यूं तो देश भर में आस्था के रूप में कई ऐसे मंदिर हैं, जिसकी कहानी लोग सुनते-सुनाते आए हैं. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि स्वप्न में बताई गई बात सही साबित हो जाए और देवी की प्रतिमा जलकुंड से निकले. आज आपको ऐसी ही 1100 वर्षों से भी अधिक पुरानी मंदिर की कहानी बताने जा रहे हैं. मधुबनी के कलुआही प्रखंड स्थित डोकहर गांव में एक मंदिर है, जिसे माता राजेश्वरी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा 1100 वर्षों से भी अधिक पुरानी है.

पंडित को आया स्वप्न, साक्षात दिखी देवी मां
स्थानीय बताते हैं कि 1100 वर्ष पहले राजनगर प्रखंड के महरैल गांव निवासी पंडित रूपी उपाध्याय को देवी मां ने स्वप्न देते हुए कहा कि मैं दुखहर गांव के समीप चंद्रभागा नदी में मौजूद हूं. मुझे नदी से निकालो और मेरी प्रतिमा स्थापित करो. जब अगली सुबह पंडित स्थानीय लोगों के साथ नदी में गए, तो वहां साक्षात देवी की प्रतिमा मिली. इसके बाद यहां पूजा अर्चना प्रारंभ की गई.

सिद्धिपीठ है राजेश्वरी मंदिर
इस मंदिर को देवी का सिद्धपीठ भी कहा जाता है. यह मंदिर वर्तमान में डोकहर गांव में मौजूद है. इस गांव को पहले दुखहर गांव के नाम से जाना जाता था, लेकिन समय के बढ़ते कालचक्र में बोलचाल की भाषा बदलती गई और इसे डोकहर के नाम से जाना जाने लगा. लोगों का मानना है कि यहां जो श्रद्धालु सच्चे मन से कुछ भी मांगते हैं, तो उनकी मनोकामना पूर्ण होती है.

जमीन से 10 फीट नीचे है गर्भगृह
माना जाता है कि मंदिर का गर्भगृह जमीन से 10 फीट नीचे है, जिसके पीछे भी एक कहानी है. प्रतिमा मिलने की खुशी में स्थानीय लोग नदी से निकलकर घाट के सामने ही पूजा अर्चना करने लगे. बाद में पंडितों के सुझाव से इसी स्थल पर गर्भगृह बना दिया गया. इस मंदिर परिसर में माता राजेश्वरी के अलावा भगवान शिव, माता पार्वती समेत कई देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित है. मंदिर के चारों ओर का दृश्य काफी सुंदर है. जिस नदी से मां की प्रतिमा को निकाला गया था, उसे अब गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है.