.हे नरबदा मइया हमें माफ कर दे..

तेरे तो पूत कपूत हो गए....

अरुण दीक्षित
भोपाल(एडवाइजर):
अपने एमपी की लाइफ लाइन मानी जाने वाली नर्मदा नदी इन दिनों एक बार फिर चर्चा में है! सब जानते हैं कि नर्मदा अपने आप में अनूठी नदी है। भगवान शिव की पुत्री नर्मदा कुआंरी मानी जाती हैं। लाखों लोग उसकी परिक्रमा करते हैं! बड़े बड़े नेता, बाबा बैरागी,गृहस्थ सभी करीब 3334 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा करके खुद को धन्य मानते हैं। एमपी की जीवनदायिनी नर्मदा, नर्मदा सागर बांध बनने के बाद पड़ोसी राज्य गुजरात को पानी के साथ साथ पैसा भी कमा कर दे रही है।
इसी नर्मदा को इन दिनों बहुत बातें हो रही हैं। वैसे तो खुद को गंगा पुत्र बताने वाले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके महात्म्य की चर्चा कर चुके हैं। लेकिन इस समय उनकी चर्चा उसके भीतर चल रहे अवैध खनन से दुखी एक युवा साधू द्वारा बनाए गए एक वीडियो को लेकर हो रही है।
 युवा स्वामी रामशंकर इन दिनों नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं। वह अपना लैपटॉप और मोबाइल साथ रखते हैं।सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय रहते हैं। इसी वजह से उन्हें डिजिटल बाबा भी कहा जाता है।
 पिछले सप्ताह स्वामी रामशंकर अपनी यात्रा के 62 वें दिन एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चुनाव क्षेत्र बुधनी के इलाके से गुजर रहे थे तो उन्होंने सैकड़ों मशीनों को नर्मदा का सीना छलनी करते देखा। उन्होंने पैदल चलते हुए छीपानेर इलाके में नर्मदा का एक वीडियो बनाया। साथ ही अपनी आवाज में हालात का पूरा ब्योरा भी दिया। उसे सोशल मीडिया पर डाल दिया।
 हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बैजनाथ कस्बे के नागेश्वर महादेव मंदिर में डेरा जमाए डिजिटल बाबा नर्मदा की हालत देख कर इतने द्रवित हुए कि उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री से यह अपील की कि यह तो आपका इलाका है। कम से कम यहां तो नर्मदा को बचाइए। उनके इस वीडियो को हजारों लोगों ने देखा और सैकड़ों ने शेयर किया। नर्मदा में चल रहे ट्रकों और मशीनों को देख बाबा इतने भावुक हुए कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि लगता है कि इसमें मुख्यमंत्री को भी हिस्सा मिलता है।
 बताते हैं कि वह वीडियो इतना वायरल हुआ कि सीहोर जिले के प्रशासनिक अधिकारियों ने बाबा को खोज कर उनसे वीडियो फेसबुक से हटवा दिया। हालांकि जन दवाब में बाबा ने वह विडियो फिर अप लोड कर दिया और आगे बढ़ गए।
 लेकिन इसके साथ ही नर्मदा नदी में सरकारी संरक्षण में चल रहे अवैध खनन का मामला एक बार फिर चर्चा में आ गया है।
 इस पर बात करने से पहले नर्मदा और एमपी की बीजेपी सरकार से इसके रिश्ते की गहराई जान लेते हैं।सीएम शिवराज सिंह चौहान नर्मदा के तट पर स्थित सीहोर जिले के जैत गांव में पैदा हुए हैं। उनका दावा है कि उनका बचपन नर्मदा मइया की गोद में ही बीता है। वह खुद को नर्मदा पुत्र भी बताते हैं। उन्होंने और उनकी सरकार ने नर्मदा को हमेशा महत्व दिया है। सरकारी खजाने की बड़ी रकम भी इस पर खर्च की है।घोषणाएं और दावे भी खूब किए हैं। यह भी संयोग है कि इनके ही शासन काल में नर्मदा का सबसे ज्यादा दोहन हुआ है।
 अपने पिछले शासन काल में शिवराज ने नर्मदा के संरक्षण के लिए सरकारी खर्च पर नर्मदा सेवा यात्रा निकाली थी।11 दिसंबर 2016 को नर्मदा के उदगम स्थल अमरकंटक से निकली यह यात्रा करीब 5 महीने चली थी। यह यात्रा 11 मई को अमरकंटक में ही खत्म हुई थी। इसकी शुरुआत के समय गुजरात के तब के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी भी  अमरकंटक आए थे। नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान शिवराज के गांव जैत में भी बड़ा ही भव्य आयोजन हुआ था।
उस समय शिवराज सिंह ने नर्मदा के अवैध दोहन को बंद कराने,उसके किनारे के गांवों में शराब की बिक्री बंद कराने,नदी के किनारे रसायनिक खेती बंद कराने और उसके घाटों का संरक्षण से जुड़ी कई घोषणाएं की थीं।तब उनकी सरकार ने इस यात्रा पर करोड़ों रुपए सरकारी खजाने से खर्च किए थे। उनकी इस यात्रा में दलाई लामा जैसी कई बड़ी बड़ी हस्तियां भी शामिल हुई थीं।
  इसी यात्रा के दौरान शिवराज सरकार ने तीन मई 2017 को विधानसभा में एक सरकारी संकल्प पारित कराया। इस संकल्प में नर्मदा नदी को जीवित इकाई घोषित करने की बात कही गई थी। इसके बाद शिवराज कैबिनेट ने भी 7 मई को इस प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दी।
 तब सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने मीडिया को बताया था कि सरकार इस संबंध में एक विधेयक भी विधानसभा में लाएगी। इसके लिए एक नियामक ढांचा बनाया जायेगा। नदी का एक संरक्षक घोषित किया जाएगा जो नदी की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।
 इससे पहले शासकीय संकल्प पर चर्चा का उत्तर देते हुए खुद शिवराज सिंह ने विधानसभा में यह ऐलान किया था कि नर्मदा को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को वे सख्त दंड दिलाएंगे! उन्होंने उनकी नर्मदा सेवा पर सवाल उठा रहे विपक्ष से भी यह कहा था -नर्मदा को वाद विवाद का विषय न बनाएं! यह वाद विवाद का नही आस्था का विषय है।
 उस समय मैंने खुद विधानसभा में शिवराज का भाषण सुना था। नर्मदा सेवा यात्रा भी देखी थी। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि अगर उनके कहे शब्दों के 15 प्रतिशत पर भी अमल हो जाता तो नर्मदा सचमुच "जीवित" नजर आती।
 एक बात यह भी बताते चलें! नर्मदा पुत्र शिवराज को नर्मदा को जीवित व्यक्ति का दर्जा देने का ख्याल उत्तराखंड हाई कोर्ट के एक फैसले से आया था। उनकी नर्मदा सेवा यात्रा के हाई कोर्ट की एक पीठ ने 20 मार्च 2017 को गंगा -यमुना और उनकी सहयोगी नदियों को जीवित व्यक्ति का अधिकार दिया था। साथ ही राज्य के मुख्यसचिव,महाअधिवक्ता और नमामि गंगे परियोजना की उत्तराखंड इकाई के निदेशक को इन नदियों का अभिभावक घोषित किया था।
 अब यह तो पता नही चल पाया कि नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान किए गए बायदों  और विधानसभा में मुख्यमंत्री की घोषणा पर कितना अमल हुआ।न ही विधानसभा में विधेयक आने की खबर है। लेकिन नर्मदा की दुर्गति जारी है।
 यहां यह भी बताना जरूरी है कि नर्मदा सेवा यात्रा के दौरान बीजेपी के ही तेज तर्रार नेता कमल पटेल ने नर्मदा के दोहन को लेकर अपनी ही सरकार पर प्रमाण सहित गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने सबूतों के साथ केंद्र सरकार और नागपुर से भी शिकायत की थी। आजकल कमल पटेल शिवराज सरकार में कृषि मंत्री हैं।अब वे नर्मदा की बातें नही करते हैं।
बाद में शिवराज सरकार गई।  कांग्रेस सरकार आई। लेकिन नर्मदा का अवैध दोहन नही रुका।15 महीने में ही कुछ कांग्रेसी नेता नर्मदा की रेत से मालामाल हो गए थे।
 कमलनाथ की सरकार गिरी।शिवराज फिर सीएम की कुर्सी पर काबिज हुए।नर्मदा के खनन को लेकर तरह तरह के कानून बने।गांव पंचायतों को हक दिए गए।फिर वापस लिए गए।बड़ी बड़ी कंपनियों ने अरबों रुपए में नर्मदा से रेत निकालने  के ठेके लिए।बाहर के खिलाड़ी नर्मदा खोदने आए।बड़ी बड़ी हस्तियों के नाम उनके साथ आए।बहुत कुछ हुआ।
 अगर कुछ नही हुआ तो वह यह कि नर्मदा की लूट नही रुकी।ठेका लेने वाली कंपनियों के अलावा रसूखदार लोगों ने नर्मदा को लूटना जारी रखा।कानून के मुताबिक नर्मदा से मशीनों के जरिए रेत नही निकाली जा सकती है।लेकिन सब जानते हैं कि नर्मदा की तलहटी में सैकड़ों मशीनें मौजूद हैं।वे उसका सीना छलनी कर रही हैं।
 जो दृश्य नर्मदा परिक्रमा कर रहे युवा संन्यासी ने देखा वह कलेक्टर एसपी,मंत्री, सांसद,विधायक और जनता सब देख रहे हैं।लेकिन सब आंखे बंद किए रहते हैं।बाबा ने वीडियो डाल दिया तो हंगामा हो गया।
 ऐसा नहीं है कि नर्मदा के भरोसे जीवनयापन करने वाले  स्थानीय लोगों ने नर्मदा के अवैध दोहन का विरोध नही किया।अभी पिछले महीने की 25 तारीख को ही रेहटी तहसील के जाजना,टप्पर और मठ्ठागांव के लोगों ने मुख्यमंत्री से लेकर थानेदार तक यह शिकायत की कि उनके इलाके में मशीनों से नर्मदा की रेत निकाली जा रही है।गांव वालों ने एक पॉकलिन मशीन के नदी में पलट जाने की भी खबर पुलिस को दी।लेकिन उनकी बात सुने जाने की बजाय उल्टे उन्हें ही धमकाया गया।आरोप है कि खनन विभाग के अफसरों ने गांव में जाकर लोगों से शिकायत वापस लेने को कहा।साथ ही धमकी भी दी।अब वे अपनी जान बचाते घूम रहे हैं।नर्मदा पुत्र मुख्यमंत्री भी नही सुन रहे।
 ऐसा नहीं कि नौकरशाही इस खेल से अछूती है।कुछ साल पहले नर्मदापुरम जिले के कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर के बीच रेत को लेकर हुआ झगड़ा आज तक चर्चा में रहता है।
 मजे की बात यह है कि खुद को नर्मदा भक्त बताने वाले ज्यादातर नेताओं की समृद्धि का जरिया नर्मदा ही है।खुद मुख्यमंत्री और उनके परिजनों पर विधानसभा के भीतर और बाहर नर्मदा के अवैध खनन को लेकर आरोप लगते रहे हैं।आज भी "चौहान" लिखे डंपर नर्मदा से चारों दिशाओं में निर्वाध दौड़ते हैं।किसी क्या मजाल जो रोक ले।वे चौहान कौन हैं नही मालूम!
 सब जानते हैं कि "चौहानों" की पकड़ कितनी मजबूत है।इसलिए कोई इन रेत भरे डंपरों को न देखता है न रोकता है।डंपर रेत का कारोबार ईमानदारी से करें इसके लिए एक बड़ी "निजी सेना" बनाई गई है।इस सेना में "सर्व धर्म समभाव" का कड़ाई से पालन होता है।इसमें सिर्फ "निष्ठा" देखी जाती है जाति या धर्म नहीं। आधुनिक हथियारों से सुसज्जित इस सेना में सैकड़ों युवा अपना भविष्य संवार रहे हैं।"चौहान" शब्द उनकी ढाल बना हुआ है।
 ऐसे में एक युवा बाबा का दुख क्या मायने रखता है।आम आदमी के शायर अदम गोंडवी ने बहुत पहले दिल्ली के लिए एक शेर कहा था - लुटने के लिए दोनों की बुनियाद पड़ी है ..जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है। नर्मदा के संदर्भ यूं कह सकते हैं - तू तो लुटने के लिए ही बनी है ओ रेवा...तुझे जो पूजेंगे वही लूटेंगे भी! यह भी कह सकते हैं कि तेरे पूत कपूत हो गए!अब तोय कौन बचाए मइया!हमें तो माफ कर दे! 
 ऐसे में सन्यासी और सन्यासिनों का रोना कौन सुने। नर्मदा की रेत लोगों के घर भर रही है।लक्ष्मी के आगे तो सब नत मस्तक रहते हैं।
वैसे अकेली नर्मदा ही नही प्रदेश की सभी नदियां अवैध रूप से खोदी जा रही हैं।अवैध खनन रोकने के चक्कर में एक आई पी एस अधिकारी सहित दर्जनों सरकारी कर्मचारी अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं।पुलिस सहित अन्य कर्मचारियों की पिटाई की घटनाएं तो आम हैं।
 पर चाहे कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है।है कि नहीं!
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