(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
भाजपा की वरिष्ठ नेत्री कही जानी वाली, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने धीरे-धीरे पार्टी और उसके नेतृत्व की नाम में इतना दम कर दिया है, कि उमा भारती द्वारा कहा जा रहा प्रत्येक वाक्य अब राष्ट्रीय नेतृत्व को भी चुनौती दे रहा है। मध्यप्रदेश की राजनीति में 20 साल पहले दिग्विजय सिंह सरकार को धाराशाही करके भाजपा को सत्ता में लाने वाली उमा भारती मध्यप्रदेश की राजनीति में यदि अपनी तेज तर्राज छवि के लिये पहचानी जाती है, तो उनका अड़ियल वरैया कई बार पार्टी ही नहीं स्वयं उनके लिये भी आत्मघाती बन चुका है।
इन दिनों भाजपा की यह नेत्री अपनी अस्तित्व की खोज में जगह-जगह राजनीति के पत्थरों पर अपना सर मार रही है। उमा भारती मध्यप्रदेश में अपनी पार्टी से शराब बंदी के मुद्दें को लेकर लड़ रही है। दूसरी और कभी राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में लालकृष्ण अडवानी को उनकी ओकाद दिखाने वाली उमा भारती अब भाजपा को के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के अस्तित्व को नाप रही है।
वास्तव में उमा भारती जिस तेजी के साथ मध्यप्रदेश की राजनीति से हुते हुये राष्ट्रीय परिदृष्य में पैदा होती है। उससे भाजपा को धर्म के रास्ते राजनीति में प्रवेश का एक मजबूत रास्ता मिल जाता है। उमा भारती का सार्वजनिक जीवन मंच पर कथा वाचन के साथ प्रारंभ हुआ था। तेज तर्राज उमा भारती को साध्वीं कहा जाता था, और भाजपा की वरिष्ठ नेता विजयाराजे सिंधिया का संरक्षण उन्हें प्राप्त था। उमा भारती ने मिस्टर बंटाधार की छवि स्थापित कर दिग्विजय सिंह की 10 साल पुरानी सरकार को मध्यप्रदेश से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। पर इसके बाद राजनीति ऐसी हुई की मुख्यमंत्री उमा भारती को अल्पकाल में ही दूध में मक्खी की तहर बाहर निकाल कर प्रदेश की राजनीति से बाहर कर दिया गया। उमा भारती ने अपने पैर राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर प्रदेश के मार्ग से स्थापित करने की कोशिश की। पर तब तक भाजपा की गाड़ी सत्ता के मार्ग पर बिना किसी उमा भारती के सहारे के चलने में सक्षम हो चुकी थी।
उमा भारती, भाजपा के लिये अब परिणाम देने वाली वस्तु नहीं एक जिम्मेवारी बन गई थी। उनके तीखे तेवर और बात-बात पर भाजपा के नेताओं से मत भिन्नता उमा भारती के राजनैतिक जीवन में सबसे बड़ा रोडा प्रमाणित हो रही थी। अपने राजनैतिक जीवन में उमा भारती ने कभी अपने किसी विश्वस्त व्यक्ति को हमेशा के लिये अपने साथ नहीं रखा। राजनीति में प्रवेश के पूर्व जिन लोगों को उमा ने अपना मार्ग दर्शक माना था, अपनी राजनीति यात्रा के मध्य में मुख्यमंत्री बनते ही उनसे किनारा कर लिया। वास्तव में उमा भारती ने राजनीति को मजाक समझकर धर्म की बैसाखियों के सहारे बार-बार उसका मार्ग बदलने की कोशिश की। उमा भारती इस कदर अकेली पड़ी की भाजपा ने वर्तमान में कोई भी छोटा या बडा नेता या उनका पुराना समर्थक, अब उनके सम्पर्क में रहने में असुरक्षा महसूस करता है। 
उमा इन दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नड्डा पर आरोप लगाकर उन्हें रायसेन के एक मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा न खोले जाने का दोषी बता रही है। दूसरी ओर राजधानी के मंदिरों में तम्बू लगाकर इस बात के लिये धरना दे रही है। नई शराब नीति बनाई जाए जिसका अनुमोदन बिना किसी अधिकार के उनसे कराया जाए। वास्तव में उमा भारती इन दिनों राजनीति के गलियारों में पागलों की तरह एक रास्ते की तलाश कर ही है जो उन्हें एक बार पुनः स्थापित कर सकें। उनके राजनैतिक जीवन में हुई उठापटक के बाद उनके व्यक्तित्व और राजनैतिक कौशल पर जितना बड़ा संकट आया है वहीं कारण है कि उमा बोखलाकर अपनी ही सेना पर लगातार वार कर रही है। उमा भारती के इन कर्मो की सजा प्रदेश स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को किस हद तक भुगतनी होगी यह समय बतायेगा।