वृंदा मनजीत – आयुर्वेद भारत की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति है। वैज्ञानिक, शोधकर्ता और हमारे बड़े बुजूर्गों ने कहा है कि आयुर्वेद के नियमों के आधार पर खानपान रखा जाए तो व्यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता। आयुर्वेद में केवल खानपान बदलने पर ही नहीं परंतु पानी पीने, सोने व जागने के भी बहुत से नियम बताए गए हैं।
आजकल लोगों का खानपान बदल चुका है। खाना खाने का कोई समय नहीं है, कब क्या खाना और क्या नहीं खाना इसका कोई ज्ञान नहीं है, किस पदार्थ के साथ क्या खाना और किसके साथ क्या नहीं खाना इस बारे में भी कोई जानता नहीं और जानने की कोशिश नहीं कर रहा। 
आयुर्वेदिक ग्रंथों में प्रत्येक ऋतु के अनुसार कैसा भोजन लेना चाहिए उसके बारे में विस्तार से लिखा है और उसका कारण भी समझाया है।
आम तौर पर जब हमें सर्दी-जुकाम, बुखार, पेटदर्द, सिरदर्द आदि कोई न कोई बीमारी होती है तब हम एलोपैथी दवाइयों का सेवन करते हैं क्योंकि उससे तुरंत राहत मिलती है, परंतु उसके कारण कई और बीमारियाँ जन्म ले लेती है जिसका हमें पता भी नहीं चलता।
आयुर्वेदिक दवाइयों का असर धीरे धीरे होता है और लंबे समय के बाद आराम मिलता है परंतु उससे रोग जड़ से गायब होता है और उसका कोई बूरा असर भी नहीं पड़ता। वैसे भी हमारी नानियां, दादियां घर की रसोई से ही कुछ न कुछ पदार्थ दवाई के तौर पर हमें दे दिया करती थी जो दवाई का काम करती थी। दरअसल, यह आयुर्वेद का ही एक हिस्सा है जिसके बारेमें वे बहुत कुछ जानती थी और हम उसे दादी के नुस्खे के रुप में जानते थे।
इस जानकारी की शुरुआत हम बारिश के मौसम से करेंगे जो आपके लिए अति उपयोगी साबित होगी।
बारिश के मौसम में संक्रमण का खतरा रहता है। बहुत देर तक हवा में नमी रहने से वात दोष असंतुलित होता है और पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है। इसलिए बारिश के मौसम में फ्रिज में रखे भोजन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
आजकल एक और शब्द बार बार सुनने में आता है। जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेन्ज)। जलवायु परिवर्तन अर्थात बदलते मौसम के अनुसार खानपान में भी बदलाव करना अति आवश्यक है क्योंकि जलवायु और खानपान का गहरा नाता है और मौसम का हमारे शरीर पर जैसे असर होता है वैसे ही खानपान का असर भी हमारे शरीर पर होता है। इसीलिए आयुर्वेद में ऋतु के अनुसार दर्शाए गए खानपान के निर्देशों का पालन करने से हम वर्ष भर निरोग रह सकते हैं।
भारत देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार साल में तीन मौसम होते हैं; गर्मी, सर्दी और बारिश। इन तीन मौसम को छः ऋतुओं में बांटा गया है और यह किन अंग्रेजी महिनो में आती है इसके बारे में जानेः-
जनवरी से मार्च के बीच शिशिर ऋतु आती है, मार्च से मई वसंत ऋतु, मई से जुलाई ग्रीष्म, जुलाई से सितंबर वर्षा, सितंबर से नवंबर शरद और नबम्बर से जनवरी हेमंत ऋतु का समावेश होता है।
तो आइए जानते हैं कि वर्षा ऋतु में हमारा खानपान और जीवनशैली कैसी होनी चाहिएः-
वर्षा ऋतु में बारिश होती है इसके कारण आसपास कहीं कहीं पानी का भराव होता है। इसके कारण मच्छर, मक्खियों का प्रकोप बढ़ता है। इससे संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है। हवा में नमी अधिक होती है। इसके कारण शरीर में वात दोष असंतुलित हो जाता है। पाचन शक्ति कमज़ोर होती है। बारिश की बूंदों से पृथ्वी के अंतर स्थित गर्मी गैस में परिवर्तित होकर बाहर निकलती है। इससे अम्लता की अधिकता होती है और धूल और धुंएं से युक्त वात का प्रभाव भी पाचनशक्ति पर पड़ता है।
आम तौर पर आपने देखा होगा कि बारिश के मौसम में मलेरिया, जुकाम, दस्त, गठिया, जोड़ों में सूजन, फुंसियाँ, दाद, खुजली जैसे रोगों के बढ़ने की संभावना होती है।
वर्षा ऋतु अर्थात बारिश के मौसम में क्या खाएं
इस मौसम में हल्के, सुपाच्य, ताज़े, गर्म और पाचक अग्नि को बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। इसमें अनाज जैसे गेहूँ, जौ, चावल, मक्का, सरसों, राई, खीरा, खिचड़ी, दही, मट्ठा, मूंग और अरहर की दाल खाना फायदेमंद होता है।
सब्ज़ियों में लौकी, भिण्डी, तोरई, टमाटर, पुदीने की चटनी, लहसून की चटनी और सब्ज़ियों का सूप पीना चाहिए। वैसे ही फलों में सेब, केला, नाशपाती, पके जामुन, देसी आम आदि का सेवन करना चाहिए। भोजन के अलावा घी और तेल में बने नमकीन पदार्थ भी खाना चाहिए।
आम और दूध का सेवन एक साथ करना लाभकारी होता है। यदि एक समय के भोजन के स्थान पर आम और दूध का उचित मात्रा में सेवन किया जाए तो शरीर सुडौल होता है और शरीर में ताकत बढ़ती है।
दही की लस्सी में लौंग, त्रिकटु (सोंठ, पिप्पली और काली मिर्च), सेंधा नमक, काला नमक, अजवायन आदि डालकर सेवन करने से पाचन शक्ति अच्छी रहती है।
बारिश के मौसम में पीने का पानी जल्दी प्रदूषित हो जाता है। इसलिए पानी को स्वच्छ रखने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। खास कर बच्चों और बुजूर्गों को उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पीलाना चाहिए।
क्या ना खाएँ
बारिश के मौसम में पत्तेवाली सब्ज़ियां, ठंडे व रुखे पदार्थ, चना, मोठ, उड़द, मटर, मसूर, ज्वार, आलु, कटहल, सिंघाड़ा, करेला और पानी में सत्तू घोलकर लेना हानिकारक माना जाता है। भारी भोजन, बारबार भोजन करना, भूख न होने पर भी खाते रहना, तेज मिर्च मसाले युक्त, अधिक तला हुआ और खट्टा भोजन खाने से परहेज करना चाहिए। इससे पित्त बढ़ता है।
जीवनशैली में बदलाव
इस मौसम में शरीर पर तेल से मालिश करना चाहिए। कभी कभी सिकाई भी करनी चाहिए। बारिश के दिनों में साफ और हल्के कपड़े पहनने चाहिए और यदि भीग गए तो उसे तुरंत बदल देना चाहिए। अधिक नमी वाले स्थान पर सोना नहीं चाहिए। मच्छर आदि से बचने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए। भोजन, सोना और कार्य का समय निश्चित और नियमित होना चाहिए।
किससे बचें
गीले कपड़े देर तक पहनकर नहीं रखना चाहिए। यदि बिस्तर भी गीला हो गया हो तो उस पर सोना नहीं चाहिए। इससे शरीर के जोड़ों, जांघों के जोड़ और गुप्तांगों के आसपास की त्वचा संक्रमित हो सकती है।
ध्यान रखने वाली बात
यदि स्कूटर या मोटर बाइक लेकर बारिश के मौसम में कहीं जाना हो तो वाहन धीरे और संभलकर चलाएं। 
शरद ऋतु
वर्षा ऋतु के खत्म होने पर सर्दियों की शुरुआत का मौसम होता है। यह बहुत खुशनुमा होता है फिर भी इस वक्त खानपान और अन्य अनेक चीजों का ध्यान रखना आवश्यक है। वर्षा ऋतु में गीलापन और ठंडक होती है। और शरद ऋतु में सूर्य अपने पूर्ण प्रकाश से विद्यमान होता है। अचानक इतनी गर्मी बढ़ जाने पर शरीर में रहा पित्त असंतुलित हो जाता है। इससे शरीर का रक्त दूषित हो जाता है। इसके चलते कभी कभी फोड़े फून्सियां, खुजली जैसी समस्याएं दिखाई पड़ती है। 
शरद ऋतु में क्या खाएं
इस मौसम में पित्त को शांत करने के लिए घी और तीखे पदार्थों का सेवन करना चाहिए। खास करके चावल, मूंग, गेहूं, उबला हुआ दूध, दही, मक्खन, घी, मलाई, श्रीखंड आदि का सेवन लाभकारी होता है।
सब्ज़ियों में बरबटी, बथुआ, लौकी, तोरई, फूलगोभी, मूली, पालक और सेम खाना चाहिए। जहां तक फलों का सवाल है अनार, आंवला, सिंघाड़ा, मुनक्का, कमलगट्टा फायदेमंद साबित होते हैं। इस ऋतु में मिश्री और गुड़ में शहद या घी मिलाकर खाना चाहिए। आंवले का मुरब्बा अत्यंत स्वास्थ्यवर्धक होता है।
क्या ना खाएं
इस मौसम में सरसों का तेल, मट्ठा, सौंफ, लहसुन, बैंगन, करेला, हींग, काली मिर्च, पीपल, उडद से बने भारी पदार्थ का परहेज करना चाहिए। अधिक खट्टे पदार्थ जैसे दही, कढी और अधिक नमक वाले पदार्थ नहीं खाना चाहिए। इस मौसम के दौरान भूख न लगने पर भी खाते रहने से अपच की समस्या हो सकती है।
जीवनशैली में बदलाव
इस मौसम में सुबह के समय जैसे सूर्य की किरनें स्वास्थ्यवर्धक होती है वैसे ही रात्रि में चंद्रमा की किरनों में बैठने, सैर करने से स्वास्थ्य लाभ होता है।
क्या ना करें
इस मौसम में अधिक व्यायाम नहीं करना चाहिए। इस मौसम में अपने शरीर को ढांककर रखना चाहिए और ठंडी हवा के थपेड़ों से बचाना चाहिए क्योंकि इससे जोड़ों में दर्द की समस्या हो सकती है। चाहे कोई भी मौसम हो, जब बदलाव का समय आता है तब अगली ऋतु के अंतिम सप्ताह से ही खानपान में और रहनसहन में बदलाव धीरे धीरे शुरु कर देना चाहिए। अचानक कोई बदलाव लाने से कोई रोग उत्पन्न हो सकता है। 
यदि आप नियमित योगाभ्यास और प्राणायाम करते हैं तो इसे कभी बंद नहीं करना चाहिए। यद्यपि कभी कुछ योग कम करें या धीरे धीरे करें लेकिन संपूर्णतया बंद न करें।
हेमंत और शिशिर ऋतु अर्थात सर्दियों का मौसम
वैसे देखा जाए तो खानपान और सेहत बनाने की द्रष्टि से यह सबसे अच्छा मौसम होता है। इस समय दिन और रात लंबे होने की वजह से शरीर को आराम करने और खाना पचाने का पर्याप्त समय मिल जाता है। इसी कारण इन दिनों भूख अधिक लगती है और पाचन शक्ति तेज होने के कारण अधिक खाया भी जाता है। 
सर्दियों में क्या खाएं
सर्दियों में चिकनाई युक्त, मधुर, नमकीन और खटाई युक्त आहार लेना चाहिए। इसके अलावा पोषक तत्वों से भरपूर आहार लेना चाहिए जिससे सर्दियों में गर्मी बनी रहती है और पूरे वर्ष की ऊर्जा शरीर में आ सकती है। चिकनाई युक्त भोजन में घी, मक्खन, तेल, दूध, दूध-चावल की खीर, रबड़ी, मलाई, ठंडे दूध के साथ शहद, दलिया, हलवा, आंवला और सेब का मुरब्बा, सूखे मेवे, मिठाई शामिल कर सकते हैं।
अनाज – अंकुरित अनाज जिसमें चने, मूंग, मोठ, गेहूं और मेथी जैसे पदार्थ लिए जा सकते हैं। 
सब्ज़ियां – परवल, बैंगन, गोभी, जिमीकन्द, पके लाल टमाटर, गाजर, सेम, मटर, पालक, बथुआ, मेथी आदि हरी सब्ज़ियों का सेवन करना चाहिए।
सर्दियों में हरड, सोंठ, पीपल, दालचीनी, आदि का चूर्ण और कद्दु के बीज, तरबूज के बीज, फ्लैक सीड्स, चिया सीड्स, सूरजमुखी के बीज का भी सेवन करना चाहिए।
क्या ना खाएं
सर्दियों में हल्के, रुखे, तीखे खाद्य पदार्थ, बासी एवं ठंडी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। अमचूर, खट्टा दही, आम का अचार सर्दियों में न खाएं।
जीवनशैली में बदलाव
खानपान के अलावा सर्दियों में सुबह जल्दी उठने, टहलने, व्यायाम करने की आदत डालनी चाहिए। व्यायाम के बाद शरीर पर सरसों के तेल की मालिश करनी चाहिए। घर से बाहर जाते वक्त ऊनी वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए और कान ढांककर रखना चाहिए। रात्रि में सोने से पहले गर्म दूध अत्यंत लाभदायी होता है।
क्या ना करें
सर्दियों में देर रात तक जागना अच्छा नहीं होता। इससे सुबह जल्दी उठ नहीं पाते और व्यायाम समयपर नहीं हो पाता। पूरे दिन का शिड्युल बिगड़ जाता है। 
वसंत ऋतु 
वसंत ऋतु में मौसम सुहावना होता है। इस मौसम में प्रकृति अपने शबाब पर होती है। इस मौसम में न ठंडी होती है न गर्मी, और प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है। फिर भी, दिन में गर्मी और रात को ठंडक होने के कारण कफ का असंतुलन होता है और गले की खराश, खाँसी जैसी समस्याएं सामने आती है।
वसंत ऋतु में क्या खाएं
इस मौसम में ताजा, हल्का और आसानी से पच जाए ऐसा भोजन करना चाहिए। मूंग, चना और जौ की रोटी, पूराना गेहूं, चावल, अंकुरित अनाज, मक्खन लगी रोटी, हरी सब्ज़ियां आदि का सेवन करना चाहिए।
सब्ज़ियों में करेला, लहसुन, पालक, जिमीकन्द, मूली आदि खाने में शामिल करना चाहिए। इसके साथ फलों में देखें तो इस मौसम में बहुत सारे फल आते हैं उन सभी का सेवन अच्छी मात्रा में करना चाहिए। उपरांत सूखे मेवे प्रचूर मात्रा में खाने चाहिए।
क्या ना खाएं
बसंत में भारी, चिकनाईयुक्त, खट्टे पदार्थों के सेवन से परहेज करना चाहिए। 
जीवनशैली में बदलाव
जीवनशैली एक तरह से प्रत्येक मौसम में एक समान रखनी चाहिए केवल कुछ ज्यादा कुछ कम करना चाहिए। जैसे व्यायाम सर्दियों में अत्यधिक करते हैं तो बसंत में थोड़ा धीरे धीरे और कम करना चाहिए। तेल मालिश शरीर के लिए अच्छी होती है इससे रक्त प्रवाह अच्छा होता है और फिर गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए। 
क्या ना करें
इस मौसम में खुले आसमान के नीचे सोना, ठंड में रहना, धूप में घूमना व दिन में सोना भी हानिकारक माना गया है।
गर्मी का मौसम
गर्मी का मौसम काफी रूखा और नीरस लगता है। इन दिनों सूरज जल्दी उदय होता है, दोपहर को रौद्र रुप दिखाता है और धीरे धीरे अस्त होता है। सूरज की गर्मी के कारण खूब पसीना आता है और इसके कारण शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इस मौसम में यदि ताज़ा बना हुआ खाना, शुद्ध पानी, समय पर आराम का ध्यान नहीं रखा तो उल्टी, दस्त और पेचिश की समस्या हो सकती है।
गर्मी में क्या खाएं
गर्मी के दिनों में हल्का, आसानी से पचने वाला भोजन करना चाहिए। ठंडे तरल पदार्थों का सेवन करना इस मौसम में लाभकारी साबित हो सकता है। चीनी, घी, दूध और मट्ठे का सेवन करना चाहिए। छाछ में पीसा जीरा और थोड़ा नमक मिलाकर पीना गर्मीये के मौसम में बहुत लाभकारी होता है।
सब्ज़ियों की बात करें तो बरबटी, करेला, बथुआ, परवल, पके टमाटर, छिल्के सहित आलु कच्चे केले की सब्जी, सहजन की फली, प्याज, सफेद पेठा, पुदीना, नीबू रोजिंदे भोजन में शामिल करना चाहिए।
दालों में छिलका रहित मूंग, अरहर और मसूर की दाल खाना चाहिए।
फलों में देखें तो तरबूज, मीठा खरबूजा, मीठा आम, संतरा और अंगूर, फालसा, अनार, आंवला का मुरब्बे का सेवन करें। सूखे मेवों में किशमिश, मुनक्का, चिरौंजी, अंजीर और भिगोए बादाम लेना चाहिए।
गर्मी के दिनों में नींबू की शिकंजी, आम का पना, लस्सी, ठंडाई, चंदन, खसखस, गुलाब का शरबत और नारियल पानी लेना चाहिए। अरहर की दाल में घी और जीरे का छौंक लगाकर खाना चाहिए। गर्मी में चीनी के स्थान पर गुड़ खाना चाहिए। 
गर्मी के दिनों में भोजन समय पर, कम मात्रा में और खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। और पानी फ्रिज का ठंडा नहीं पीना चाहिए, इससे मटके का पानी अधिक अच्छा होता है। 
क्या ना खाएं
गर्मी के दिनों में अधिक खट्टी, मसालेदार, तली-भूनी चीजें नहीं खानी चाहिए। 
जीवनशैली में बदलाव
अन्य ऋतुओं की अपेक्षा इस मौसम में गर्मी अधिक होती है इसलिए जहां तक हो सके घर के अंदर ही रहें और ठंडी जगह चुनें। घर से निकलते समय गुड़ खाकर और पानी पीकर निकलें। अधिक देर तक बाहर रहना हो तो साथ में पानी अवश्य रखें। जहां तक हो सके दोपहर बारह बजे से लेकर चार बजे तक घर से बाहर न निकलें नहीं तो लू लग सकती है। यदि जाना जरूरी हो तो मूंह और सिर को कपड़े से ढंककर जाएं। यदि रात को देर तक किसी काम से जागना हो तो थोड़ी थोड़ी देर में पानी पीते रहें। रात्रि भोजन सुपाच्य हो यह देखें। गर्मी के दिनों में दोपहर आधा घंटा सोना सेहत के लिए अच्छा होता है।
क्या ना करें
धूप से सीधे एरकंडिशन रूम में नहीं जाना चाहिए और तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए। शरीर का पसीना सूख जाए उसके बाद ही पानी पीना चाहिए और वह भी मटके का पानी। 
तो देखा? विविध ऋतु में मौसम के अनुसार मिलने वाले फल और सब्ज़ियां आदि खाना चाहिए। स्वस्थ रहने का बस यही मंत्र है कि भोजन ऋतु के अनुसार हों और साथ में थोड़ा व्यायाम, पर्याप्त निंद और सकारात्मक सोच, जब यह सब मिल जाए तो आपकी सेहत के साथ कोई समस्या नहीं आ सकती।
इसलिए आयुर्वेद के कुछ दोहे सरल शब्दों में बताते हैं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं
प्रातःकाल जो नियम से भ्रमण करे हर रोज, 
बल बुद्धि दोनों बढ़ें मिटे कब्ज का खोज ।
पीता थोड़ी छाछ जो भोजन करके रोज, 
नहीं जरुरत वैद की चेहरे पर हो ओज ।