(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश में चुनाव का मौसम शुरू होने को है। इन हालातों में कई मीडिया संस्थान टूटेगें, बिखरेगें और उन्हीं मीडिया संस्थानों से निकले हुये लोग अपने नये आश्रयदाताओं की शरण में जाकर एक चुनावी मीडिया की रचना करेंगे। यह एक परम्परा बन चुकी है कि अपनी जरूरत के अनुसार राजनैतिक दल कुछ नामचीन सम्पादकनुमा पत्रकारों के नेतृत्व में मीडिया हाउस खोलते है। वो मीडिया हाउस केवल चुनाव तक एक विशेष राजनैतिक बहस और लाइन को हवा देता है। फिर धीरे-धीरे अस्तित्वहीन होता जाता है, राजनेता इस तरह के मीडिया में केवल चुनावकाल में ही रूची लेते हैं और परिणाम आने के पश्चात यदि उनका दल सत्ता में आया और वे स्वयं किसी लाभ के पद पर आसीन हो सके तो मीडिया चलता है, अन्यथा उसका अस्तित्व समाचार जगत में नहीं के बाराबर हो जाता है।
इन दिनों मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगातार खबरें आ रही है, कि इस तरह का प्रायोजित मीडिया शहर के अलग-अलग भागों में जन्म लेने के लिये तैयार हो चुका है। जिस दल के आर्थिक सहयोग से यह मीडिया जन्म लेता है विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान उस दल के लिये अफवाये फैलाने, प्रायोजित खबरों को हवा देने और राजनैतिक षंड़यत्रों को सत्य प्रमाणित करने की जिम्मेदारी इसकी होती है।
पत्रकारिता की परिभाषा जिस तरह बदली है, उसमें विवाह के लिये सजने वाले अस्थायी मण्डपों की तरह यह मीडिया संस्थान काम करते है। इसमें काम करने वाले लोगों को कर्मचारी के रूप में जाना जाता है और वे स्वयं जानते हैं कि छोटे से समय में उन्हें संस्थान की आड में अधिक से अधिक व्यक्तिगत लाभ और संबंध अर्जित कर लेते हैं, ताकि संस्थान के बंद होने के उपरांत वे इस संबंधों के दम पर अपनी उपयोगिता कायम रख सकें। वैसे भी पिछले लगभग दो दशक से मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ सहित समूचे देश में मीडिया संस्थानों की दूकाने खुलवाने वाले कई गिरोह सक्रिय है, जिन्होंने कई व्यवसायियों के करोड़ों रूपये संस्थानों की स्थापना के नाम पर व्यय करा दिये है। इस तरह के दलालों का समूह व्यवसायियों को सपने इस तरह भेजता है, कि एक पल के लये उन्हें यह भ्रम हो जाता है कि वे मीडिया संस्थान नहीं परमाणु बम निर्मित करने की एक कम्पनी खोलने जा रहे है। जो खुलने के साथ ही अपनी कीमत करोडों में बना लेगी और मुख्यमंत्री सहित उसके क्षेत्र में आने वाले सभी प्रभावशील लोग व्यवसायी के सामने नतमस्तक लेकर खडे रहेंगे। दलालों का यह समूह व्यवसायियों को यह समझाने मे भी सफल रहता है कि एक मीडिया संस्थान खोलने के मायने राजनीति प्रशासन और अन्य प्रभावकारी क्षेत्रों में पत्रकारिता के कार्डधारी दलालों को स्वच्छंदतापूर्वक प्रवेश करने की अनुमति देना भी होता है।
इस तरह के पाले हुये मीडियाकर्मी संबंधित संस्थान के अन्य व्यवसायों के लिये एक सक्षम दलाल के रूप में कार्य कर सकते है, और अन्य व्यवसायों के लिये सुविधाओं की तलाश करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। यह बात अलग है कि ऐसा होता नहीं है, और अंत में कुछ करोड़ रूपये का नुकसान झेलकर व्यवसायी समूह, मीडिया से अपना हाथ झाड लेता है। मीडिया संस्थाओं की यही कहानी इस वर्ष पुनः विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिये दोहराई जाने वाली है। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में लगभग एक दर्जन से अधिक नये टीवी चेनल अलग-अलग माध्यमों से प्रवेश करने के लिये लगभग तैयार है। इनमें से कुछ श्री कमलनाथ सहित कांग्रेसी नेताओं द्वारा प्रायोजित है, तो कुछ नरोत्तम मिश्रा एवं अन्य भाजपाइयों द्वारा प्रायोजित बताये जाते है। कुल मिलाकार आगामी निर्वाचनों के दो वर्षो में मीडिया क्षेत्र में पुनः एक प्रायोजित क्रांति देखने को मिल सकती है।