वृंदा मनजीत -

यदि आपने भारत दर्शन एवं भारतीय ग्रंथों का अध्ययन किया है तो आपको अवश्य पता होगा कि जब समुद्र मंथन हुआ तब वृक्षों के वृक्ष कल्पवृक्ष की उत्पत्ति हुई और देवताओं ने उसे अपने संरक्षण में ले लिया। इसी तरह कामधेनु और ऐरावत हाथी के संरक्षण की भी यही कहानी है। श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की तभी से यह सिलसिला चलता आ रहा है कि मिट्टी, पर्वत, वृक्ष, वनस्पति, नदी आदि का आदर करना चाहिए।

आज के टेक्नोलॉजी के समय में बच्चों को स्कूलों मे भी पर्यावरण को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। हम सभी जानते हैं कि यदि हमारे शरीर में कोई एकाद अंग में खराबी आ जाती है तो संपूर्ण शरीर क्षतिग्रस्त हो जाता है। इसी तरह यदि जीव जन्तु, वृक्ष वनस्पति, नदी पहाड़ जैसे प्रकृति के अंग असंतुलित हो जाए तो प्रकृति भी बेचैन हो जाती है।

सच्चे अर्थ में देखें तो पर्यावरण शब्द का विच्छेद करकर देखना चाहिए। यह दर्शाता है कि पर अर्थात मनुष्य के अलावा जो अन्य जीव सृष्टि पर हैं वह हमारे लिए एक सुरक्षा कवच यानि एक आवरण की तरह है। वे हमें तेज धूप से बचाते हैं, हमारी पानी की प्यास बूझाते हैं, हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं, प्राणवायु देते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि मानव जीवन को हमेशा मूर्त या अमूर्त रुप में पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्र, नदी, वृक्ष एवं पशु पक्षी आदि के साहचर्य में ही देखा गया है। इसका तात्पर्य यही है कि हम हमारे आसपास के वातावरण को संरक्षित करें, उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें। पर्यावरण और प्रत्येक जीव एक दूसरे पर आश्रित हैं।

आजकल यदि हमारी पढ़ने की आदत छूट गई है तो हम हमारे मोबाइल पर आने वाले वॉट्सएप संदेश या टीवी पर चल रहे किसी सीरियल के द्वारा जान सकते हैं कि हमारे देह की रचना भी पर्यावरण के महत्वपूर्ण पंच तत्व के घटक पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही हुई है।

पुरानी सभ्यता के कुछ अवशेष से भी यह ज्ञात होता है कि प्राचीन सिक्कों पर, दिवारों या स्तंभों पर पशु-पक्षियों, वृक्षों के अंकन दिखाई पड़ते हैं। हमारी प्रार्थनाओं में भी प्रकृति किसी न किसी रूप में आ ही जाती है। संस्कृत भाषा का एक श्लोक प्रस्तुत हैः-

शाश्वतम, प्रकृति-मानव-सङगतम्,

सङगतं खलु शाश्वतम्।

तत्व-सर्व धारकं, सत्व-पालन-कारकं

वारि-वायु-व्योम-वहिन-ज्या-गतम्।

शाश्वतम, प्रकृति-मानव-सङगतम्

इसका अर्थ हैः- प्रकृति और मनुष्य के बीच का संबंध शाश्वत है, रिश्ता शाश्वत है। जल, वायु, आकाश के सभी तत्व, अग्नि और पृथ्वी वास्तव में धारक हैं और जीवों के पालनहार हैं।

हमारे ऋषिमूनि भी जब प्रार्थना करते हैं तब कहते हैं कि पृथ्वी, जल, औषधि एवं वनस्पतियाँ हमारे लिए शांतिप्रद हों। ये सभी शांतिप्रद तभी हो सकते हैं जब हम इनका सम्मान करें, संरक्षण करें।

आज के समय में देखें तो प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है। जंगलों में वृक्षों के कटने से न केवल पेड़-पौधे लुप्त हो रहे हैं परंतु जंगलों में बसने वाले प्राणी, जीव-जन्तु, पक्षियों में से भी कई लुप्त होने की कगार पर हैं।

आज क्लाइमेट चेन्ज और ग्लोबल वार्मिंग जैसे शब्द बार बार सुनने को मिल रहे हैं। युं भी हम सब देख रहे हैं कि गरमी के दिनों में अधिक तापमान, सर्दी के दिनों में बेहद सर्दी लगना, जहां एक ओर बारिश का कोई ठिकाना नहीं तो दूसरी ओर बाढ़ से लोग बेघर हो रहे हैं। इन सभी तकलीफों से बचना है तो हमारी ओर से कुछ प्रयास अवश्य होने चाहिए। पर्यावरण की इस समस्या से निजात पाना समूचे विश्व के लिए एक चुनौती है।

शायद स्कूल के बच्चों को भी पता है कि वनों को धरती के फेफड़े कहा जाता है। शहरों की देखादेखी गांवों में भी सिमेन्ट-कांक्रीट की इमारतें बनने लगी हैं। हरियाली गांव और शहरों से तो गायब है साथ ही साथ मोडर्न फर्निचर बनाने के चक्कर में बड़े बड़े पेड़ काटे जाने के कारण जंगलों से भी हरियाली न के बराबर रह गई है। इसी कारण प्राणवायु की शुद्धता और गुणवत्ता दोनों ही घटते जा रहे हैं।

पानी का भी यही हाल है। जहां पानी मिल रहा है वहां उसकी कीमत नहीं की जाती, उसका उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है परंतु जहां पानी की किल्लत है वहां लोगों को दूरसुदूर पैदल जाकर पानी लाना पड़ता है। जहां तक शहरों की बात है, ऊंची ऊंची इमारतों को पानी पहुंचाने के लिए धरती का सीना चीरकर, बोर लगाकर पानी खींचा जाता है। आस्था के नाम पर नदियों को प्रदूषित किया जाता है।

हमारे देश की कुल 32 करोड 90 हेक्टेयर भूमि में से 17 करोड 50 लाख हेक्टेयर जमीन गुणवत्ता के संदर्भ में निम्न स्तर की है। हमारी पहली वन नीति में यह लक्ष्य रखा गया था कि देश का कुल एक तिहाई क्षेत्र वनाच्छादित रहेगा। आज स्थिति यह है कि देश का 9 से 12 प्रतिशत वन आवरण शेष रह गया है। इसके साथ ही अतिशय चराई और निरंतर वन कटाई के कारण भूमि की उपरी परत की मिट्टी वर्षा के साथ बह-बहकर समुद्र में जा रही है, इसके कारण बांधों की उम्र कम हो रही है और नदियों में गाद जमने के कारण बाढ़ और सूखे का संकट बढ़ता जा रहा है।

यदि आप अनभिज्ञ हैं तो बता दूं, पर्यावरण प्रदूषण के कुछ दूरगामी दुष्प्रभाव हैं, जो अत्यंत घातक है। आणविक विस्फोटों से रेडियोधर्मिता का आनुवांशिक प्रभाव होता है, वायुमंडल का तापमान बढ़ता है, ओजोन परत की हानि होती है, भूक्षरण आदि जैसे घातक दुष्प्रभाव होते हैं। प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव के रुप में जल, वायु तथा परिवेश का दूषित होना एवं वनस्पतियों का विनष्ट होना, मानव का अनेक नये रोगों से आक्रान्त होना आदि देखे जा रहे हैं। बड़े कारखानों से विषैला अपशिष्ट बाहर निकालने से तथा प्लास्टिक के कचरे से प्रदूषण की मात्रा उत्तरोतर बढ रही है जो जल्दी खत्म होने वाली भी नहीं है।

प्रदूषित पानी से यदि किसान सिंचाई करते हैं तो विषैली भूमि पर उगने वाली फसल व सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से रहित हो जाती हैं जिनके सेवन से जीवननाशी रसायन मानव शरीर में पहूंच कर खून को विषैला बना देते हैं।

कहने का तात्पर्य यही है कि यदि हम अपने कल को स्वस्थ देखना चाहते हैं तो यह अत्यंत आवश्यक हैं कि बच्चों को पर्यावरण सुरक्षा का समुचित ज्ञान समय-समय पर देते रहें। बच्चों को ब्रांडेड कपड़े और मोबाइल की आदत डालने से अधिक उनका स्वस्थ रहना महत्वपूर्ण है जो हमारा भविष्य व उनकी पूंजी हो सकते हैं।

आज आवश्यकता है प्रकृति के प्रति प्रेम की व आदर की भावना को, सादगीपूर्ण जीवन पद्धति को, और वानिकी के प्रति नई चेतना को जागृत करने की। आज आवश्यकता है मनुष्य के मूलभूत अधिकारों में जीवन के लिए एक स्वच्छ एवं सुरक्षित पर्यावरण को भी शामिल करने की। आज आवश्यकता है सघन एवं प्रेरणादायक लोक जागरण अभियान शुरु करने की।

पर्यावरण को बचाने के लिए हम आम नागरिक क्या कर सकते हैं?

हम सब बड़े तो कहीं अफसर हैं तो कहीं डॉक्टर तो कहीं इन्जिनियर, हमें नई चीज सीखने की तो कोई जरूरत नहीं है, यदि कहीं सीखने की जरूरत है तो हमारा अहं हमें सीखने की मंजूरी नहीं देता। ऐसे में केवल वे बच्चे रह गए हैं जो पांच-दस सालों में इतने बड़े और समझदार बन जाएंगे तो वही हमारी नैया पार करेंगे। इसलिए बच्चों को पढ़ने, खेलने और मजे करने के अलावा जिम्मेदारी भी निभानी है, वो जो हम नहीं कर पाए या करना नहीं चाहते वह करने कीः-

  • ‘यूज एन्ड थ्रो’ की मानसिकता से बाहर निकलकर ‘री-युज’ की आदत डालनी चाहिए।
  • अपना निवास हो या कार्यालय, वर्षा जल-संचयन प्रणाली प्रयोग में लानी चाहिए। आजकल अपार्टमेन्ट में भी यह मुमकिन होता है।
  • जैविक खाद अपनाएं।
  • अपने निवास, फ्लैट या सोसायटी में या अपनी ऑफिस में प्रत्येक माह एक पेड़ लगाने का नियम बना दें। वर्ष भर के भीतर एक सुंदर उद्यान बन जाएगा। इसमें से आधा यदि किचन गार्डन हो गया तो फिर पूछना क्या!
  • अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखें, कूड़ा एकत्र करें और योग्य स्थान पर निपटान करें।
  • अपने आसपास स्थित नदी, तालाब या अन्य जलस्रोतों के आसपास कूड़ा न डालें।
  • कपड़े के थैलियों का इस्तेमाल करें, प्लास्टिक या पॉलिथिन का उपयोग टालें। प्लास्टिक की या पॉलिथिन की थैली में भरे खाने को खाकर कई गायें और कुत्ते मर जाते हैं जिसके लिए हम अफसोस भी प्रकट नहीं करते।
  • छात्र, उत्तर पुस्तिका, रजिस्टर या कॉपी के खाली पन्नों को व्यर्थ न फैंके बल्कि उन्हें कच्चे कार्य में उपयोग में लें।
  • जितनी भूख हों उतना ही थाली में लें, झूटा न छोड़ें।
  • भोजन बच जाए तो किसी गरीब को दे दें। पार्टियों में बचे खाने को भी गरीब बस्तियों में बांट देना चाहिए।
  • बिजली का इस्तेमाल कम से कम करें।
  • काम में न लिए जाने की स्थिति में बिजली उपकरणों के स्विच बंद रखें।
  • सौर-ऊर्जा का इस्तेमाल करें जो हम भारतीयों को लगभग बारों माह मिलती है।
  • पानी बचाने के लिए, प्रयोग के बाद नल तुरंत बंद करें। घरमें या ऑफिस में कोई नल लीक हो रहा हो तो उसे तुरंत दुरस्त कराएं। ब्रश या शेविंग करते समय नल खुला न छोड़ें। मेहमान को पानी देते समय खाली ग्लास के साथ जग में पानी लाएं ताकि जितना आवश्यक हो उतना ही पानी पीएं।
  • पानी को भी ‘री-युज’ करना चाहिए। बाथरूम और रसोई के पानी का बहाव गार्डन की ओर कर देना चाहिए ताकि पौधों को अलग से पानी न देना पड़े।
  • फोन, मोबाइल, लैपटॉप आदि का इस्तेमाल ‘पावर सेविंग मोड’ पर करें।
  • कपड़े धोने के लिए वॉशिंग मशीन का इस्तेमाल आपातकाल में ही करें क्योंकि उसमें पानी अधिक लगता है। इसी तरह मेन्युअल फ्लश का इस्तेमाल करें, ओटोमेटिक फ्लश में कई गुना अधिक पानी बह जाता है।
  • जितना हो सके पैदल चलें या सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल करें। कार पूल करें।
  • केवल आवश्यक वस्तुएं घर में लाएं, उसका पूर्ण उपयोग करें, संग्रह करके फिर उसे फैंकना न पड़े, इन बातों का ध्यान रखें।
  • प्लास्टिक, कागज या थर्मॉकॉल के डिस्पोजेबल वस्तुओं के इस्तेमाल से दूर ही रहें।
  • विशिष्ट अवसरों पर प्लास्टिक के गिफ्ट्स, फूल या अन्य उपहार के स्थान पर पौधा दें।
  • कूड़ा कचरा जलाएं नहीं। सूखा कचरा और गीला कचरा अलायदा रखें। गीले कचरे से खाद बन सकती है और सूखे कचरे को री-साइकल किया जा सकता है।
  • तीन R याद रखें। Re-use, Reduce, Recycle.

यह तो हुई वह बातें जो हम कर सकते हैं। पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए सरकार द्वारा कुछ अधिनियम बनाए गए हैं।

आपको बता दें, 19 नबम्बर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागु किया गया। इस अधिनियम के अनुसार जल, वायु, भूमि – इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधे, सुक्ष्म-जीव, अन्य जीवित पदार्थ आदि पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं। इसके कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं उस पर गौर करें -

  1. पर्यावरण की गुणवत्ता के संरक्षण हेतु सभी आवश्यक कदम उठाना।
  2. पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन हेतु राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना।
  3. पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित करना।
  4. पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित अधिनियमों के अंतर्गत राज्य-सरकारों, अधिकारियों और संबंधितों के काम में समन्वय स्थापित करना।
  5. ऐसे क्षेत्रों का परिसीमन करना, जहां किसी भी उद्योग की स्थापना अथवा औद्योगिक गतिविधियां संचालित न की जा सकें। उक्त अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।

हम सब जानते हैं कि इस पृथ्वी पर हर जीवित प्राणी जीविका के लिए प्रकृति पर निर्भर है इसलिए पर्यावरण संरक्षण पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। अब यह बात पहले की तरह केवल भोजन, वस्त्र या आश्रय के बारे में नहीं है – यह उससे बहुत आगे हैं। हम प्राकृतिक संसाधनों को प्रकृति की तुलना में तेजी से कम कर रहे हैं, उनकी भरपाई कर सकते हैं।

सबसे कठिन चुनौतियों में से एक जिसका हम सामना कर रहे हैं, वह है वनों की कटाई, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरुप पर्यावरणीय गिरावट। बिगड़ती पर्यावरणीय परिस्थितियों के परिणामस्वरूप संसाधनों की कमी, स्वच्छता के लिए अनभिज्ञता और उसके कारण स्वच्छता में कमी उपरांत बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं जैसी कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। हम इन्सान पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिन में से कई अपरिवर्तनीय हैं जिसके कुछ आंकडें देखें।

  • हम हर साल 7.3 मिलियन हेक्टेयर जंगल खो रहे हैं।
  • दुनियाभर के महासागरों में लगभग 5.2 ट्रिलियन प्लास्टिक के कण तैर रहे हैं।
  • हर साल खराब वायु गुणवत्ता के कारण लगभग 7 मिलियन लोग मारे जाते हैं।
  • पिछले 12 वर्षों में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के कारण लगभग 21.5 मिलियन लोगों को स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया गया है।
  • पश्चिम एशिया में लगभग 90 प्रतिशत ठोस कचरे का निपटान लैंडफिल के रुप में किया जाता है, जिसके परिणामस्वरुप गंभीर भूमि प्रदूषण और भूजल का प्रदूषण होता है। यह बदले में स्वास्थ्य और स्वच्छता से संबंधित मुद्दों की ओर जाता है।  

हम हर वर्ष पांच जून को पर्यावरण दिवस मनाते हैं। दरअसल, हमें हर दिन विश्व पर्यावरण दिवस मनाना चाहिए। विश्व पर्यावरण दिवस हमें बड़ी चेतावनी दे रहा है। यदि दुनिया भर में प्राकृतिक संसाधनों का सोच-समझकर और संभलकर उपयोग नहीं किया गया, तो धरती लोगों की जरुरतों को पूरा नहीं कर पाएगी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा हर साल पर्यावरण दिवस की कोई न कोई खास थीम होती है। इस साल विश्व पर्यावरण दिवस 2022 की थीम 'Only One Earth' यानी ‘केवल एक पृथ्वी’ रखी गई है। जिसका मतलब है कि 'प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना' जरूरी है। देश, धर्म और जाति की दीवारों से परे यह ऐसा मुद्दा है जिस पर पूरी दुनिया के लोगों को एक होना होगा। पर्यावरण संरक्षण सिर्फ भाषणों, फिल्मों, किताबों और लेखों से नहीं हो सकता बल्कि हर इन्सान को धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, तभी कुछ ठोस प्रभाव नज़र आ सकेगा।