(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 10 महीनें का समय शेष है। कांग्रेस पूरी तरह अश्वस्त है कि इस बार वो अपनी सरकार का गठन कमलनाथजी के नेतृत्व में करके रहेगी। इसके लिये कांग्रेस प्रतिदिन नई रणनीति बनाने में जुटी हुई है। कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में कमलनाथजी कांग्रेस प्रकोष्ठों के अध्यक्षों के साथ बैठक कर रहें है। साथ ही यह भी प्रमाणित कर रहे हैं कि 5 फरवरी से शुरू होने वाली भाजपा की विकास यात्रा वास्ताव में एक धोखा है। 
प्रदेश अध्यक्ष, मध्यप्रदेश के सभी जिला पदाधिकारियों के कामकाज का भी परीक्षण कर रहें हैं। साथ ही यह विश्वास भी व्यक्त कर रहे है कि उन्हें मतदाता पर पूरा भरोसा है कि वे सही फैसला करेंगे। वास्तव में अगला चुनाव राज्य में कमलनाथजी के चेहरे पर ही लड़ा जाना है। यह बात अलग है कि कमलनाथ का आम मतदाताओं के साथ सम्पर्क कितना है। विभिन्न सर्वेक्षण रिपोर्ट और स्थापित पंचांग के निर्माता लाला रामस्वरूप के ज्योतिष राज्य में सत्ता परिवर्तन का योग देख रहे हंै। कमलनाथ की शैली में अगले चुनाव के लिये मध्यप्रदेश कितना तैयार है, इस बात की विवेचना भारतीय जनता पार्टी हर स्तर पर कर रही है। भाजपा को यह संदेह है कि 19 वर्ष पुरानी उसकी सरकार के विरूद्ध एक जनमत तैयार हो चुका है। परंतु भाजपा यह मानने के लिये तैयार नहीं है कि यह जनमत कांग्रेस के पक्ष में मत में परिवर्तित होकर चला जायेगा।
भाजपा को यह उम्मीद है कि 18 वर्षो में जिस तरह चना-गुड खाकर मैदान में संघर्ष करने वाला उसका कार्यकर्ता वर्तमान में बिना ड्रायफ्रूट के और रात की व्यवस्था में घर से निकलने को तैयार नहीं हैं। वो अंतिम क्षणों में पुनः सत्ता सुख पाने के लिये हिन्दू राष्ट्र के नाम पर और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर एक बार पुनः मतदान करेगा। 
कांग्रेस, यू तो पूरे राज्य में टुकडों में बंटी हुई है। जिसे संगठित करने की राजनैतिक बाजीगरी दिखा पाने में कमलनाथ अब तक सफल नहीं हुये हैं। कांग्रेस में यह उम्मीद की जा रही है कि मैदानी संभावनाओं को मजबूत बनाने और बाजीगरी को प्रदर्शित करने के लिये लिये अन्त में दिग्विजय सिंह फिर कमलनाथ के सारथी बनेंगे । एक बार कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी यदि मैदान में अपने 5 वर्ष पूर्व के सामन्जस्य को बरकरार रखते हुये आ गई तो कांग्रेस को अपने लोभी कार्यकर्ताओं, जिले के छुटभइयें नेताओं पर आश्रित नहीं होना पडेगा। टिकटों को वितरण राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण संस्थाओं के माध्यम से होगा और विजय की यात्रा में कोई विरोध कहीं से सामने नहीं आ पायेगा। इन स्थितियों आज से जिले के नेताओं को प्रोत्साहित करना कल उनकी महत्वाकांशाओं को अलग-अलग पदों में वितरित करने पर जाकर ठहरेगा। कांग्रेस में विचार धारा का संकट नहीं है, पर कांग्रेस का संगठन पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गया है। वर्तमान समय में भी लगातार नेता कांग्रेस से पलायन कर रहे हैं और यह संकट भविष्य में और गहराने वाला है। प्राप्त संकेतों के अनुसार कांग्रेस के 32 से अधिक वे नेता जो  मार्गदर्शन कर सकते है और अनुभव के आधार पर कांगे्रस की नई पीढ़ी को कुछ दे सकते है, परिवर्तन के राह में बुलावे का इंतजार कर रहे हैं। यह स्थिति भाजपा में भी है पर कांग्रेस दूसरे दलों के नेताओं को स्वयं में शामिल करने के लिये तैयार नजर नहीं आती। अगला महाभारत भाजपा, प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे और शिवराज सिंह के कूटनीति के भरोसे लडेगी। जबकि कांग्रेस निजी सर्वेक्षण कम्पनियों के बनाये आधार पर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के भरोसे लड़ने उतरेगी। परिणाम क्या होगा इसका सहज अंदाज नहीं लगाया जा सकता। पर वर्तमान स्थिति में जमीन के स्थान पर यांत्रिक सत्य कांग्रेस पर कहीं अधिक हावी है। यदि इस आधार पर कांग्रेस ने विजय हासिल की तो भविष्य में कम्प्यूटर के माध्यम से ही चुनाव की योजना बनेगी, उसमें जनता के सवाल और भावनाएं कही स्थान प्राप्त नहीं कर सकेंगी।