यहां की हर बात अनोखी है.
भोपाल (एडवाइजर) : अभी तक हम मानते आए थे कि अपना एमपी गज्ज़ब है! लेकिन सन 2023 के पहले दिन एक सरकारी उद्घोष के जरिए पता चला कि अपना एमपी गज्ज़ब तो है ही साथ ही अदभुत भी है! अपनी आधी उम्र इसी सूबे में बीती है। आगे जितनी बची है वह भी यहीं कटेगी। आज के उद्घोष को देखने के बाद अचानक मन में आया कि उन सभी बिंदुओं को गौर से देखा जाए जो इस समृद्ध राज्य को गज्जब और अदभुत बनाते हैं।
तो आइए इन सब पर नजर डालते हैं!
एमपी  के वर्तमान मुखिया ने एक ऐसा रिकॉर्ड बना दिया है जो भविष्य में कोई तोड़ नहीं पाएगा। सीएम की कुर्सी पर उन्होंने लगभग 17 साल पूरे कर लिए हैं! इसके लिए वे बधाई के हकदार हैं! लेकिन उन्होंने बहुत से काम ऐसे किए हैं जो देश में किसी भी राज्य के सीएम ने आज तक नही किए होंगे! इनकी गिनती करना भी कठिन है। गिन भी लें तो कई खंडों का विशाल ग्रंथ तैयार हो जाएगा। अब ऐसा करना अपनी सामर्थ्य से बाहर है, इसलिए कुछ चर्चित बिंदुओं की चर्चा करते हैं।
एमपी के वर्तमान सीएम बहुत ही मेहनती और लगनशील व्यक्ति हैं। वे एक साथ कई काम कर सकते हैं। आजकल वे प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारने की मुहिम चला रहे हैं। जिलों में जाते हैं तो मंच से ही निकम्मे अफसरों और कर्मचारियों को सस्पेंड करते हैं। कलेक्टरों को हटाते हैं। त्वरित न्याय भी करते हैं! नौकरशाही की लगाम कस कर घोड़े की तरह उसके एड भी लगा रहे हैं! लेकिन फिर भी प्रदेश में नौकरशाही की मनमानी के किस्से रोज अखबारों में पढ़ने को मिल जाते हैं।17 साल सरकार चलाने के बाद भी सीएम को मंच से एक दिन के नायक की तरह काम करना पड़े तो प्रदेश को गज्ज़ब नही अदभुत ही माना जाना चाहिए।
राज्य में सीएम राइज स्कूल खुल रहे हैं। नई नई बिल्डिंग बन रही हैं। खुद सीएम स्कूल जाकर बच्चों से संवाद करते हैं! हर चीज वे खुद देखते हैं।देखते रहे हैं!फिर भी राज्य में हजारों सरकारी  स्कूलों के पास अपने भवन नही हैं। जो हैं उनमें वे सुविधाएं नही हैं जो खुद सरकार ने निर्धारित की हैं! और तो और हजारों स्कूलों में पूरे शिक्षक नही हैं। ऐसे स्कूलों की संख्या भी कम नहीं है जिनके पास न तो अपना भवन है और न ही एक भी शिक्षक! मिड डे मील की खपत हर स्कूल में होती है! हो भी क्यों नहीं आखिर रजिस्टर में तो विद्यार्थियों की संख्या दर्ज है। मूलभूत सुविधाओं की बात करें 90 प्रतिशत सरकारी स्कूल इस पैमाने पर खरे नहीं उतरेंगे! आखिर अपना एमपी अदभुत जो है।
यही हाल अस्पतालों का है! कोरोना काल में सरकार ने बहुत अच्छा काम किया। सभी सुविधाएं जुटाई। फिर भी बड़ी संख्या में लोग काल कवलित हुए। इसमें सरकार का क्या दोष! राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल से दवाइयां चोरी हो गई। आयुष्मान कार्ड की आड़ में सरकारी खजाना लूट लिया गया। सरकार क्या करे? वह नए नए मेडिकल कालेज खोलने का ऐलान कर रही है। यह अलग बात है कि इन ऐलानो को अमली जामा नही पहनाया जा पा रहा है।
ज्यादातर अस्पताल खुद बीमार हैं। सब जगह डाक्टरों और अन्य जरूरी कर्मचारियों की कमी है। छोटी जगहों पर डाक्टर तो दूर कंपाउंडर भी नही है। सफाई कर्मी अस्पताल चला रहे हैं। कुछ भी हो पर अस्पताल तो है न!
नर्मदा अपने एमपी की सबसे पवित्र नदी है। उसे एमपी की लाइफ लाइन कहा जाता है। उसे सरकार ने जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया है। हर साल लाखों लोग नर्मदा का परिक्रमा करते हैं। सरकार उनके लिए परिक्रमा पथ बनाने वाली है। नर्मदा के आसपास शराब की बिक्री बंद कर दी गई है। और भी बहुत कुछ किया जा रहा है।
अब आप कहें कि जीवित व्यक्ति का दर्जा पाई नर्मदा को छलनी किया जा रहा है। लगातार अवैध खनन हो रहा है। नर्मदा को खोद कर लोगों ने अकूत संपत्ति एकत्र कर ली है। नर्मदा ही नही प्रदेश की सभी नदियों में अवैध खनन किया जा रहा है। अवैध खनन रोकने की कोशिश में एक आई पी एस अधिकारी सहित दर्जनों सरकारी कर्मचारी जान गंवा चुके हैं! शराब ठेकेदार अब नर्मदा के किनारे के गांवों में घर घर शराब पहुंचा रहे हैं। क्या फर्क पड़ता है!एमपी तो अदभुत है!
भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस है। खुद सीएम कहते रहे हैं कि भ्रष्टाचारियों को दस फीट गहरे जमीन में गाड़ देंगे! उन्होंने मंच से ही कई बार भ्रष्टाचार खत्म भी किया है। ऐसे में यह सवाल ही गलत है कि इतनी सख्ती के बाद भी रोज चपरासी से लेकर प्रथम श्रेणी तक के अधिकारी रंगे हाथ रिश्वत लेते पकड़े जा रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपी अफसरों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मंत्रालय से बाहर क्यों नही निकली है। क्यों लोकायुक्त संगठन खुद आरोपों के घेरे में है। वहां आने वाली शिकायतों की कब्र कहां बनी है यह खोज का विषय है। लोकायुक्त पुलिस के दो आला अधिकारियों को 6 महीने में ही हटाए जाने पर सवाल तो उठा पर जवाब नहीं आया।
पोषण आहार घोटाले का जिक्र खुद महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में किया! कुपोषित बच्चों का खाना कौन खा गया यह किसी ने नहीं बताया। बल्कि मामा इस सफाई में लगे रहे कि ऐसा कुछ नही हुआ।रिपोर्ट गलत है। तो फिर है न अपना एमपी अदभुत!
महाकाल का महालोक बना! अरबों रुपया खर्च हुआ। पीएम ने आकर लोकार्पण किया। पूरी दुनियां में इस ऐतिहासिक घटना की गूंज हुई!
साथ ही यह भी उजागर हुआ कि अफसरों ने महाकाल को भी नही बख्शा है। एक की जगह चार रुपए खर्च किए हैं। धातु की जगह फाइबर की मूर्तियां लगा दी हैं। खबर सामने आई तो लोकायुक्त सक्रिय हुए। अफसरों को नोटिस देकर बुलाया गया। अफसर आए और गए! बाद में न तो लोकायुक्त कुछ बोले न सरकार ने कुछ किया!
सीएम के इलाके के सबसे प्रसिद्ध सलकनपुर स्थित विजयासन देवी मंदिर से भक्तों द्वारा चढ़ाई गई मोटी रकम गायब हो गई। मंदिर समिति चोरी की गई रकम को कम करके बताने में लगी रही।पुलिस ने दो चोर पकड़ कर मामला रफा दफा कर दिया। स्थानीय लोग कह रहे हैं कि करोड़ों की चोरी हुई है। सच तो देवी ही जानती होंगी। लेकिन वे तो आकर बताने से रहीं। है न अपना एमपी अदभुत!
70 साल बाद चीते आए। खुद पीएम ने उन्हें यहां आकर बसाया। देश में पहला चीता राज्य बना अपना एमपी! देश में नाम हो गया!लेकिन उधर पन्ना में एक बाघ फांसी लगा कर मर गया। बाघ का क्या बाघ तो मरते ही रहते हैं। आखिर टायगर स्टेट जो है एमपी! ऊपर से अदभुत भी!
अपने सीएम ने खुद को बच्चों का मामा बनाया है। उन्होंने बच्चों के लिए किया भी बहुत कुछ है। उनकी लाडली लक्ष्मी योजना की तारीफ पूरे देश में हुई है। कन्यादान योजना को भी कई राज्य अपना रहे हैं। बुजुर्गों को तीर्थयात्रा कराने की योजना भी वही लाए थे। बलात्कारियों को फांसी का कानून भी उन्होंने ही बनाया है।
लेकिन बच्चों और महिलाओं के प्रति अपराध और बलात्कार के मामलों में केंद्र सरकार के आंकड़े एमपी को सबसे आगे रखे हुए हैं। सरकार ने बलात्कारी को फांसी का कानून बनाया। अदालतों ने बलात्कारियों को फांसी की सजा भी दी। लेकिन 2018 से लेकर आज तक एक भी बलात्कारी फांसी पर नही लटकाया जा सका है। कानून बनाने का श्रेय बरकरार है। आखिर अपना एमपी अदभुत जो है।
 इन दिनों सरकार का पूरा जोर आदिवासियों पर है। पेसा नियम लागू किए गए हैं। खुद सीएम गांव गांव जाकर आदिवासियों को उनके हक बता रहे हैं! यह भी बता रहे हैं कि देश की राष्ट्रपति भी आदिवासी हैं। सरकार आदिवासियों की है।
यह अलग बात है कि केंद्र सरकार आंकड़े कह रहे हैं कि एमपी आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में  देश में अव्वल है। हर साल यह आंकड़े बढ़ रहे हैं। एक सच यह भी है कि सब हक आदिवासियों को दे रहे हैं लेकिन एक आदिवासी आज तक एमपी का सीएम नही बन पाया है। है न अदभुत!
 दावा यह है कि राज्य में लाखों रोजगार सृजित किए गए हैं। दूसरी ओर भोपाल में स्वास्थ्य मंत्री से फरियाद करने वाले संविदा कर्मी इस गुस्ताखी के लिए जेल में डाल दिए गए हैं। बेरोजगारों की संख्या का आंकड़ा भी बढ़ रहा है।
 भ्रष्टाचार पर सख्ती सब देख रहे हैं। लेकिन व्यापम घोटाला, ई टेंडर घोटाला,नर्सिंग कालेज मान्यता घोटाला, आयुष्मान कार्ड घोटाला ,खनन घोटाला, वृक्षारोपण घोटाला,पोषण आहार घोटाला आदि ने पिछले सालों में एमपी का नाम खासा रोशन किया है।
 बात राज्य की चकाचक और चमकदार सड़कों की भी खूब होती है। लेकिन बारिश में सबसे ज्यादा नई सड़कें और पुल यहीं बहे थे। राजधानी भोपाल में तो खुद सीएम ने गड्ढे देखे थे। उन्हें भरने की चेतावनी भी दी थी।लेकिन आज तक उन गड्ढों को किसी का इंतजार है।
 सरकार ने 23 हजार एकड़ जमीन माफिया के चंगुल से मुक्त कराई है। उसे भूमिहीनों को बांटा जाएगा। इधर सैकड़ों एकड़ वन भूमि पर कब्जे की खबरें अखबारों की सुर्खियां पा रही है। जंगल माफिया लकड़ी के लिए जंगल साफ कर रहा है। सरकार जंगल चोरों के परिजनों को लाखों का मुआवजा दे रही है। जंगल के कर्मचारी अपनी बंदूकें जमा करा आए हैं। फिर भी जंगल सुरक्षित है।है न अदभुत अपना एमपी।
 सबसे मजे की बात तो सरकार को लेकर कही जाती है। ऐसा पहले एमपी में नही हुआ था। विधायकों ने पाला बदला!सरकार बदल गई। कोई नई बात नहीं है। ऐसा पहले भी कई राज्यों में हुआ है। लेकिन कांग्रेस है कि मानती ही नही है। वह आज भी राज्य की सरकार को "खरीदी हुई सरकार" कहती है।
 पर कुछ भी हो अपना एमपी गज्ज़ब तो है ही! साथ में अदभुत भी!है कि नहीं?
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
अरुण दीक्षित की ओर से साभार