मेरी एक निजी बात शेर करना चाहती हूँ। मगर बता दे रही हूं, हंसना मत। मैं अपनी तीन सहेलियां कंगना, माया और हेतल के साथ एक कॉमन सहेली शेफाली के यहां गये थे। क्योंकि हम सब मिलकर देवल के घर एक प्रसंग पर जाने वाले थे। मैंने शेफाली से पूछा, ‘कैसी हो, अभी तक तैयार नहीं हुई!? मुझे मालुम ही था कि तुम नहीं आओगी।’ शेफाली ने जवाब दिया, ‘अरे मैं बिलकुल ठीक हूँ, और फिर तुम बुलाओ और मैं ना आउं ऐसा कैसे हो सकता है? Question does not take birth!! (वह कहना चाहती थी कि सवाल ही पैदा नहीं होता) हम सभी अपना होंठ मूंह में दबाकर न हंसने की जबरन कोशिश करने लगे थे। तब तक वह तैयार होकर आ गई। अब बताओ, Question does not arise की जगह Question does not take birth ऐसा शब्दशः अनुवाद करके अपना अंग्रेजी का ज्ञान झाड़ने की क्या जरूरत थी!

ऐसे ही एक बार अपनी भाभी की सहेली संज्ञा के यहां गई तभी संज्ञा की बेटी टीना स्कूल से लौटी थी और वह उसे खाना खाने के लिए मनुहार कर रही थी। बच्ची का मूड देखकर संज्ञा ने उससे पूछा, ‘मैं तुम्हारे लिए ओनियन कट कर दूं? पता है ओनियन इट करने से हम स्ट्रोंग हो जाते हैं!’ टीना का चेहरा देखकर लग रहा था कि वह सोच रही होगी कि मैं आज ओनियन खा लूंगी और कल स्कूल में उस बंटी को अपनी ताकत का परचा दे दूंगी। उसने मुस्कुराया और तुरंत हां कर दी और बोली, ‘मम्मा, मुझे ओनियन कट कर दो मैं इट कर लूंगी’। जैसी माँ वैसी...

अब बताइए, ओनियन कट करना, इट करना और स्ट्रोंग होना यह हिंदी में भी बोल सकती थी ना? लेकिन नहीं, हमें तो सहेलियों के सामने अंग्रेजी झाड़नी है और यह भी दिखाना है कि मेरी बेटी यही भाषा समझती है।

आपको लग रहा होगा कि आज यह ऐसी बातें क्यों कर रही है! चलिए, मैं याद दिला दूं, आज विश्व हिंदी दिवस है और इसलिए मैं हिंग्लिश की बातें लेकर बैठ गई हूँ।

ऐसे ही एक दफ्तर में जहां रूपया-पैसा कहां, कैसे और कितना बचाया जाता है उसके बारे में बताया जाता है। अर्थात एक फाईनान्शियल एडवाइजर का दफ्तर। उस दफ्तर में यदि कोई ग्राहक पैसा बचाने के तरीकों को समझाए अनुसार उस तरीके को अपनाने से इनकार कर दें और जो स्थिति होती है कहते हैं, ‘गई भैंस पानी में’। अब यदि कोई अंग्रेजी झाड़ने वाला या वाली बोले अथवा क्लायन्ट के सामने बॉस को बताना हो तो यह कहते हैं, ‘Buffalo went into water.’

ये सुनकर दो इंच स्माईल तो आ गई होगी आप सभी के चेहरे पर!

अब देखिये ना, हमारे देश में युगों से योग करने का चलन है। लेकिन इसको हमारे देशवासियों ने गंभीरता से लिया ही नहीं। जब योग विदेश से लौटकर ‘योगा’ बनकर आया तो सभी ने खुशी खुशी अपना लिया। इसके अलावा ऐसी बहुत सी बातें हैं जो हमें अपनानी चाहिए परंतु उसे भी हम गंभीरता से नहीं लेते।

मातृभाषा में शिक्षा ज़रूरी?

हम सब जानते हैं कि भारत के राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के निर्माता और नोबल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टागोर ने कहा था, ‘यदि विज्ञान को जन-सुलभ बनाना है तो मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए।’

भाषा अदभुत लब्धि है, भाषा से ही समाज बना और समाज ने भाषा का संवर्धन किया। भारत में अनेक समृद्ध भाषाएं हैं। सभी भाषाओं में संस्कृत अन्य भाषाओं की जननी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यद्यपि संस्कृत ही विश्व की समस्त भाषाओं की जननी है। संस्कृत सीखने के बाद हम दुनिया की किसी भी भाषा को सीख सकते हैं।

पच्चीस भाषाओं के जानकार महर्षि अभय कात्यायन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ‘संस्कृत भारतम् अस्माकं गौरवम्’ विषय पर आयोजित एक व्याख्यान कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा था, ‘हमारे भारतीय ग्रंथों में जिस मनोविज्ञान का वर्णन है, वह कल्याणकारी है, लेकिन हम मनोविज्ञान में पश्चिम के विद्वानों द्वारा दिए गए सिद्धांतों को पढ़ा रहे हैं। संस्कृत भाषा के ज्ञान के अभाव में हिंदी की भी दुर्दशा हो रही है। हमारे देश में मातृभाषा में शिक्षा नहीं दी जा रही है।’

भाषा की आवश्यकता क्यों है?

भाषा की जरूरत मनुष्यों को इसलिए है ताकि हम अपनी भावनाओं को एक दूसरे तक पहुंचा सकें। हमारे देश में जहां हर दो कोस पर बोली बदल जाती है, वहां हिंदी भाषा भी हर जगह एक जैसी नहीं रहती। अब आप उत्तर प्रदेश की हिंदी ले लीजिए और उसकी तुलना राजस्थान की हिंदी से करिए। इन दोनों ही भाषाओं का मूल तो हिंदी है, लेकिन उनके बोलने के तरीके शब्दों और लहेजे में कई अंतर देखने को मिलेंगे। 

हिंदी दिवस क्यों मनाते हैं हम?

ऐसे में सवाल यह उठता है कि हिंदी दिवस मनाने की जरूरत क्यों है? दरअसल, हिंदी भाषा को अधिक से अधिक समृद्ध बनाने उसमें नए शब्दों को जोड़ने और इसके विलुप्त होने से बचाने के लिए हिंदी दिवस का मनाना बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

 

प्रथम हिंदी दिवस कब मनाया गया?

 

हम सब जानते हैं कि पहले देश में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता था। इसकी शुरुआत 1949 में हुई थी। आजादी के बाद संविधान में नियमों और कानून के अलावा नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा होनी भी जरूरी थी। इसलिए 14 सितंबर 1949 को संविधान में एक मत से निर्णय लिया गया था कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी और हिंदी को देश की राजभाषा घोषित किए जाने वाले दिन ही हर साल हिंदी दिवस मनाना चाहिए। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया। हिंदी दिवस के अलावा हर साल 10 जनवरी को विश्‍व हिंदी दिवस भी मनाया जाता है।

 

धीरे धीरे बदला हिंदी बोलने और लिखने का तरीका

क्या आपने कभी 90 के दशक का कोई अखबार दोबारा पलट कर देखा है? जब आप उसकी तुलना आज के अखबार में लिखी गई हिंदी से करेंगे तो आप पाएंगे कि 20 साल पहले जिस तरह से हिंदी लिखी जाती थी, अब उसके लिखने के तरीके में अंतर आया है। अगर आपको ऑनलाइन कहीं से साल 1947 का अखबार मिल जाए तो जरा उसकी हिंदी पढ़ कर देखियेगा। आप देखेंगे कि वह बिल्कुल ही अलग हिंदी है। 

 

सोशल मीडिया की अफलातून हिंदी

अखबारों की छोड़कर अगर हम सोशल मीडिया पर जाएं तो हम देखेंगे कि अब जिस तरह से हिंदी लिखी या बोली जाती है उसमें विदेशी भाषाओं का बहुत योगदान होता है। जब आप अपने मोबाइल पर मैसेज टाइप करते हैं तो हिंदी को कई बार देवनागरी लिपि में ना लिखकर रोमन लिपि में ही लिखते हैं। इससे हिंदी भाषा का महत्व तो कम नहीं हो जाता लेकिन इसका तरीका बदल जाता है।

 

साहित्य की हिंदी सबसे अलग

हिंदी साहित्य की बात करें तो जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि का हिंदी लेखन बहुत ही क्लिष्ट और संस्कृतनिष्ठ हिंदी से भरा हुआ करता था। यह आम जनता के लिए समझ पाना मुश्किल था। इसीलिए जैसे-जैसे साहित्य आगे बढ़ा, साहित्यकारों ने सरल और बोलचाल वाली हिंदी भाषा को अपने लेखन का हिस्सा बनाया। हिंदी भाषा पर उर्दू का भी गहरा प्रभाव है। आपने सुना होगा कि अगर हिंदी मां है तो उर्दू मौसी, यानि ये दोनों भाषाएं एक दूसरे के बिना आज के स्वरूप को हासिल नहीं कर सकतीं। 

 

हिंदी और हिंदुस्तानी

आज के दौर में हिंदी भाषा विदेशी और प्रादेशिक भाषाओं के समन्वय से बनी हुई हिंदुस्तानी भाषा कहलाती है, जिसमें हिंदी उर्दू, इंग्लिश, भोजपुरी, राजस्थानी, मालवी, अवधी आदि भाषाओं का एक खूबसूरत गुलदस्ता नजर आता है।

 

अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है?

कुछ सालों पहले एक चुटकुला काफी प्रचलित हुआ था, हो सकता है आपने भी सुना हो। यह चुटकुला ऐसा था कि मैं आपसे प्रश्न करती हूं कि मुझमें और ओबामा में क्या समानता है? अब आप कहेंगे कि कुछ भी नहीं, तो मैं आपसे कहूंगी कि हम दोनों में यह समानता है कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती और ओबामा को हिंदी नहीं आती।

इस चुटकुले की गहराई तक अगर आ जाए तो इसमें अपनी मातृभाषा को जानने और उसे बोलने में गर्व महसूस करने की इच्छा नजर आती है। आज के दौर में हिंदी भाषा का इस्तेमाल कम होता जा रहा है, लेकिन इसकी वजह हिंदी भाषा जानने वालों की कमी नहीं है। बल्कि इसे पब्लिक में बोलने पर शर्मिंदगी महसूस करने वालों की बहुतायत है।

 

हिंदी और अंग्रेजी भाषा की आवश्यकता

बदलते समय के साथ बहुत चीजें बदल जाती हैं। ऐसा ही बदलाव हमारे बोलने, पहनने और खाने में आता है। इंटरनेट की तेजी और बदलते कल्चर की वजह से अंग्रेजी भाषा हम सभी के ज्यादा करीब हो गई है। इसे बोलने में भी कोई बुराई नहीं है। 

आप खूब इंग्लिश में बात करिए। अगर आप इसमें कंफर्टेबल महसूस करते हैं तो इसे ही अपनी बातचीत की प्राथमिक भाषा रहने दीजिए। लेकिन जब कभी आपको हिंदी बोलने का मौका मिले तो इसमें शर्म का अनुभव क्यों करना?

 

हिंदी और स्टेटस का दिखावा

हिंदी भाषा आपका स्टेटस नहीं दिखाती। कोई भी भाषा अपनी भावना व्यक्त करने का एक माध्यम भर हैं। यह किसी को अमीर गरीब नहीं बनातीं। अरे यह तो आपके घर की भाषा है, आपके शहर और गांव की भाषा है। इसे बोलने में शर्म नहीं अपनापन महसूस होना चाहिए। आपने कई बार देखा ही होगा कि भीड़ में कोई अपनी भाषा बोलने वाला मिल जाए तो कितनी खुशी होती है!?

 

भाषा ज्ञान का पैमाना  नहीं

जैसा कि हम ऊपर बात कर रहे थे भाषा किसी का स्टेटस या समझ नहीं दिखाती। यह सिर्फ अपनी बात सबसे अच्छे ढंग से किसी से कह पाने का जरिया है। आजकल तो मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले बिलकुल अज्ञानी-अनपढ़ भी अंग्रेजी के शब्दों को बोलने लगे हैं क्योंकि यह तो उन्हें मुफ्त में ही सीखने को मिल गई है।

लेकिन आप अपने आसपास नजर डालेंगे तो यह महसूस करेंगे कि जो व्यक्ति इंग्लिश भाषा बोलने में सहज नहीं महसूस करता, उसे कम पढ़ा लिखा या कम समझदार माना जाता है। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति भारत के किसी ऐसे हिस्से से आता है जहां हिंदी भाषा नहीं बोली जाती, उसका हिंदी में बोल पाना उसके पिछड़े होने की निशानी बनता है।

लेकिन ज्ञान भाषा पर आधारित नहीं होता। ज्ञान तो आपकी समझ, अनुभवों और अगर ऑफिस की बात करें तो ट्रेनिंग पर निर्भर करता है। हो सकता है कि कोई व्यक्ति इंग्लिश नहीं हिंदी में बोलता हो लेकिन उसे कंप्यूटर कोडिंग के बारे में अच्छे-अच्छों से ज्यादा नॉलेज हो सकती है। यह भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति हिंदी ना बोल पाता हो और अपनी प्रादेशिक भाषा में फिलॉसफी से जुड़ी ऐसी बातों का रहस्य खोल सकता हो, जो शायद देश विदेश के विद्वानों ने भी ना खोला हो। किसी को उसकी भाषा के आधार पर कम समझदार आंकना हमारी अपनी कमअक्ली को दर्शाता है।

 

दुनिया बदल रही है, हिंदुस्तान को भी बदलना होगा

दुनिया तेजी से बदल रही है। इसी तरह भाषाओं का स्वरूप भी बदल रहा है। बीते कुछ समय से हिंदी का स्वरूप भी तेजी से बदला है। चाहे हिंदी साहित्य हो या आम बोलचाल की भाषा, अब नई वाली हिंदी का चलन आ गया है। 

हिंदी भाषा में ऐसी बहुत सी चीज़ लिखी और पढ़ी जा रही हैं जिनके बारे में हमारे साहित्य में कभी भी कुछ नहीं था। इसमें औरतों से जुड़े मुद्दों पर औरतें खुद लिख रही हैं, मेंटल हेल्थ से जुड़े मुद्दों पर हिंदी में लिखा जा रहा है और सेक्स और रिश्तों के बारे में भी नए रिसर्च और तजुर्बे लिखे जा रहे हैं।

 

शब्दों का अकाल

लेकिन कई बार जब आप किसी ऐसे मुद्दे पर लिखते हैं, जहां हिंदी में पहले कभी नहीं लिखा गया है, शब्दों का एक अकाल सा महसूस होता है। इसके लिए अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है। जो शुद्ध हिंदी पसंद करने वाले लोग हैं उन्हें हिंदी में इंग्लिश का प्रयोग रास नहीं आता। लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि अगर भाषाओं को आपस में मिलाजुला कर काम नहीं किया गया तो कोई भी भाषा बहुत समय तक जीवित नहीं रह पाएगी।

इसीलिए हिंदी वालों को भी इस बदलती हिंदी के साथ बदलना होगा और शुद्ध और प्योर की इच्छा को दरकिनार करते हुए हिंदी के इस यंग और तेजी से बदलते स्वरूप को स्वीकारना होगा।

ये हमारी गुलाम मानसिकता को दिखाता है, बचपन से ही दिमाग मे भरा जाता है कि गोरे लोग सुन्दर होते है और काले बदसूरत, इंग्लिश बोलने वाले समझदार और बुद्धिमान होते है, हिंदी बोलने वाले देशी होते है, यहां देशी को मूर्ख दिखाया जाता है। हम लोग कभी भी अपने भाषा, संस्कृति, इत्यादि पर गर्व नहीं करते.. असल मायने में दोष हमारी गुलाम मानसिकता, और व्यवस्था का है। किसी का बच्चा अगर इंग्लिश बोलता है तो उसे गर्व होता है, हिंदी बोलने वाले बच्चे स्कूल में भी कमज़ोर माने जाते हैं भले ही उनकी दूसरे विषय की जानकारी बेहतर ही क्यों ना हो! कड़वा लेकिन सच.. हम खुद जिम्मेदार है काफी हद तक।

दिमाग सोचमें पड़ गया ना? चलो थोड़ा और हंस-बोल लें।

ट्रेन की सटीक हिंदी रेलगाड़ी है।

किसीने कहा ठीक है परंतु प्लैटफार्म का हिंदी क्या हो सकता है तो जवाब मिला ‘लौह पथ गामिनी गमनागमन स्थल’ ये अनुवाद बहुत पुराना होते हुए भी प्रचलन में नहीं आया । इस शब्द का प्रयोग हिंदी का मजाक बनाने के लिए अधिक हुआ है ।

इसका कारण भारत में अभी भी अंग्रेजी का प्रचलन है। जिस वजह से लोगों को शब्द के मूल का पता चल जाता है। अंग्रेजी जानने के कारण पता चल गया मोबाइल शब्द अंग्रेजी Mobile से आया है। यही सवाल उन शब्दों के लिए नहीं होते जो मूलतः फ़ारसी हैं। उदाहरण के लिए "सवाल (प्रश्न), जवाब (उत्तर), जालिम (निर्दयी), दिल (हृदय), शायद (संभवतः), मेहरबानी (कृपया), दोस्ती (मित्रता), रोजाना (दैनिक), रोजमर्रा (प्रतिदिन)" आदि। इन शब्दों को मूलतः हिंदी शब्द ही मान लिया जाता है । ये हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल है। क्योंकि हम फ़ारसी नहीं जानते और हमें नहीं पता चलता के ये शब्द फ़ारसी से आए हैं।

इन फारसी शब्दों के स्थान पर मौलिक शब्दों के प्रयोग में कोई हर्ज नहीं है। क्योंकि मौलिक शब्द भी उसी अर्थ में उपलब्ध है और लोकप्रिय भी हैं।

पर ये बात बस, साईकिल, कम्प्यूटर, फोन के लिए लागू नहीं है। क्योंकि ये नए अविष्कार है। इन शब्दों के मौलिक रूप मिलेंगे नहीं, नए भारतीय रूप बनाने पड़ेंगे। क्योंकि पूरा समाज इन अंग्रेजी से आये रूप को ठीक से समझ सकता है, इसलिए भारतीय रूप बनाने की आवश्यकता नहीं।

पर अगर कोई भारतीय रूप बनाया गया और वह लोकप्रिय हो गया, तो उसमे भी हर्ज नहीं। पनडुब्बी एक ऐसा शब्द है जिसको जबरदस्ती नहीं बनाया गया लेकिन पूर्णतः प्रचलित है। ये भी बस और ट्रेन की तरह ही नए आविष्कार सबमरीन के लिए है। पर ये शब्द इस बात का उदाहरण है कि समाज में स्वतः ही श्रेष्ठ शब्द कैसे आ सकते हैं। सोचिए पनडुब्बी के स्थान पर यदि "जल मग्न यान" का प्रयोग होता तो ये तकनीकी तौर पर सही शब्द होने बावजूद उतना सहज नहीं होता, इसमें कृत्रिमता स्पष्ट दिखाई देती।

दूरदर्शन, आकाशवाणी, दूरभाष जैसे शब्दों को थोड़ी सफलता मिली है। इन शब्दों को लोग समझ तो सकते हैं, पर ये उतने लोकप्रिय नहीं हो पाए हैं जितने इनके अंग्रेजी से आये रूप हैं, टीवी, रेडियो, और फोन।

निःसकोच रेलगाड़ी शब्द को हिंदी शब्द मानकर प्रयोग करें। कहें कि यह अब एक हिंदी शब्द भी है। जैसे Guru, Loot, Jungle, Pyjamas के लिए कोई अंग्रेज नहीं पूछता कि इनकी सही अंग्रेजी क्या है। यही नहीं एक से अधिक रेलगाड़ी लिए हिंदी वाला अनेकवचन ही प्रयोग करें। 

वैसे तो भारत में बंगाली, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, उड़िया, गुजराती, मराठी और पंजाबी जैसी कई भाषाएं बोली जाती हैं. लेकिन देश में अधिकतर लोग बोलचाल में हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं. वहीं अगर भारत के अलावा बात की जाए तो मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो और नेपाल ऐसे देश हैं जहां हिंदी बोली जाती है।

कैसे हुआ था हिंदी का विकास?


हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है, जिसे आर्य या देव भाषा भी कहा जाता है। हिंदी को इसी आर्य भाषा यानी संस्कृत का उत्तराधिकारी माना जाता है.

दिलचस्प बात ये है कि संस्कृत से निकली 'हिंदी' फारसी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है हिंद से संबंधित। हिंदी शब्द सिन्धु से आया था, क्योंकि ईरानी भाषा में '' को '' बोला जाता है। इस तरह सिन्धु शब्द से हिंद, और हिंद से हिंदी बना। 

भारत में आर्य भाषाएं अलग-अलग काल में विभिन्न रूपों में बोली गईं। जैसे संस्कृत के बाद पालि, फिर प्राकृत और इसके बाद अपभ्रंश और इसके बाद हिंदी भाषा बोली जानी शुरू हुई। हिंदी का जन्म 1000 ईस्वी पूर्व माना जाता है।जिसे आधुनिक भारतीय आर्यभाषा भी माना जाता है। 

दुनिया की पांचवीं सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा


हिंदी दुनिया की पांचवीं सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। भारत के अलावा हिंदी का उपयोग पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूज़ीलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, युगांडा, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरीशस और दक्षिण अफ्रीका में भी किया जाता है।

सरकार भी हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए समय-समय पर नए प्रयास कर रही है। शिक्षा के क्षेत्र में भी हिंदी को वरीयता दी जा रही है। साथ ही सरकारी कामकाजों में भी हिंदी का उपयोग बढ़ रहा है।

विश्व हिंदी दिवस के इस अवसर पर हम सभी, तमाम चुनौतियों और विरोधों को झेलती एक भाषा की अविरल यात्रा जो बिलकुल गंगा की तरह पवित्र और प्राचीन है उसे अपनाने का प्रण लें।

न्यूज़ सोर्स : वृंदा मनजीत