-अलग विषयों के व्यापक प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। उसके बाद सत्ता की चाबी को सभांलने के लिये तैयारी की जाती है। एक समय मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेताओं के प्रभावशाली गुट सक्रिय थे। तब भी कांग्रेस की विजय के लिये चुनाव के पूर्व उन योजनाओं पर निर्माण किया जाता था, जो जमीनी स्तर पर कांग्रेस के पक्ष में पल रहे माहोल को विकसित कर सके। जैसे-जैसे जीत की संभावना बरबती होती थी, मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिये राजनीति का दौर शुरू होता था।
वर्तमान में हालात यह है कि बिना किसी कार्य योजना के राज्य में बिखरी हुई कांग्रेस को विजयी मानकर मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के लिये कई हाथ उठकर खड़े हो रहे है। प्रश्न यह है कि राज्य के स्थापित कहे जाने वाले नेताओं के भावी मुख्यमंत्री घोषित किया जाय या फिर राज्य में एक नये नेतृत्व की तलाश की जाय। अभी यह प्रश्न उठना बाकी है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस का भावी मुख्यमंत्री किस जाति से संबंधित होगा । यह समूचा घटना क्रम आने वाले कल में एक विस्फोट के रूप में प्रगट होने वाला है और कांग्रेस हाई कमान इसकी ओर से पूरी तरह मौन साध बैठा हुआ है। विस्फोट की परिस्थितियां धीरे-धीरे गंभीर होती जा रही है और  आपसी आरोप प्रत्यारोप चुनाव के पूर्व ही कांग्रेस में एक विघटन को जन्म दे रहे हैं। इतनी टूटी हुई कांग्रेस एक ऐसे युद्ध को लड़ने जा रही है जिसमें जमीनी परिस्थितियां पूरी तरह कांग्रेस के पक्ष में बताई जाती है। यह भी कहा जा रहा है कि 20 वर्ष के भाजपा के शासनकाल से पैदा हुई विसंगतियां और भाजपा का अंतर विरोध इन चुनाव में पार्टी के लिये भारी है। 
इन परिस्थितियों में कांग्रेस हाई कमान मौन उसकी अनुभवहीनता को प्रदर्शित करता है। यदि आज हाई कमान नियंत्रण के लिये कोई कदम नहीं उठाता है तो मध्यप्रदेश की राजनीति में आने वाला कल इस मौन को मध्यप्रदेश के इतिहास में कभी क्षमा नहीं कर सकेगा।