(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश में न विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई न कोई कार्यक्रम आया और ना ही मतदाताओं के मध्य लोकप्रियता का कोई विश्वस्त सर्वेक्षण ही आया। बावजूद इसके मुख्यमंत्री पद के लिये अपनी प्रबल दावेदारी दिखाने का सिलसिला कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही जारी हो गई। भाजपा चूकि सत्ता में है और उसे परिवर्तन के नाम पर अपने 20 साल पुराने मुख्यमंत्री को बदलना है, इसलिये चर्चाओं का यह दौर सार्थक लगता है। कांग्रेस दिग्विजय सिंह के शासनकाल के बाद कुछ इस तरह हाशिये पर गई है, कि बिच के 15 महीनों को छोड़कर जब अधिकृत एवं अनाधिकृत दो मुख्यमंत्रियों ने प्रदेश की बागडोर संभाली। कांग्रेस का अस्तित्व ही नहीं रहा, वही कांग्रेस आज मुख्यमंत्री पद के लिये चुनाव पूर्व एक संघर्ष को देख रही है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास मुख्यमंत्री पद के कितने उम्मीदवार हैं और उनका प्रभाव क्षेत्र कितना है, यह जांच का विषय बनता जा रहा है। प्रदेश पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने संबंधी पोस्टर, बेनर प्रदेश में क्या लगे कई नेताओं के भविष्य पर अंधकार छा गया। मीडिया जगत में अब सार्वजनिक हो रही चर्चाओं के अनुसार अजय सिंह राहुल, अरूण यादव और जीतू पटवारी जैसे कांग्रेस के नेता पोस्टरों में अंकित की गई भावी मुख्यमंत्री की इबारत को चुनौती दे रहे है। दूसरी और 15 महीनों के शाशनकाल को चलाने वाले अधिकृत मुख्यमंत्री कमलनाथ वर्तमान में भी अनाधिकृत रूप से घोषित मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ नई राजनीति की इबारत लिख रहे हैं।
कांग्रेस में प्रश्न यह उठ रहा है कि कौन सा नेता प्रदेश में अधिकतम सीटें अपने प्रभाव से कांग्रेस को दिला सकता है। आर्थिक संसाधनों की पूर्ति की जिम्मेवारी हमेशा की तरह कमलनाथ पर होगी, और पार्टी के अंदर और बाहर होने वाले षड़यंत्रों का जिम्मा दिग्विजय सिंह की चाणक्य बुद्धि को सौपा गया माना जाता है। यह विवाद का विषय है कि अजय सिंह राहुल और अरूण यादव अपनी पारिवारिक राजनैतिक विरासत के साथ आखिर ऐसा क्या कर रहे हैं जो कांग्रेस को वोट दिला सके। विन्ध्य क्षेत्र में कमलनाथ, अजय सिंह राहुल को पिछड़ा वर्ग सम्मेलन के दौरान नकारकर यह संदेश दे चुके हैं कि विन्ध्य की जिम्मेवारी किसी अज्ञात व्यक्ति को सौपे जाने की योजना बन चुकी है। दूसरी और अरूण यादव बार-बार कमलनाथ से अपनी निकटता दिखाकर दिग्विजय सिंह के आर्शिवाद को लेकर दोहरी राजनीति के साथ सत्ता शीर्ष पर पहंुचना चाहते हैं। तीसरी महा शाक्ति के रूप में कांग्रेस में जीतू पटवारी ने जन्म लिया है, जिनकी गतिविधियां 15 माह की कांग्रेस सरकार के खंडित होते समय बगावती विधायकों के सम्पर्क में रहने के बाद भी संदिग्ध बनी हुई है। नई पीढ़ी में से यदि सबसे शक्तिवान कोई प्रतिनिधि राजनैतिक पंडितों ने खोजा है तो वह दिग्विजय सिंह के पुत्र ही हो सकते हैं, जिन्हें अल्पकाल में ही केबिनेट स्तर के मंत्री तक पहुंचने का सुख प्राप्त हुआ है। वास्तव में युवा जयवर्धन सिंह अपने पिता की चाणक्य नीति की बुद्धि के भरोसे अचानक सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने का दम रखते है। इन स्थितियों में कांगे्रेस कई मठाधीशों के भविष्य के सपनों पर न सिर्फ आघात होगा बल्कि वे सदा-सदा के लिये समाप्त हो जायेंगे। कांग्रेस में चल रहे इस संग्राम से वर्तमान में प्रदेश में लुप्त हो रही कांग्रेस के निष्क्रिय कार्यकर्ताओं पर कोई असर नहीं है। यह तय है कि यह द्वंद यदि चलता रहा तो कांग्रेस के विधायकों की संख्या वर्तमान से आधी से आधी ही रह जायेगी। मध्यप्रदेश कांग्रेस हाईकमान के लिये कोई मायने नहीं रखता पार्टी को राजनैतिक चंदा देने के अलावा इस राज्य की कोई राजनैतिक उपयोगिता कांग्रेस हाईकमान के लिये नहीं है। कुल मिलाकर भविष्य की सम्भावनाओं को व्यक्तिगत महात्वाकांशा के चक्रव्यूह में अकेला छोड़कर कांग्रेस हाईकमान भविष्य की संभावनाओं वाले मध्यप्रदेश से हाथ धोने जा रहा है।