(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
सिर्फ 6 दिन बचे थे, जब कांग्रेस कई वर्षो के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में एक जन आंदोलन रूपी भारत जोड़ों यात्रा को सम्पन्न करने जा रही थी। एक ऐसा अवसर जब यह उम्मीद बंधी थी कि वर्षो से बिखरी हुई कांग्रेस, भाजपा के नरेन्द्र मोदी के तूफान को वर्ष 2024 में इस यात्रा से बने हुये सम्पर्कों के माध्यम से चुनौती दे सकेगी। देशभर के विपक्षी दलों में शत प्रतिशत न सही, पर एक बड़ा हिस्सा राहुल गांधी को भी नेता के रूप में देखने लगा था। कांग्रेस में इस बात का उत्साह था, कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक चल रही यह यात्रा वास्तव में भारत को कांग्रेस के लिये एक बार पुनः जोड़ने में कामयाब होगी।
परंतु यह हो न सका, और यात्रा का संयोजन करने वाले वाले ने ही यात्रा समाप्त होने के 6 दिन पूर्व राहुल गांधी के रथ को न सिर्फ पंचर कर दिया, बल्कि एक साथ रथ के चारों पहिये ही निकाल दिये। अपनी पारिवारिक नर्मदा यात्रा परिक्रमा के अनुभव के आधार पर, देश के वरिष्ठ एवं सर्वज्ञानी कूटनीतिज्ञ दिग्विजय सिंह ने इस यात्रा का संयोजक बनना स्वीकार किया था। आज अचानक यात्रा समाप्ति के 6 दिन पूर्व दिग्विजय सिंह ने सर्जिकल स्ट्राइक पर सरकार द्वारा सबूत न दिये जाने की बात कह के राहुल गांधी को, इस महायात्रा को समाप्त होने के पूर्व ही एक खाई में ढ़केल दिया। राहुल गांधी, जयराम रमेश सहित कांग्रेस के कई नेताओं ने दिग्विजय सिंह द्वारा दिये गये बयान को उनका निजी बयान बताया है। पर यात्रा को, राहुल गांधी को, कांग्रेस को जो आघात लगना अनुमानित था वह लग चुका है। दिग्विजय सिंह द्वारा दिया गया यह बयान पूरी यात्रा की उपलब्धि और सफलता को चुनौती देता हुआ कांग्रेस के मानसिक दिवालियापन की ओर इशारा करता है। 
कांग्रेस लाख दांवा करें, कि यह बयान दिग्विजय सिंह का निजी था। पर देश की जनता को भलीभांति याद है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद, कांग्रेस की ओर से इसकी सत्यता पर कई प्रश्न चिन्ह खड़े किये गये थे, और स्ट्राइक की प्रामाणिकता पर संदेह भी व्यक्त किया गया था। स्थिति यहां तक बिगड़ गई कि यात्रा के दौरान दिग्विजय सिंह का मुह बंद रखने के लिये जयराम रमेश को उनके टीवी इंटरव्यू से बालात केमरा और माइक दूर हटाना पड़ा।
प्रश्न यह उठ रहा है, कि राहुल गांधी की इस यात्रा की सफलता से कांग्रेस का कौन सा वर्ग सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस कर रहा था। वे नेता कौन से हैं, जो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को राजनैतिक रूप से समाप्त कर कांग्रेस के नेतृत्व को गांधी परिवार से बाहर ले जाना चाहते हैं। वास्तव में यह माना जाता है, कि यह षंड़यत्र श्री पीव्ही नरसिम्हाराव के कार्यकाल के दौरान शुरू हुआ था, और इसे आज भी निरन्तर रखने के लिये कांग्रेस का एक वर्ग प्रयत्नशील है, चाहे इसके लिये कांग्रेस को भी कुर्बान क्यों न करना पड़े। 
दिग्विजय सिंह एक अनुभवी नेता है। वे जानते है कि कहां कंकड फेंकने से कौनसी दिशा में नदी की धारा कितने समय बाद परिवर्तित हो सकती है। मध्यप्रदेश की राजनीति को उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सारे वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति के बाद भी अपनी जकड़ में ले रखा है। वास्तव राहुल गांधी की यह यात्रा और अपने अनुभव के आधार पर यात्रा में यात्रा के संयोजक बनने का अवसर भुनाने में दिग्विजय सिंह ने कोई कमी नहीं छोड़ी है। यदि 6 दिन तक यह यात्रा इतने बड़े विवाद में पड़े बिना अपने लक्ष्य पर पहुंच जाती, तो राहुल गांधी संभवतः देश के निर्विवाद युवा नेता मान लिये जाते। गांधी परिवार का वर्चस्व कांग्रेस में एक बार फिर से लम्बे समय के लिये स्थापित हो जाता। परंतु राजनीति को जानने वाले यह मानते है कि इस साहसिक कदम के माध्यम से एक बार फिर, कांग्रेस की गाड़ी पटरी से उतर गई है, और न जाने किस दिशा की ओर बड़ रही है। अब अंतिम दिवस के विपक्ष के कौन-कौन से नेता, इस यात्रा के समापन में सहभागी होगें यह देखना होगा। यहीं आकलन बतायेगा कि राहुल गांधी की यात्रा, उनके द्वारा पार्टी बचाने के लिये किया गया संघर्ष कितना सफल रहा और दिग्विजय सिंह जी द्वारा छेड़ी गई बयानों की राजनीति में यात्रा के अर्थ को विपक्षी दलों के नेताओं के सामने कितना बदल दिया। यह तय है कि यात्रा का समापन अब इस विवाद के साथ ही होगा, जिसमें भाग लेने वाले नेता भी विवाद के पक्ष या विपक्ष में स्वयं अपने आप को खड़ा हुआ पायेंगे। इतना तय है कि मध्यप्रदेश के एक राजनेता ने राज्य के बाद राष्ट्रीय स्तर पर एक बार पुनः पार्टी उसके राष्ट्रीय नेतृत्व, लक्ष्य और स्वीकार्यता को पुनः खतरे में डाल दिया है।