(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
मध्यप्रदेश के प्रभावशाली चाणक्य ने उज्जैन में बाबा महाकाल से यह प्रार्थना की थी कि मध्यप्रदेश कांग्रेस में अब कोई दूसरा सिंधिया पैदा न हो। तब से राजनैतिक क्षेत्रों में यह बहस आम है कि क्या कांग्रेस में सिंधिया स्वयं पैदा हुये थे या सिंधिया को विद्रोही सिंधिया बनने में कांग्रेस में कुछ नेताओं की भूमिका थी। यह बात अलग है कि इस बात का अनुमान नहीं लग पाया था कि सिंधिया भाजपा की ओर चले जायेंगे और कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आकर 15 महीनों बाद ही मुँह के बल गिर पड़ेगी। 
अनुमानों की गलती के कारण कांग्रेस की सरकार सिंधिया के तूफान के सामने ठहर नहीं सकी। यह बात अलग है कि विद्रोही सिंधिया को जन्म देने वाले कंग्रेस के नेता शेष 45 महीनों में सरकार के पतन के लिये सिंधिया की दगाबाजी को दोषी ठहराते रहे। वास्तव में कांग्रेस में सिंधिया पैदा न हो इसके स्थान पर कांग्रेस को प्रार्थना यह करनी चाहिए कि बलपूर्वक या छलपूर्वक सिंधिया के विद्रोही तेवर को जन्म देने वाले वे कपटी नेता कांग्रेस में पैदा न हो, जो अपने नीजि स्वार्थो के लिये अपनी ही मात्र संस्था को भाड़ में भेज देते हंै। इतिहास जानने वाले कल की घटनाओं को सिंधिया के आत्म सम्मान पर बार-बार की जाने वाले चोट से जोड़कर देखते है। ग्वालियर के महाराज रहे सिंधिया आखिरकार कितनी दूर तक उनके मातात्र रहे किसी जमीदार के द्वारा किये जा रहे अपनाम को झेल सकते थे, यह प्रश्न आज भी उपरोक्त घटना के हर पहलु को स्पष्ट करता है। वास्तव में सिंधिया से हाई कमान की बचपन की मित्रता राज्य में कुछ थकेहारे कांग्रेसियों की व्यक्तिगत महत्वाकांशा में रोडे अटका रही थी। यह उम्मीद तो नहीं थी कि सिंधिया अपमानित होने के बाद भाजपा की और जायंगे। यह जरूर मामूल था कि सिंधिया का किसी भी तरह का सार्वजनिक अपमान उनकी महाराज छवि को आघात जरूर पहुंचायेगा। अपमानित करने के पहले सिंधिया केम्प के कुछ दरबारियों को जो विधायक भी थे भड़काने वालों में अपनी ओर मिलाने की कोशिश भी की यह उम्मीद थी कि सिंधिया केम्प में 5-6 लोग ऐसे है जो सिंधिया के अपमान के बाद बनी परिस्थितियों मे अंत में कांग्रेस के केम्प में ही आ जायेंगे। 
परंतु हुआ इसका ठीक उल्टा। जिन्हें भविष्य का जासूस बनाकर षड़यंत्रकारी नेता उनकी उदरपूर्ति कर रहे थे विद्रोह होने के साथ ही सिंधिया भाजपा में गये और जासूसों ने इन परिस्थितियों में कांग्रेस का साथ देने के स्थान पर महाराज का दामन जोर से थाम लिया। कांग्रेस के चाणक्यों द्वारा बनाई हुई पूरी योजना सरकार को गिरा गई पर षड़यंत्रकारी कांग्रेसियों के आत्मसम्मान में कोई वृद्धि नहीं कर सकी। 45 महीनों तक विद्रोह के निर्माणकार्ता कांग्रेसी नेताओं ने शांतिपूर्वक शिवराज सरकार में अपने राजनैतिक स्वार्थो की पूर्ति का सुगम मार्ग ढूंढ लिया और इस चुनाव के आते-आते एक बार पुनः बिना कुछ किये मिलने वाली सम्भवित जीत पर अपनी दावेदारी ठोकने के लिये झण्डा बुलंद कर दिया। 
सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर एक तथ्य जरूर स्पष्ट होता है कि कांग्रेस में क्रियाशील, अंहकारी और सुविधा भोगी राजनेताओं की बिसात कांग्रेस में षड़यंत्र का मुख्य कारण है। यदि कांग्रेस चुनाव जीत जाती है तो भी कांग्रेस के अंदर इन षड़यंत्रकारियों के खिलाफ आत्मसम्मान से भरे हुये एक नये समूह का जन्म लेना तय हैं, जो आने वाले समय में कांग्रेस की राजनीति की धारा को एक बार पुनः बदलेगा। फिलहाल कांग्रेस का प्रदेश कमान आने वाली जीत के प्रति अश्वस्त हो, भविष्य की केबिनेट की लिस्ट तैयार करने में व्यस्त है।