वृंदा मनजीत 
आजकल ध्वनि और ध्वनि प्रदूषण पर सुगबुगाहट चारों ओर से सुनाइ पड़ती है परंतु ध्वनि प्रदूषण के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिए शायद लाउड स्पीकर लगाना पड़ सकता है।
हम में से अधिकतर लोग हररोज सुनाइ पड़ने वाले आवाज़ों से परिचित होंगे, फिर वह ज़ोर से बजने वाला संगीत हो, टेलिविजन हो, लोग अपने फोन पर चिल्ला चिल्लाकर बात करते हों, ट्राफिक की आवाज़ें जैसे हॉर्न, टेप रिकार्डर, रेडियो आदि, या फिर आधी रात को पालतु या स्ट्रे डॉग्स के भोंकने की आवाज़ हो, यह सब शहर की संस्कृति का एक हिस्सा बन चुका है और अब यह हमें खलल भी नहीं पहुंचाते क्योंकि हम इसके आदि हो चूके हैं परंतु इसका असर हमारे मन और मस्तिष्क पर पड़ सकता है।
वैसे, जब टेलिविजन की आवाज़ सारी रात आती रहे तो हम सो नहीं पाते, या फिर ट्राफिक में फंसे हों और विभिन्न प्रकार के होर्न (पैं, पुं, तररररररर, तररररररर (मन डोले रे की ट्यून (वह भी बेसूरी)) भोंपू आदि) की आवाज़ें सिरदर्द को आमंत्रित करती है। ऐसेमें यह आवाज़ नहीं रह जाती उसकी सीमा लांघकर यह शोर में तबदील हो जाती है और अंत में, ‘ध्वनि प्रदूषण’ का रुप ले लेती हैं।
आपने कई बार सुना होगा कि ‘मुझे मेरे मन के भीतर से आवाज़ आइ और मैंने वैसा ही किया और यह सही हुआ।’ या उसका उल्टा, कि ‘मुझे उस समय मेरे मन के भीतर से आवाज़ आ रही थी परंतु मैंने अपनी ही बात नहीं मानी और सब उल्टा-पुल्टा हो गया। यदि आवाज़ सुनी होती तो ऐसा न होता।’ इसीलिए कहते हैं कि अपने अंतरआत्मा की बात सुननी चाहिए और उसके लिए बाहरी आवाज़ें बंद करनी चाहिए।
इसी से जूड़ी एक और बात बताने की इच्छा हो रही है कि आजकल लोग मानसिक शांति के लिए विपश्यना के योग-ध्यान सेन्टर में जाते हैं और कई दिन बीताते हैं। चाहे कितने ही दिन आप वहां रहें आपको मौन ही रहना है और मोबाइल और परिवार से दूर रहना है। ऐसा करने से मन शांत हो जाता है और साथ में शारीरिक स्वास्थ्य भी प्राप्त हो सकता है। शारीरिक और मानसिक इम्युनिटी बढ़ती है। 
कामकाज से थककर लोग अकसर अपने दूरसुदूर बसाए फार्म हाउस में जाते हैं जो ऐसे शोरगुल से कोसों दूर होता है। कुछ लोग अपने उन रिश्तेदारों के यहां जो ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, चले जाते हैं। इससे इतना समझ आता है कि अनवॉन्टेड आवाज़ जिसे हम ‘शोर’ कहते हैं, आम जिंदगी में नहीं होना चाहिए।
यदि किसीसे पूछो कि प्रदूषण क्या होता है तो उनके मनमें केवल वायु, जल या जमीन प्रदूषण होता है। हमारे आसपास सुनाई देने वाला बिन-आवश्यक शोर, ध्वनि प्रदूषण की स्पष्ट रूप से व्याख्यायित करता है जिस ओर किसी का ध्यान जाता ही नहीं, यद्यपि वह हमारा जीवन संगीत बेसूरा बना देती है।
ध्वनि प्रदूषण की व्याख्या सरल भाषा में यही है कि बहुत ज्यादा अप्रिय आवाज़ हो जिसके द्वारा कुदरत के संतुलन में अस्थायी विक्षेप आ जाता है। इस प्रकार की व्याख्या में आम तौर पर ऐसी आवाज़ आती है जो सामान्य से अधिक उंची होती है या उसे हम शोर ही कह सकते हैं। हमारे आसपास का माहौल ऐसा बन गया है कि आवाज़ से बचना मुश्किल बन चूका है। इसके कुछ उदाहरण देखेः-
इसमें अधिकतर परिवहन की आवाज़, हमारे आसपास स्थित दुकानें या घरों में से आनेवाली आवाज़ें, औद्योगिक आवाज़ें और इसके उपरांत अन्य अनेक प्रकार की आवाज़ को शामिल किया जा सकता है। यदि शुरुआत करें तो हमारे साथ घर में रहने वाले, पड़ोसी, घर में काम करने आने वाले लोग, दूध-सब्ज़ी-अखबार देने वाले – इन सभी के पास मोबाइल हैं और सुबह से सब की घंटी बजनी शुरु हो जाती है तो सोचीए, कुल मिलाकर कितना शोर हो जाएगा!? कई लोगों को तो इतनी ऊंची आवाज़ में बात करने की आदत होती है कि जैसे मंगल ग्रह पर किसी से बात कर रहे हों!!
रिक्षा, कार, कैब में रेडियो या टेप रिकार्डर को ऊंची आवाज़ में चलाते हैं। वे अपने लिए नहीं बजाते, दूसरे सुने और जले यह सोचकर बजाते हैं परंतुं वे सही मायने में अपना ही नुकसान करते हैं और अपने कान पर अत्याचार करते हैं। हमारे यहां डीजे का तो पूछना ही क्या!! कुछ सालों पूर्व विवाह समारोह दरमियान महिलाएं मंगल गीत, शादी के गाने, बारात को आमंत्रित करते हुए और मंगलाष्टक रागपूर्ण तरीके से गाती थीं। लेकिन अब तो जिस होटल में बाराती ठहरे हों वहां से शुरु करके पार्टी प्लॉट पहुंचने तक रास्ते में ज़ोर ज़ोर से डीजे बॉलिवूड के गाने गाते-बजाते हैं और सभी बाराती नाचते गाते रहते हैं। बीच बीच में पटाखे चले वह अलग से।!!! 
उदाहरण के तौर पर परिवहन के आवाज़ की बात करें तो कई ऐसे वाहन है जैसे पुराने टेम्पो, ट्रोली, ट्रक, कचरा उठाने वाला वाहन सभी खटारा हो गए हैं और बहुत आवाज़ करते हैं। ऐसे वाहन जब किसी सोसायटी या मल्टीस्टोरी अपार्टमेन्ट से गुजरते हैं तो पूरा अपार्टमेन्ट हिल जाता है उपर से आवाज़ खटडखटड आती ही रहती है। आजकल देखें तो वाहनों की संख्या भी इतनी बढ़ गई है कि शहरों में तो सुबह से लेकर रात तक केवल वाहन के चलने, हार्न बजने, वाहन में ज़ोर ज़ोर से बजने वाले गानों की आवाज़ें आती रहती है।
यदि आप फ्लैट में रहते हैं तो सभी घर एक दूसरे से बहुत सटे हुए होते हैं। प्रत्येक घर में टीवी, रेडियो, फोन की रिंग बजते ही रहते हैं, बरतनों की आवाज़ें भी आती रहती है। उपर की मंज़िल पर रहने वाले लोग सुबह जल्दी उठते हैं और चाय में डालने के लिए इलायची या अदरक कूटते हैं तो ठक ठक की आवाज़ से आपको भी उठ ही जाना पड़ेगा, फिर वे चाय आपको ओफर करें या ना करें।
फ्लैट में तो दो-तीन घरों के बच्चे यदि स्कूल जाने वाले हों तब तो क्या कहना!!! बच्चों को लेने वैन आएगी तो वह हॉर्न बजाता रहेगा। वहीं वैन में बैठे उनके सहपाठी भी चिल्लाते रहेंगे ‘देव, नीना, मोन्टु जल्दी आओ।’ वहीं यदि बच्चों के दादा या दादी नीचे खड़े रहेंगे तो वे भी चिल्लाते ही रहेंगे। बच्चों के नीचे आ जाने के बाद देव बाबु अपने पापा को आवाज़ लगाएंगे, ‘पापा, मेरी वॉटर बॉटल भूल गया हूं, प्लीज मुझे दे जाओ ना!!’ पापा दौड़ते हुए आएंगे। वहीं वैन में से एक बोलेगा, ‘नीना, तुमने वर्कबुक ली है ना?’ और फिर से ज़ोर से आवाज़ ‘मेरी वर्कबुक दे जाओ प्लीज!’ उफ...
यदि मैं अपने अपार्टमेन्ट की बात करुं तो यह एक पॉश इलाका है। हमारे अपार्टमेन्ट के सामने एक कारपेन्टर रहता है। दिन-रात उसके करवत चलने की आवाज़ें चररररररर...चरररररररर आती रहती है। ऐसे में यदि किसी को माइग्रेन की बीमारी हो तो माहोल असहनीय हो जाता है। दूसरी ओर पुराने जरजर हुए अपार्टमेन्ट को गिराकर नये बनाने की प्रक्रिया भी चल रही है। कहीं न कहीं बिल्डिंग कन्स्ट्रक्शन का कार्य चालु ही है। रास्ता भी मेन रोड कहलाता है तो दिन-रात परिवहन चालु रहता है। कभी गायों के रंभाने की आवाज़ तो कूत्तों के भौंकने की आवाज़ आती ही रहती है।
यदि आसपास कोई आटा-मिल हों, या कोई अन्य कार्य करने वाले लोग हों जो निर्धारित डेसिमल से अधिक आवाज़ कर रहे हों अथवा औद्योगिक विस्तारों में मशीनों की आवाज़ें, जनरेटर, मिल के मशीनों की आवाज़ें, एक्जोस्ट फैन या अन्य मशीनरी की आवाज़ ... पूरे शरीर-मनमस्तिष्क को झंझोड़ देती है।
आजकल आवाज़ को लेकर समाज में क्या चल रहा है यह हम सब जानते हैं। धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर रखकर अपने अपने समय पर अपनी अपनी प्रार्थना, भजन, अजान या प्रवचन की चर्चा संसद से लेकर पान के ठेले तक चल रही है।
भारतीय संविधान
जीवन का अधिकारः संविधान का अनुच्छेद 21 सभी व्यक्तियों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। सुप्रीम कोर्ट की बार-बार की गई घोषणाएं यह स्पष्ट रुप से बताती है कि अनुच्छेद 21 में निहित जीवन का अधिकार केवल जीवित रहने या जीते रहने के लिए नहीं है, या जो कुछ भी हो रहा है उसे सहना है; साथ ही सभी को मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार की गारंटी देता है। जो कोई भी अपने घर में शांति, आराम और सुकुन से रहना चाहता है, उसे शोर के प्रदूषण को उन तक पहुंचने से रोकने का अधिकार है।
धर्म और आवाज़ 
धर्म के अधिकार में लाउडस्पीकरों और इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने का अधिकार शामिल नहीं है जो उच्च मात्रा में ध्वनि उत्पन्न करते हैं। राज्य के पर्यावरण को ध्वनि प्रदूषण से मुक्त बनाने के लिए प्रत्येक राज्य को कुछ नियम और कानून बनाने का अधिकार है।
भारतीय दंड संहिता का अध्याय 4 ए सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिष्टाचार, नैतिकता से संबंधित अपराधों से संबंधित है, जो धारा 268, 269, 270, 279, 280, 287, 288, 290, 291, 294 के तहत है। उपरोक्त धाराओं द्वारा ध्वनि प्रदूषण पैदा करने वाले को दंडित किया जा सकता है।
आवाज़ को डेसिबल में मापा जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार व्हिस्पर (फुसफुसाकर बोलना) लगभग 30 डेसिबल होता है। सामान्य बातचीत 60 डेसिबल और मोटरसाइकिल का इंजिन लगभग 95 डेसिबल आवाज़ करता है। यदि लंबे समय तक 70 डेसिबल या उसके उपर की आवाज़ सुनी जाए तो सुनने की शक्ति को नुकसान हो सकता है। 120 डेसिबल या उसके उपर की आवाज़ कान में पड़े तो तुरंत व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है। निरंतर और निर्धारित डेसिबल से अधिक की आवाज़ सुनने से ओवरऑल स्वास्थ्य पर बुरा असर हो सकता है।
शरीर और मन पर असर
मानवसर्जित आवाज़ जैसे कि हथौडा मारने की आवाज़, मशीनरी, जनरेटर, एरोप्लेन, वाहनों की अनिच्छनीय आवाज़ें श्रवण शक्ति पर बहुत खराब असर कर सकते हैं। अचानक असह्य आवाज़ से कान का परदा टूट सकता है। इसके कारण संवेदनशीलता पर असर पड़ता है और शरीर और मन की लय असंतुलित हो जाती है।
कार्यस्थल पर, निर्माण के स्थान पर, यदि हमारे घर में एक से अधिक शोर होता है, तो यह मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। अध्ययनों से पता चलता है कि आक्रमक व्यवहार, नींद की गड़बड़ी, लगातार तनाव, थकान, अवसाद, चिंता, मनोभ्रंश और उच्च रक्तचाप न केवल मनुष्यों में बल्कि जानवरों में भी पाए जाते हैं। अत्यधिक शोर से व्यक्ति अपना आपा खो सकता है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है।
ध्वनि प्रदूषण के कारण सिरदर्द, उच्च रक्तचाप, सांस लेने में तकलीफ, नाड़ी की दर में वृद्धि, तेज और लगातार शोर के संपर्क में आने से गैस्ट्राइटिस, कोलाइटिस और कभी-कभी दिल का दौरा भी पड़ सकता है।
अत्यधिक शोर के कारण ब्रेन रीस्पोन्स में फर्क पड़ता है अर्थात मस्तिष्क के प्रतिभावों में फर्क पड़ता है, ऐसा कह सकते हैं कि कुछ होर्मोन्स गड़बड़ा जाते हैं। व्यक्ति अपने काम पर फोकस नहीं कर पाता, जिससे उसके प्रदर्शन में कमी आती है।
बहुत अधिक आवाज़ स्मरणशक्ति को कमज़ोर बनाती है जिससे अभ्यास में तकलीफ होती है। एक अभ्यास द्वारा पता चला है कि रेल्वे स्टेशन के पास स्थित स्कूल के विद्यार्थियों को पढ़ने में समस्या आती है। संशोधनों से पता चला है कि जो लोग एरपोर्ट के पास या व्यस्त एवं गीच जगहों पर रहते हैं उन्हें आम तौर पर सिरदर्द रहता है। कुछ लोग मन को शांत रखने के लिए या रात को अच्छी नींद लाने के लिए दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं। मन अशांत रहने के कारण और ध्यान केन्द्रित न कर पाने की वजह से अकस्मात हो सकता है। मानसिक समस्या से पीड़ित लोगों को कई बार इलाज भी करना पड़ता है।
जब अधिक आवाज़ वाले स्थान पर जो रहता है उसे उस आवाज़ का एहसास नही होता परंतु धीरे धीरे उसकी नींद की पेटर्न में अवरोध आने लगता है। उसे आंखों में जलन होती है और पूरा दिन अस्वस्थ रहता हैं। अधिक आवाज़ के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है। इससे रक्तवाहिनी के रोग हो सकते हैं और तनाव के कारण हृदय संबंधित समस्याएं बढ़ने लगती है। अभ्यास द्वारा पता चला है कि अधिक उंची आवाज़ ब्लड प्रेशर बढ़ाती है। हार्टबीट बढ़ जाती हैं क्योंकि वह सामान्य रक्तप्रवाह को रोकती है।
अधिक उंचे स्तर की आवाज़ों से व्यक्ति को तकलीफ होती है साथ ही साथ अन्य लोगों को बातचीत करने में समस्या खड़ी होती है इससे कभी गलतफहमी भी पैदा हो सकती है।
इस प्रकार की समस्या पर एक किस्सा याद आता है। ध्वनि प्रदूषण के बारे में सर्वोच्च अदालत द्वारा महत्वपूर्ण अवलोकन किया गया है जिस पर एक केस की हकीकत जानना आवश्यक है। एक बार किसी स्थान पर लाउडस्पीकर पर कुछ भजन कार्यक्रम चल रहा था। जो किसी शोरगुल से कम नहीं था। उस दरमियान कुछ असामाजिक तत्व एक 13 वर्ष की लड़की का बलात्कार कर रहे थे। भजन के शोरगुल में छोटी सी बच्ची की मदद की गुहार, चीख कोई सुन नहीं पाया था। इस केस के बारे में एक सज्जन व्यक्तिने कोर्ट में अरजी दी थी परिणामस्वरुप कोर्टने कठोर रुख अपनाया था।
ध्वनि प्रदूषण पर सरकारी नियम हैं जिन्हें NOISE POLLUTION CONTROL AND REGULATION RULLS 1999 कहा जाता है जिन्हें सरकार द्वारा अक्टूबर 2002 में संशोधित किया गया था। संशोधन राज्य सरकार को सांस्कृतिक या धार्मिक अवसरों पर या रात के घंटों के दौरान 10 से 12 बजे के बीच लाउडस्पीकर या सार्वजिनिक संबोधन करने वाले सिस्टम के उपयोग की अनुमति देने का अधिकार देता है।
वन्यजीवों पर प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण न केवल मानव जाति को प्रभावित करता है, बल्कि वन्यजीव इसके प्रभावों से अछूते नहीं रह पाते हैं। प्राणियों में इंसानों की तुलना में बेहतर श्रवणशक्ति होती है क्योंकि उनका जीवन केवल ध्वनि पर निर्भर करता है, उनके पास शब्द नहीं होते। उनके बात को कन्वे करने के अलग ही संकेत होते हैं। इसीलिए जब हम अभ्यारण्य में जाते हैं तो कितनी निरव शांति होती है, सन्नाटा होता है!!!
बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि मानव निर्मित ध्वनि प्राणियों की एक विस्तृत श्रृंखला को प्रभावित करती है। घर में रखे पालतू प्राणी-पक्षियों पर भी अत्यधिक शोर का प्रभाव देखने को मिलता है। जो प्राणी-पक्षी निरंतर शोर सुनते रहते हैं वे आक्रामक प्रतिक्रिया देते हैं।
प्राणी अवांछित शोर से विचलित होते हैं और उनके व्यवहार में परिवर्तन आता है। अत्यधिक शोर के कारण उनकी सुनने की क्षमता कम हो जाती है, वे शिकारी की हरकत सुन नहीं पाते इसलिए वे जल्दी शिकार बन जाते हैं।
वन में बसे वन्यजीव संभोग करने के लिए एक दूसरे को बुलाने के लिए आवाज़ लगाकर संकेद देते हैं। यदि इस प्रकार की कॉल के दौरान अत्यिधिक शोर होता है तो वे जो सुनना चाहते हैं वह कॉल सुन नहीं पाते। इस तरह उनके पुनर्जनन की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है। इसी प्रकार कई प्राणी-पक्षी विलुप्त होने लगे हैं।
संक्षेप में कहें तोः-
हमारी सरकार ने ध्वनि प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाए हैं लेकिन ध्वनि प्रदूषण के खतरनाक प्रभावों के बारे में आम जनता में जागरुकता बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है। हमारे देश में आम तौर पर ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों में जागरुकता की कमी है। ऐसी जागरुकता फैलाने का एक आसान तरीका यह है कि स्कूली बच्चों को इसके बारे में जागरुक किया जाए ताकि वे बड़ों को ऐसा न करने के लिए मना सकें। जब त्योहारों पर आतिशबाजी का प्रदर्शन होता है, कभी कभार ध्वनि प्रदूषण करने वाले वाद्ययंत्र बजाते हैं या डीजे जैसी पार्टी करते हैं। इनको रोकने के लिए प्रयास करना चाहिए। साथ ही स्कूलों के पाठ्यपुस्तकों में इस विषय पर एक विशेष अध्याय भी जोड़ा जाए ताकि वे अध्ययन कर और आत्म-जागरुकता लाकर एक जिम्मेदार नागरिक के रुप में अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक हो सके। कुछ अच्छी तरह से काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों की मदद से, ध्वनि प्रदूषण फैलाने के लिए अपनी स्थिति का दुरुपयोग करने वालों को ऐसा न करने के लिए कैसे राजी किया जाए, इस पर स्कूलों में व्याख्यान और वार्ता भी आयोजित की जा सकती है।
ध्वनि प्रदूषण के स्तर को कम करने के उपाय
WHO का भी मानना है कि ध्वनि प्रदूषण के प्रति जागरुकता की तत्काल आवश्यकता है। वर्तमान में ध्वनि प्रदूषण को कम करने का कोई ठोस उपाय नहीं है लेकिन इसके मिलने तक सरकारों से कुछ मदद मांगी जा सकती है।
राज्य सरकारें कर सकती हैः-
ध्वनि प्रदूषण को खत्म करने के लिए
1 ऐसे नियम स्थापित करें जिनमें निवारक और सुधारात्मक उपाय शामिल हों।
2 सरकार, कुछ क्षेत्रों, ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ हिस्सों, प्राकृतिक रुचिके क्षेत्रों, शहरी पार्कों आदि की रक्षा करके ध्वनि प्रबंधन सुनिश्चित करने और ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए कदम उठा सकती हैं।
3 आवासीय क्षेत्रों को हवाई अड्डों, औद्योगिक क्षेत्रों आदि जैसे ध्वनि उत्पन्न करने वाले स्थानों से पहले से दूर रखने की व्यवस्था करें।
4 माल की नियमित उतराई या भारी वाहनों को आने और जाने देने का समय निर्धारित करना।
5 शोर सीमा से अधिक होने पर अर्थदंड का प्रावधान।
6 क्लब, बार, पार्टियाँ, डिस्को में शोर के स्तर को नियंत्रित करके ध्वनि प्रदूषण को खत्म करें।
7 सार्वजनिक लाउडस्पीकरों को हटाना, विशेष रुप से धार्मिक स्थानों (धर्म की परवा किए बिना), जिसके लिए सरकार को स्पष्ट और सख्त निर्देश देना चाहिए।
8 बेहतर शहरी नियोजन में ‘नो नॉइज़ ज़ोन’ बनाने का प्रयास, जिस में बाहनों के हॉर्न बजाए जाने या औद्योगिक शोर को कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
9 शहर की सड़कों को समतल यानि बिना गढ्ढ़ों के बनाना ताकि वाहनों के गुजरने पर कम शोर उत्पन्न हो। वाहन कम खराब हों।
10 सरकार को भी पुराने खराब हो चुके वाहनों को हटाने और उन्हें नये से बदलने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए।
11 सामान्य मनुष्य ध्वनि प्रदूषण से पीड़ित होते हैं, उन्हें कई शारीरिक और मानसिक समस्याएं भी होती हैं लेकिन उन्हें समझ नहीं आता कि उन्हें ऐसा क्यों होता है। आप जहां भी जाते हैं गलियों में, दुकानों में, सोसायटियों में, होटलों में, अस्पतालों में, मॉल में, हर तरह की आवाज़ें सुनाई देती है। सब चिल्ला-चिल्ला कर ही बात कर रहे होते हैं, ऐसी आवाज़ों में मोबाइल का संगीत, हॉर्न की बेजान आवाज़, टूटे-फूटे वाहनों की आवाज़ सब एक साथ आकर शोर में बदल जाते हैं।
तो आइए ध्वनि प्रदूषण को कम करने का प्रयास करें और अंतरआत्मा की ध्वनि का अनुसरण करें।
हम सभी को संविधान का पालन करना चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना चाहिए कि जंगलों, जलाशयों, वन्यजीवों, मानव जाति, पशु, पक्षियों आदि सहित प्राकृतिक पर्यावरण को परेशान न किया जाए और हम अपना कर्तव्य निभाएं।