कोलकाता। पश्चिम बंगाल की सियासत में भारतीय जनता पार्टी ने बीते 10 वर्षों में अपने कुनबे का इतना विस्तार कर लिया है कि वह अब कांग्रेस और वामपंथ को हाशिए पर धकेलकर सीधे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से जंग लड़ने के लिए तैयार है। भाजपा नेताओं का दावा है कि पिछले दो दशकों में बंगाल की सियासत में नए मुकाम दिखाई दिए हैं। इस दौरान 1998 में अस्तित्व में आई टीएमसी ने वामपंथियों का राज्य से असर कम कर दिया और भाजपा ने वर्तमान में वामपंथ और कांग्रेस को निचोड़ कर टीएमसी के सामने दीवार बनकर खड़ी हो चुकी है।  
टीएमसी ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार घोषित करके कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक की उम्मीदों को झटका दिया है। हालांकि भाजपा ने 20 सीटों पर ही अपने उम्मीदवारों का ऐलान किया है। जबकि वामपंथ ने 16 सीटों की घोषणा की है और कांग्रेस के साथ तालमेल बिठाने के प्रयास कर रही है। वाम मोर्चा सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस के विफल रहने पर अपनी नाराजगी भी जाहिर कर चुका है।
2011 में सत्ता में आने के बाद टीएमसी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक 34 सीटें जीती थी। इस दौरान भाजपा को 2, कांग्रेस को 4 और वामपंथ को 2 सीटें हासिल हुई थी। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी 34 सीटों से सिमट कर 22 पर पहुंची। जबकि भाजपा 2 सीटों से बढ़कर 18 सीटों पर काबिज हो गई। इस चुनाव में वामपंथियों का खाता ही नहीं खुल पाया था, जबकि कांग्रेस 4 सीटों से 2 पर आकर ठहर गई।
वहीं विधानसभा चुनाव में राज्य में टीएमसी ने 2016 के चुनाव में 211 सीटें और 2021 में 215 सीटें जीती हैं। जबकि भाजपा ने चुनाव में अपना सफर महज 3 सीटों से शुरू किया था। जबकि यह 2021 में बढ़कर 77 सीटों तक जा पहुंचा है। यही वजह है कि 2016 में क्रमशः 44 और 33 सीटें जीतने वाली कांग्रेस और लैफ्ट के ग्राफ में 2021 में भारी गिरावट दर्ज की गई।  
भाजपा का कहना है कि सियासी अखाड़े में जमीनी स्तर पर अब वह भी नजर आने लगी है। 2019 के आम और 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सत्तारूढ़ टीएमसी वोट शेयर और सीटों के अंतर को काफी कम कर दिया है। यहां उल्लेखनीय यह भी है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में बंगाल के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया था, जहां कभी वामपंथियों का दबदबा था।
बंगाल की लोकसभा और विधानसभा वोट शेयर की बात करे तब टीएमसी ने 2014 और 2019 के बीच इसमें 3.9 फीसदी इजाफा किया, लेकिन 2014 के मुकाबले 12 कम सीटें जीतीं। जबकि इस दौरान भाजपा के वोट शेयर में 23.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। कांग्रेस के वोट शेयर में 4 फीसदी और लेफ्ट के वोट शेयर में 22.4 फीसदी की गिरावट आई। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में इसका वोट शेयर 17 फीसदी था और 2019 तक यह 40 फीसदी हो गया। विधानसभा की बात करें तब 2016 में भाजपा ने 10.2 फीसदी वोट हासिल किए थे, जोकि 2021 के चुनाव में 38 फीसदी तक पहुंच गए।