(Advisornews.in)

वृंदा मनजीत -

बात निकलेगी तो दू...र तलक जाएगी...

ऐसा ही कुछ सोशल मीडिया का भी है...

भोपाल (एडवाइजर): सोशल मीडिया नई ऊर्जा से भरपूर 21वीं सदी का नया चेहरा है। इसने विश्व दृष्टिकोण की सोच के मापदंडों को बदल दिया है। समाज में एक बड़े बदलाव की नींव रखी जा चुकी है। बेशक, कोई भी बदलाव एकतरफा नहीं होता। अपनी तमाम खूबियों और अच्छे गुणों के बावजूद वह हमेशा अपने साथ कई यक्ष प्रश्न लेकर आता है। सोशल मीडिया भी इससे अछूता नहीं है। समाज की उन्नति, प्रगति और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बावजूद सोशल मीडिया पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है। हालाँकि, आज सोशल मीडिया का उपयोग समाज के सभी आयु वर्ग के लोग करते हैं। घर में रहकर, वर्चुअल दुनिया में, सभी समूह एक दूसरे के साथ संवाद करके और अपने विचारों को एक दूसरे के साथ साझा करके एक नई बौद्धिक दुनिया बना रहे हैं।

कहां से कहां पहुंच गए!

वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि संचार एक भावनात्मक प्रक्रिया है। यदि हम इसे विस्तार से देखें तो कम्युनिकेशन अर्थात संचार प्रक्रिया वह है जो समाज में रहने वाले सदस्यों को एक दूसरे से जोड़ती है। कबूतर से टेलीग्राम तक, अंतर्देशीय पत्र से पोस्टकार्ड तक, एसटीडी से आईएसडी तक और फिर प्रिंट मीडिया से ई-पेपर या रेडियो से टीवी तक संचार की यह विकास यात्रा अभी भी जारी है। आज यह फेसबुक, वाट्सअप, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, टैलीग्राम, मैसेन्जर, युट्युब, जीमेल आदि तक पहुंच चुका है, और यह रुकने वाला भी नहीं। उन्नत और आधुनिक तकनीक से लैस सोशल मीडिया के नए रूप के बिना सरल और सामान्य जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह भी कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया पारंपरिक मीडिया का आधुनिक रूप है। उसका स्वरूप अत्यंत विशाल, बहुआयामी, सर्वशक्तिमान, प्रभावी, अत्यधिक चमत्कारी, चरित्र से लोकतांत्रिक है।

साथ हैं लेकिन पास नहीं

सोशल मीडिया के उद्भव ने दैनिक सूचना और संचार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक नया तरीका अपना लिया है। जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ती जाती है और संचार की हमारी सीमा का विस्तार करती है, सोशल मीडिया दैनिक सामाजिक संपर्क के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बनता जाता है। यह लोगों को एक दूसरे के साथ इस तरह से बातचीत करने का अवसर देता है जो लोगों को सामाजिक रूप से प्रेरित करने के लिए सहायक और आवश्यक है।

विश्वपटल पर सोशल मीडिया

समाज में जो सद्भाव, एकता या सामूहिक चेतना होती है, अभियान चलाए जाते हैं, उसे दूर-दराज के लोगों तक पहुंचाने का काम सोशल मीडिया ने किया है। यानी इसे संपूर्ण विश्व तक पहुंचाया है, जिसका काफी असर देखने को मिल रहा है। एक तरह से मीडिया और समाज का रिश्ता अटूट है। अभिव्यक्ति का विस्तार करने वाला यह माध्यम जनसंचार के लिए बहुत प्रभावी होता है।

सोशल मीडिया समाज का आईना होने के साथ-साथ एक ऐसा साधन भी है जो बिना किसी भेदभाव के सभी को अपने विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने का अवसर देता है। दरअसल, सोशल मीडिया का नेटवर्क इतना बड़ा है कि इसने पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठि में जकड़ रखा है या युं कहें कि लोगों की उंगलियों द्वारा नृत्य करवा रहा है। दुनिया का कोई भी क्षेत्र सोशल मीडिया से दूर नहीं है। चाहे अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बात हो या वैश्विक कोरोना महामारी को चुनौती देने की बात हो, या उस महामारी के दौरान दीया जलाना या थाली बजाना हो, सोशल मीडिया ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई।

महामारी में सोशल मीडिया

यदि उस समय को याद करें तो, जब पहले लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, तो घर पर रहना निम्न वर्ग के लोगों के लिए काफी चिंताजनक हो गया था, जो रोज कमाते और खाते थे। कई परिवार ऐसे थे जिनके पास केवल एक सप्ताह का अनाज ही बचा था। उस समय कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लोगों से उनकी लोकेशन के बारे में जानकारी मांगी और उन्होंने ऐसा किया ताकि अनाज या खाना उन तक पहुंचाया जा सके। खाना बनाने और पहुंचाने वाले सेवादारों के वीडियो भी सोशल मीडिया पर फ्लैश किए गए, जिससे उनकी सेवा में बढ़ौतरी हुई। सेवादारों को केवल इंसानों की आकृति के रूप में देखा जा सकता था क्योंकि उन्होंने पीपीई किट, मास्क और हेडमास्क पहना था ताकि उनके चेहरे दिखाई न दें। यहां तक ​​कि जिन बीमार व्यक्तिओं को दवा, खाना या अन्य चीजों की जरूरत थी, उन्हें भी सोशल मीडिया के जरिए पहुंचाया गया।

कुछ मजदूरों और दूसरे राज्यों में काम करने वाले लोगों को अपने घर जाना था। उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना नाम और नंबर लिखा साथ में यह भी लिखा कि वे कहां जाना चाह रहे थे। कई सेवादार ऐसे थे जिन्होंने उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचा दिया।

लोग घर में काफी घुटन महसूस कर रहे थे। उनमें से कुछ ने संगीत की कक्षाएं शुरू कीं, कुछ ने अपने गानों का प्रदर्शन किया, कुछ हास्य कलाकारों ने अपने कौशल का ऑनलाइन प्रदर्शन करना शुरू किया।

ये वो वक्त था जब सिनेमाघर बंद थे। ऐसे समय में सोशल मीडिया पर ऐसे कई प्लेटफॉर्म ने नाटकीय ढंग से काम किया और बोर हो रहे लोगों का मनोरंजन किया।

आपको याद होगा कि कई छात्र विदेश में फंसे हुए थे। उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया और भारत सरकार से उन्हें वापस बुलाने की व्यवस्था करने की अपील की। और वास्तव में उस समय हमारी सरकार ने न केवल उनके आने-जाने की व्यवस्था की बल्कि यहां से मंत्रियों को भी भेजा जिन्होंने सभी को सकुशल वापस लाने का अद्भुत काम किया।

सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि

पिछले दो सालों के दौरान कई लोगों ने अपने कई रिश्तेदारों को खोया। महामारी के चलते कोई भी बीमारों को देखने नहीं जा सके या उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके। ये वो दौर था जब कोरोना से मृत रिश्तेदारों को छूने तक की मनाही थी। उसका प्लास्टिक से लिपटा शरीर केवल दूर से ही देखा जा सकता था, और केवल दो या तीन लोग जो उसके बहुत करीब थे, उसे मुखाग्नि देने के लिए जा सकते थे। तब लोगों के बैठने या खड़े होने का सवाल ही नहीं उठता था। इसलिए लौकिक क्रियाएं फेसबुक या व्हाट्सएप के माध्यम से ही की जाती थीं। किसी व्यक्ति के अंतिम दर्शन व्हाट्सएप पर किए जा सकते थे और श्रद्धांजलि ऑनलाइन दी जा सकती थी। यह एक दुखद समय था और उस समय सोशल मीडिया कम से कम एक दूसरे तक जानकारी, भावनाएं तो पहुंचा ही सकता था।

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ साबित हुआ

सोशल मीडिया की मदद से हमारे देश के कोने-कोने में बैठे कलाकारों, लेखकों, खिलाडिय़ों की प्रतिभा दुनिया के सामने आ सकी। सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आजादी को अलग-अलग आयाम दिए हैं। सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह भी देखा गया कि महिलाओं और बच्चों के अपराधों और यौन शोषण की घटनाओं के खिलाफ सोशल मीडिया आधारित अभियान हैशटैग 'मी टू' जैसे परिणामी अभियानों के माध्यम से उनके अधिकारों के लिए समर्थन जुटा सके थे। साथ ही सरकार के प्रशासनिक कार्यालयों पर सकारात्मक दबाव बनाकर जनोन्मुख योजनाओं के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। इस तरह लोकतंत्र की आत्मा के लिए सुरक्षा कवच का काम कर सोशल मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बन गया।

एक बात यह भी हुई कि चुनावों के दौरान अधिक से अधिक लोग मतदाता यादि में अपना नाम दर्ज करवाएं और साथ साथ अपना नाम, पता सही है कि नहीं वह जांचना और वृद्ध, अशक्त, दिव्यांगों को मतदान मथक तक न जा सकने कि स्थिति में घर से मतदान करना या मतदान मथक में जाकर कुछ सुविधाओं के बारे में जानना आदि के लिए कुछ ऐप बनाए गए और इस तरह यहां भी सोशियल मीडियाने अपनी छाप छोड़ ही दी।

विश्व की ब्रेकिंग न्यूज अब हथेली में

कुछ समय पहले की बात याद दिलाना चाहती हूं, संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अफ्रीकी अमेरिकी युवक की मृत्यु हो गई। सोशल मीडिया ने इसके विरोध में अहम भूमिका निभाई। एक ओर, सोशल मीडिया में उत्कृष्ट और सराहनीय उपलब्धियों की एक लंबी कतार है। हालांकि, यह भी सच है कि नफरत और हिंसा की आग में सामाजिक समरसता के तनाव को भड़काने वाले संदेशों, भाषणों, फेक न्यूज और हेट स्पीच की बाढ़ ने सोशल मीडिया की विश्वसनीयता, निष्पक्षता और ईमानदारी पर भी सवाल खड़ा कर दिया था।

व्यक्तिगत क्षति

कई बार यह भी देखा गया है कि सोशल मीडिया ही राजनीतिक दलों के लाभ के लिए नैतिक मूल्यों और आदर्शों को दूषित कर रहा है। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की छवि खराब करने में बिल्कुल हिचकिचाते नहीं। यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि जो लोग सोशल मीडिया पर अत्यधिक सक्रिय रहते हैं उनके अवसाद, तनाव, चिंता, और नकारात्मक विचारों से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। सोशल मीडिया में लगातार सक्रिय रहने वाले लोगों को केवल इस बात की चिंता रहती है कि कितने लोगों ने उनकी पोस्ट देखी! उनकी पोस्ट पर कितने लोगों ने कमेंट किया है! उन्हें कितने लाइक मिले हैं! मोबाइल में यह सब चेक करके वे मोबाइल को ही अपना घर और ऑफिस मानने लगते हैं। झुकी हुई गर्दन, अनिद्रा के साथ सूजी हुई आंखें लगातार मोबाइल से चिपकी रहती हैं और होठों पर कभी मुस्कान तो कभी चिंता की लकीरें रहती हैं।

सोशल मीडिया नेटवर्क में रिश्ते

सोशल मीडिया का प्रभाव यहीं तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक संबंधों में दरार, व्यक्तिगत संबंधों में धोखा, कलह और दूरी का कारण बनता है। सोशल मीडिया ने अश्लीलता, अभद्रता, पोर्नोग्राफी, विकृत नग्नता, मुक्त और अप्रतिबंधित अभिव्यक्ति को बढ़ावा दिया। उपभोक्ता जानकारी का अनधिकृत उपयोग। साइबर क्राइम के रूप में नए-नए घोटाले जैसे हैकिंग, फिशिंग, साइबर धमकी, फेक न्यूज, हेट स्पीच, पर्सनल डेटा की चोरी, प्राइवेसी का हनन, जाने-पहचाने लोगों के अकाउंट से धोखाधड़ी से पैसा निकालना आदि देखे और जाने जाते हैं।

कोमल मन भी बच नहीं पाता

ऐसे समय में माता-पिता की हालत बहुत खराब हो जाती है। जो लोग अपने बच्चों को सोशल मीडिया की गंदगी से दूर रखना चाहते थे, उनके लिए सब कुछ थाली में परोसा जाने लगा। किशोरों, युवकों और महिलाओं की शिक्षा में बदलाव आया। युवाओँ द्वारा अपने जीवन का नियंत्रण किसी अजनबी के हाथों में छोड़ देने के कारण युवाओं के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने की खबरें आने लगीं।

तो दोस्तों आइए जानते हैं सोशियल मीडिया के कुछ सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों के बारे में।

सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभाव

दुनिया भर के लोगों से जुड़ने का एक शक्तिशाली टूल। दुनिया में किसी से भी संपर्क किया जा सकता है।

समाज के दलित, शोषित लोगों को मुख्यधारा में लाने की आवाज बना।

व्यापार को मीलों तक पहुंचाने का एक कुशल साधन बन गया।

नए रोजगार का सर्जन हुआ।

नौकरियां ऑनलाइन मिलीं।

आम लोगों में जागरूकता फैलाने का एक गहन साधन बन गया।

जिन लोगों की नृत्य, संगीत, साहित्य, चित्रकला, अन्वेषण और खेल जैसी प्रतिभाओं को दबा दिया जाता था उन्हें दुनिया के सामने अपना हुनर दिखाने का मौका मिला।

पर्यटन सुविधाओं और स्थानों की जानकारी मिलने के बाद लोग विभिन्न स्थानों पर घूम ने जाने लगे।

मीलों दूर रहने वाले लोगों को उनके प्रियजनों से जोड़ दिया। सोशल मीडिया की मदद से दूर रहने वाले रिश्तेदारों की जानकारी मिलती रही और उनसे लगातार संपर्क में रहने का मौका मिला।

रिश्ते के बंधन को मजबूत करने में मदद मिली। ऐसी स्थितियों में पति-पत्नी एक-दूसरे से जुड़े रह सके जब वे एक-दूसरे से दूर काम कर रहे थे या काम के कारण बार-बार यात्रा कर रहे थे। इस प्रकार वे अपने बंधन को मजबूत रख सके।

आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग अच्छा है। सोशल मीडिया के जरिए किसी के व्यक्तित्व के बारे में जाना जा सका। कई बार लोग अपनी पसंद, नापसंद, विचार और आदतों के बारे में बेहद ईमानदार पोस्ट करते रहे।

सोशल मीडिया रिश्तों को जोड़े रखने में काफी मददगार साबित होता रहा। सोशल मीडिया द्वारा किसी के जन्मदिन, शादी की तारीख, बच्चे के जन्म आदि की तारीखों पर वह तारीख याद दिलाई जाती है और इस तरह समय पर संदेश भेजा जा सकता है।

हमारी कई यादें हैं जो अतीत बन जाती हैं लेकिन सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई यादें हमें हर साल याद दिलाई जाती हैं। ऐसे में ये यादें आपसी रिश्तों को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।

सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभाव

शोधकर्ताओं का कहना है कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग मस्तिष्क को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है, जिससे अवसाद हो सकता है।

सोशियल मीडियाः

साइबर बुलिंग को बढ़ावा देता है।

नकली समाचार और अभद्र भाषा फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

गोपनीयता की कमी के कारण अक्सर व्यक्तिगत डेटा चोरी होने का खतरा होता है।

रिश्तों और पैसों में धोखाधड़ी का खतरा ज्यादा है।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

भले ही सोशल मीडिया रिश्तों को मजबूत बनाए रखने के लिए जाना जाता है, लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल अक्सर रिश्तों में खटास पैदा कर सकता है। सोशल मीडिया से अधिक जुड़ाव आमने-सामने संपर्क को कम करता है।

इसके विपरीत भी हो सकता है जब पति सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने पर पत्नी उपेक्षित महसूस करती है।

एक शोध के आधार पर यह पाया गया है कि जब पति या पत्नी में से किसी एक को लगता है कि उनका साथी उनकी उपेक्षा कर रहा है तो उनके मन में नकारात्मक भाव उत्पन्न हो सकते हैं जो कभी-कभी लड़ाई-झगड़े तक ले जाते हैं।

सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग लत में बदल सकता है। इससे कई समस्याएं हो सकती हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

मोबाइल पर मुंह लगाकर लंबे समय तक सोशल मीडिया में डूबे रहने से मन और मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर में कई विकार भी उत्पन्न हो जाते हैं। ज्यादा से ज्यादा अकेलापन महसूस होने से उसकी चिंता बढ़ जाती है, व्यक्ति उदास हो जाता है और उसमें नकारात्मकता भी बढ़ जाती है।

भारत में सोशल मीडिया

सोशल मीडिया ने समाज के छोटे-छोटे वर्गों को भी समाज की मुख्यधारा से जोड़ दिया है और वे अपने विचारों को खुलकर व्यक्त कर सकते हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत में 80 करोड़ से ज्यादा लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सोशल मीडिया यूजर्स करीब दो से चार घंटे सोशल मीडिया पर बिताते हैं।

सोशल मीडिया का दुरुपयोग

साल 2018-19 में फेसबुक, ट्विटर समेत कई साइट्स पर 3245 आपत्तिजनक सामग्री की शिकायत की गई, जिसमें से करीब 2662 सामग्री को तुरंत ही हटा दिया गया। ऐसी सामग्री में ज्यादातर धार्मिक भावनाओं और राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान होता है। यह सिलसिला अब भी जारी है। ऐतिहासिक तथ्यों को अक्सर तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है। इस प्रकार के समाचार या सामग्री देश की प्रगति में बाधक बनते हैं और इसके अनेक परिणाम भविष्य में देखने को मिल सकते हैं।

सोशल मीडिया और फेक न्यूज पर कानून

भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म संचार मंत्रालय (सूचना प्रौद्योगिकी) अधिनियम 2008 के दायरे में आते हैं। यदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अदालतों या कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा किसी सामग्री को हटाने का आदेश दिया जाता है तो उन संस्थाओं के लिए यह कार्य अनिवार्य हो जाता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में रिपोर्टिंग तंत्र भी हैं जो यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि क्या कोई सामग्री सामुदायिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रही है, और यदि ऐसा है तो इसे प्लेटफॉर्म से हटा दिया जाता है। फेक न्यूज को रोकने के लिए भारत में कोई खास कानून नहीं है लेकिन भारत में कई संस्थाएं हैं जो इस मामले पर काम कर रही हैं।

मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रभाव

सोशल मीडिया का इस्तेमाल अधिकतर युवा करते हैं। यही कारण है कि युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। जानकारों का कहना है कि युवाओं के व्यवहार और जीवनशैली में असामान्यता देखने को मिल रही है। सोशल मीडिया का उनकी शिक्षा और व्यक्तिगत संबंधों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। कुछ स्वास्थ्य संगठनों का कहना है कि युवा लोग अवसाद या चिंता से पीड़ित हैं लेकिन या तो वे इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं या उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।

अंत में...

सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को एक नया आयाम दिया है। आज सोशल मीडिया के माध्यम से हर कोई अपने विचारों को बिना किसी डर के व्यक्त कर सकता है और हजारों लोगों तक पहुंच सकता है, लेकिन सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने इसे एक खतरनाक उपकरण के रूप में भी स्थापित कर दिया है जिसके कारण इसके नियमन की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है। . इसलिए, निजता के अधिकार का उल्लंघन किए बिना सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए सभी पक्षों के परामर्श से नए विकल्प तलाशने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इसके संभावित दुष्प्रभावों से बचा जा सके।

इसमें कोई दो राय नहीं कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल और काम करने के तरीके में काफी बदलाव आया है। यह न केवल सूचनाओं, विचारों और भावनाओं के आदान-प्रदान के रूप में कार्य करता है, बल्कि अक्सर अफवाहें फैलाने, चरित्र हनन, धमकी, नफरत और द्वेष फैलाने के एक त्वरित माध्यम के रूप में इसका उपयोग किया जाता है।

हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक मीडिया की आजादी के मामले में भारत की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि भारत में मीडिया और सोशल मीडिया में अभिव्यक्ति की आजादी की स्थिति दुनिया के कई देशों से बेहतर कही जाती है। फिलहाल कोई गंभीर खतरा नहीं है।

सोशल मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे के संपर्क में रहें लेकिन दूसरों को चोट पहुंचाने या नीचा दिखाने की कोशिश करने से बेहतर है कि आप खुद को बड़ा बनाने की कोशिश करें।