चार चौधरियों के अस्तित्व के बिना -राज्य में कांग्रेस कुछ नहीं है
(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर): चार चौधरियों की अनुपस्थिति में, प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व कैसे प्रभावशील हो सकता है और कैसे मध्यप्रदेश में कांग्रेस को जिताने का स्वप्न साकार कर सकता है, यह प्रश्न अभी भी राजनीति की हवा में लटका हुआ है। केवल डाटा इकट्ठा करके, उनकी समीक्षा करके यांत्रिक रूप से कांग्रेस की जीत के लिये योजनाएं बन सकता है। प्रतिशत के आधार पर जातिगत, उम्र के लिहाज से मतदाताओं को झुकाव तय किया जाकता है। क्षेत्रीय और सांस्कृति उन मूल्यों को विश्लेषण किया जा सकता है जो कम्प्यूटर मशीन में स्वयं हम जैसे ही किसी व्यक्ति द्वारा एकत्र किये गये हैं। परंतु प्रति पल बदलती हुई मानवीय संवेदनाओं हवाओं के रूख का विश्लेषण इस कम्प्यूटर के माध्यम से नहीं किया जा सकता। इसके लिये मध्यप्रदेश में प्राचीन चार चौधरियों की परम्परा का ही पालन करना पडेगा जो वर्तमान में अस्तित्वहीन है।
बुन्देलखंड, मालवा, विन्घ्य प्रदेश, महाकौशल इन चार क्षेत्रों में किसी एक व्यक्ति या परिवार की चौदराहट कांग्रेस में मजबूती का सबसे महत्वपूर्ण कारण हुआ करती थीं। आज कांग्रेस यह भले ही दावा कर ले, कि प्रति सेकण्ड वो राज्य के प्रत्येक हिस्से से सूचनाओं का आदान-प्रदान और तथ्यों का संग्रहणीकरण करने में सक्षम है। उपलब्ध तथ्यों को बडे-बडे तकनीकी विशारद समीक्षा करने में सक्षम है। पर चार चौधरियों के क्षेत्र में एक स्थानीय आस्था या विश्वास का केन्द्र समाप्त हो जाना कांग्रेस की सबसे बडी कमजोरी बन चुकी है।
भारतीय राजनीति से मध्यप्रदेश की राजनीति न क्षेत्रीय, न भाषागत, न धार्मिक आधार पर अलग है। प्रति 100 किमी पर मध्यप्रदेश में संस्कृति बदल जाती है, नवीन सभ्यता का प्रादुलभाव हो जाता है और लोगों के रहन-सहन, जीवन शैली, विचारों में भिन्नता भी आ जाती है। यही कारण है कि यदि मध्यप्रदेश की राजनीति को समग्र रूप से समझना है तो तकनीकी के स्थान पर भावनाओं को प्राथमिकता देनी होती है। आम मतदाता की विचार शैली में भी परिवर्तन समय-समय पर स्थायी या अस्थायी रूप से आता रहता है। फिर बुन्देलखंड में रहने वाली कोई भी जाती हो, किसी भी उम्र का मतदाता हो, क्षेत्रीय भावनाओं के प्रतिकूल नहीं जा पाता। इन्हीं भावनाओं को समझने और नियंत्रित करने या दूसरे अर्थो में कहें तो दिशा देने का काम चार चौधरियों द्वारा हमेशा होता रहा है।
आज कांग्रेस कितने भी दावे कर ले, कमलनाथ 2023 तक स्थायी रूप से मध्यप्रदेश के एक मात्र नेता के रूप में स्वयं को स्थापित कर ले। पर दिग्विजय सिंह या कमलनाथ कोई भी इन चौधरियों के आभा मण्डल के समकक्ष नहीं पहुंच सकते।
दूसरे अर्थो में समझे तो इनमें से प्रत्येक चौधरी अपने क्षेत्र की प्रत्येक राजनैतिक, सामाजिक, एवं आर्थिक हवा का सही समय पर मूल्यांकन करने में सक्षम होता है। राज्य या केन्द्र के हाई कमान द्वारा मिलने वाले निर्देशों के अनुरूप उन हवाओं का रूख बदलता है और तब किसी दल के पक्ष में पूरे राज्य में एक हवा चलती है, जो परिवर्तन का माध्यम बनती है। इन चार चौधरियों की उपयोगिता को कांग्रेस में अंतिम बार स्व. अर्जुन सिंह ने समझा था। वर्तमान में इन हवाओं को समझने वाले सुरेश पचौरी जैसे नेता हाशिये में रखे गये हैं। संभवतः पचौरी कांग्रेस के हित में एक समग्र राजनीति को जन्म देने में सक्षम है, और यही कारण है कि अपने व्यक्तिगत स्वार्थो के लिये राजनीति को हथियान बनाने वाले नेता पचौरी को कहीं दूर किसी हेंगर में टांग कर शोभा की वस्तु बनाना चाहते है। क्या प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व राजनीति की इस बारीकी को समझने के लिये तैयार है, या जीत के लिये कम्प्यूटर में कैद आकड़ों और बंद कमरों में चलने वाली बैठको को ही एक मुख्य आधार मानता है। यह समय ही बतायेगा कि 2023 के पहले प्रदेश अध्यक्ष कितने सम्पूर्ण राजनीतिज्ञ बन सकें या मध्यप्रदेश में 2023 के बाद भी मध्यप्रदेश में कांग्रेस के अस्तित्व को समाप्त कर दिया।