भूत..वर्तमान और भावी मुख्यमंत्री....
भोपाल (एडवाइजर) : एक ओर तो कांग्रेस पूरे देश में बीजेपी और नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान चलाती नजर आ रही है! वहीं दूसरी ओर एमपी में वह मोदी और बीजेपी के नक्शे कदम पर चलती दिख रही है! चौंकिए मत! मैं सही कह रहा हूं।
आपको याद होगा  2014 में जब नरेंद्र मोदी बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए "चेहरा" बनाए गए थे तब नारा आया था - अबकी बार मोदी सरकार! इस नारे के बाद जितने भी नारे आए वे मोदी पर ही केंद्रित थे। अब तो हर नारे के केंद्र में नरेंद्र मोदी ही हैं।
ठीक इसी तर्ज पर एमपी कांग्रेस कमेटी ने 2023 में नारा दिया है - नया साल ..कमलनाथ सरकार! उसका यह भी दावा है कि 2023 में एमपी में कांग्रेस की ही सरकार बनेगी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बनेंगे!
एमपी कांग्रेस कमेटी ने इस उद्देश्य से 1 जनवरी को संकल्प दिवस मनाया! ऐसा उसका दावा है। क्योंकि ठंड के मौसम में सड़कों पर तो उसका संकल्प फलीभूत होते दिखा नहीं। लेकिन एक सप्ताह पूर्व जारी किए गए प्रेस नोट ने कागजी ताकत जरूर दिखाई!प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संगठन प्रभारी उपाध्यक्ष और वयोवृद्ध नेता चंद्रप्रभाष शेखर के हस्ताक्षर से जारी इस प्रेस नोट में सभी जिला कांग्रेस कमेटियों को निर्देशित किया गया था कि वे एक जनवरी को अपने जिलों में बीजेपी सरकार के खिलाफ पद यात्रा करें। यात्रा के बाद सभा करें!सभा में बीजेपी सरकार का विरोध करें। इस प्रेसनोट में बीजेपी के खिलाफ आंकड़े और नारे भी दिए गए थे।
इस प्रेस नोट का सबसे अहम बिंदु था - प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ पर केंद्रित प्रचार। इसके लिए कुछ सामग्री भी सभी जिलों और मोर्चों को भेजी गई थी। इसमें सबसे खास निर्देश था कि हर पोस्ट बैनर में कमलनाथ के नाम के साथ "भावी मुख्यमंत्री" मध्यप्रदेश लिखा जाए! और नारा हो - नया साल..कमलनाथ सरकार!
अब आप कह सकते हैं कि "भावी मुख्यमंत्री" लिखने में क्या बुराई है ? कोई भी लिख सकता है! फिर कमलनाथ तो 15 महीने की सरकार के मुखिया रहे हैं। अभी वे मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं! सबसे बुजुर्ग और अनुभवी नेता हैं। उनका तो हक बनता है! क्योंकि अपने ही विधायकों के पाला बदलने की वजह से उनकी सरकार की भ्रूण हत्या हो गई थी। उन्हें पूरा नहीं तो कम से कम पौने चार साल का तो समय मिलना ही चाहिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर!
लेकिन पीसीसी के इस नारे पर बीजेपी से भी ज्यादा कांग्रेसी चौंके हैं। बीजेपी ने तो यह कह कर बात खत्म कर दी कि सीएम की कुर्सी का सपना तो कोई भी देख सकता है। इसमें क्या बुराई है।
लेकिन कांग्रेसी इस नारे को हजम नही कर पा रहे हैं। करें भी तो कैसे? क्योंकि भावी मुख्यमंत्री की पदवी लिए तो कई नेता घूम रहे हैं। लेकिन किसी ने होर्डिंग लगाकर यह दावा नही किया। आंतरिक लोकतंत्र से भरपूर कांग्रेस में इन दिनों भावी मुख्यमंत्री शब्द पर कानाफूसी चल रही है।यह कानाफूसी कभी भी सतह पर आ सकती है।
वे कह रहे हैं - ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। हां यह जरूर हुआ है कि भावी मुख्यमंत्री का सपना किसी ने देखा और कुर्सी किसी और के हाथ लगी। आदिवासी नेता शिवभानु सोलंकी इसका पहला घोषित उदाहरण थे। नाम उनका चला और मुख्यमंत्री बने अर्जुन सिंह। बाद में 1993 में भी ऐसा ही हुआ। नाम सुभाष यादव का चला और मुखमंत्री बने दिग्विजय सिंह!दो नेताओं की लड़ाई में तीसरे को मौका मिलने के भी उदाहरण हैं।
सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या कांग्रेस नेतृत्व ने यह फैसला कर लिया है कि वह कमलनाथ को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी देगा? क्या लोकतंत्र की मान्य परंपरा के मुताबिक विधायकों को हाथ उठाकर मंजूरी देने का हक भी नही मिलेगा?
सवाल यह भी है कि सड़क पर गिरे अनाज के दानों की तरह बिखरी कांग्रेस दस महीने में इस स्थिति में आ जाएगी कि वह पूरी तरह संगठित बीजेपी को हरा कर सरकार बना सके?
अगर मान भी लें कि जनता कांग्रेस को बहुमत देगी तो बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेसी विधायक एक रहेंगे!दूसरा यह कि क्या कांग्रेस नेतृत्व पिछड़े आदिवासी और दलित नेताओं को यह मौका नहीं देगी?क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही तो उसने एक बुजुर्ग दलित नेता को अपना राष्ट्रीय मुखिया चुना है।
अहम सवाल यह भी है कि क्या अन्य कांग्रेसी नेता इतनी आसानी से मान जाएंगे! हालांकि अभी दूर दूर तक मैदान खाली सा नजर आ रहा है लेकिन "पदयात्रा" के जरिए खुद को स्थापित कर चुके पुराने नेता एक आखिरी कोशिश नही करेंगे,इस बात की क्या गारंटी है। उनकी वजह से ही कमलनाथ अचानक वर्तमान से भूत हो गए थे।
फिलहाल कमलनाथ ने तो इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली है। गुरुवार को सतना में जब उनसे "भावी मुख्यमंत्री" के बारे में पूछा गया तो वे टाल गए!लेकिन उनके समारोह में अन्य बड़े कांग्रेसी नेताओं की गैरमौजूदगी ने कई "भावी" सवाल खड़े कर दिए हैं!
देखना यह है कि "भावी मुख्यमंत्री" की पदवी मुख्यमंत्री की पदवी में बदल पाती है या नहीं!इसे जनता "मंजूर" करेगी या फिर उससे पहले कांग्रेसी ही "नामंजूर" कर देंगे! कुछ भी हो अपना एमपी गज्ज़ब तो है। यहां चूल्हे का जुगाड नही पर न्योता गांव भर का..कहावत चरितार्थ होती दिख रही है! 
अरुण दीक्षित की ओर से साभार।