(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): हजारों किमी पैदल चलकर, कांग्रेस ने जिस यात्रा के माध्यम से अपने पुनर्जीवन की कल्पना की थी, वह एक बयान के कारण समाप्ति के पूर्व ही विवादास्पद बन गई। बयान दिये जाने के लगभग 24 घंटे बाद तक राजनीति के जानकारों, नेताओं और विश्लेषण करने वालों ने अचानक बयान दिये जाने के कारणों को टीव्ही समाचारों में दिखायी गयी जयराम रमेश की झुंझलाहट और उसी वक्त दिग्विजय सिंह के चेहरे के बदलते हुये भावों को देखकर अपनी-अपनी व्याख्या शुरू कर दी।
यह मत सर्वमान्य है कि दिग्विजय सिंह जैसा वरिष्ठ नेता, जो स्वयं इस भारत जोड़ों यात्रा का समन्वयक था स्वयं आत्महन्ता बनके इस कार्य को क्यों करेगा। विश्लेषण करने वालों का यह मानना है, कि दिग्विजय सिंह पूर्व में भी अलग-अलग समय में विवादास्पद बयान देकर, स्वयं को मजबूत और कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश करते रहें हैं। बयानों के दौर से दिग्विजय सिंह को मान और प्रतिष्ठा एक कूटनीतिज्ञ और संघ विरोधी नेता के रूप में मिलनी शुरू हुई थी। भारत जोड़ों यात्रा के जिस चरण में बयान दिया गया है, वह स्पष्ट करता है कि इस बार दिग्विजय सिंह से एक बड़ी चूक हो गई। जम्मू-कश्मीर की जमीन पर, जहां आंतक और उसकी चर्चा प्राथमिक है में दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस हाई कमान राहुल गांधी को अपने प्रति अधिक आकृष्ट करने के लिये इस बयान को दिया। इसी तरह का बयान पूर्व में भी कांग्रेस के कई नेता दे चुके थे, और पार्टी नेतृत्व बने उस पर अपनी मौन सहमति बना ली थी। दिग्विजय सिंह को सहज यह अंदाज था, कि यात्रा के समापन के पूर्व इस बड़े बयान को देकर, वे कांग्रेस को कूटनीतिक धरातल पर अधिक मजबूत कर सकेंगे, और कश्मीर की जमीन से राहुल गांधी के प्रति अपना समर्पण अधिक से अधिक जाहिर कर सकेंगे।
चर्चा का दूसरा पहलू यह है, कि दिग्विजय सिंह के पहले कार्यकाल में ही मुख्यमंत्री पद संभालते ही वे पूर्व प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिम्हाराव के केम्प में चले गये थे। जहां जाकर उन्होंने श्री पीव्ही नरसिम्हाराव के साथ रहकर उनके परम्परागत विरोधी और अपने गुरू अर्जुन सिंह को भी ठिकाने लगा दिया था। दिग्विजय सिंह, श्री पीव्ही नरसिम्हाराव के जाने के बाद भी गांधी परिवार के नेतृत्व को कांग्रेस के कई नेताओं की तरह बदलने के हामी रहे हैं। वे राजनीति में एक स्वतंत्र मार्ग चाहते थे, जिसे प्राप्त करने के लिये उन्होंने अपनी कूटनीतिक बुद्धि के भरोसे रास्ता बनाया था। नर्मदा परिक्रमा के अनुभव के कारण इन्हें भारत जोड़ों यात्रा में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ था। वास्ताव में गोवा में रातो रात कांग्रेस के विधायक बिक जाने के बाद और बहुमत के बाद भी गोवा में भाजपा की सरकार बन जाने से दिग्विजय सिंह अपनी विश्वसनीयता खो चुके थे, जिसे प्राप्त करने में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक बड़ी भूमिका निभाई। यही कारण था, कि कमलनाथ की बैसाखियों के खड़े होने के बाद कुछ दिन बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी अहमियत को और मजबूत करने के लिये दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी को प्रभावित करने के लिये यह कार्ड खेला।
कुछ जानकारों का मानना है, कि वास्तव में जब जयराम रमेश ने टी.व्ही. कैमरा वालों का माइक हटाकर दिग्विजय सिंह को पीछे धक्का दिया, वो स्पष्ट करता है कि दिग्विजय सिंह द्वारा दिये गये बयान से होने वाले नुकसान का आकलन राहुल गांधी और जयराम रमेश को भलिभांति हो गया था। जब दिग्विजय सिंह को पीछे धकेला गया तो उनके चेहरे पर प्रगट हो रहे भाव यह स्पष्ट कर रहे थे, कि उन्हें अपराध बोध हो चूका है और वे इस गड्ढे का भरने के लिये किसी नई रणनीति की तैयारी में लग गये हैं। 
वास्तव में कांग्रेस में महत्वाकांक्षी नेताओं की भीड़ है, हर नेता का अपना एजेंडा है। हाई कमान के रूप में गांधी परिवार कांगेस के कई नेताओं को स्वीकार्य नहीं है। इन स्थितियों में लम्बे समय से बड़े, छोटे, अनुभवी और नये नेताओं के खेमें कांग्रेस मे बन रहें हैं। 
दुर्भाग्य यह है कि कांग्रेस का हाई कमान भी इस भीड़ में अपने लिये विश्वस्त, अनुभवी और ईमानदार नेताओं को चयन नहीं कर पा रहा है। इतना ही नहीं हाई कमान पिछले कई वर्षो से उन नेताओं को पदोन्नत कर रहा है जो केवल अवसर की ताक में है कि कब उन्हें मौका मिले और वो कांग्रेस को गांधी परिवार से मुक्त कर सकें। राजनीति के जानने वाले यह मानते है कि बिना गांधी परिवार के कांग्रेस की एकजुटता की कल्पना करना व्यर्थ है। इन स्थितियों में राहुल गांधी की पदयात्रा को विवादास्पद एवं अर्थहीन बनाकर कंग्रेस ने एक सुनहरे अवसर को खो दिया है, जिसका नुकसान षड़यंत्रकारी नेताओं को नहीं, कांग्रेस को भुगतना होगा।