(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
पिछले लगभग दो महीनों से लगातार प्रतिदिन एक नये कार्यक्रम या घोषणा ने सरकार को आगामी विधानसभा चुनाव में फिरसे खड़ा कर दिया है। दो महीने पहले प्रारंभिक माहौल में यह मान लिया गया था कि भाजपा लम्बे समय तक सरकार में रहने के बाद इस बार निर्वाचन में काफी पीछे चली जायेगी। इस अवधि में शिवराज सिंह चौहान ने मंच पर घुम-घुम कर दण्डवत प्रणाम करके मतदाताओं के सामने जिस तरह के भाव का प्रदर्शन किया उसे सिर्फ गिड़गिड़ाना कहते है। मध्यप्रदेश की राजनीति में संभवतः यह पहला अवसर था जब मुख्यमंत्री भीख का कटोरा लेकर सार्वजनिकतौर पर सारी राजनैतिक और प्रशासनिक मर्याताओं को कोने में करते हुये सार्वजनिक मंच पर गिड़गिड़ा रहा था। अपने अभी तक के चुनाव अभियान ने शिवराज ने कभी-कभी आम मतदाता से यह पूछने की भी हिम्मत की, कि मुझे 5वीं बार मुख्यमंत्री बनाओंगे की नहीं। यह बात अलग है कि मतदाताओं की ओर से इस प्रश्न का कोई सार्थक उत्तर नहीं मिल पाया है। दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान को 5वीं बार मुख्यमंत्री पद मांगने पर इसकी तुलना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री पद प्राप्त करने की इच्छा का सार्वजनीकरण माना गया है। 
भाजपा में यह माना जाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भी नरेन्द्र मोदी का यदि कोई विकल्प है तो वह स्वयं शिवराज सिंह चौहान है। दोनों ही मतदाताओं को प्रभावित करने और आवश्यकतानुसार परिस्थितियों के अनुसार झूठे सच्चे वायदे करने में पारंगत है। दोनों में सबसे बड़ी समानता इस बात की भी है कि दोनों ही जनता की नब्ज़ को अच्छे से समझते है और यह तय करने में देर नहीं करते कि इस क्षण कौन का मुद्दा आम जनता के सर चढ़कर बोल सकता है। 
शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा चुनाव के अभियान के दौरान इतनी घोषणाएं कर दी है कि उन्हें वास्ताव में पूरा करना पडे तो मध्यप्रदेश के वार्षिक बजट को दो गुना करना पडेगा। वैसे भी जानकार मानते है कि किसी भी मुख्यमंत्री द्वारा की गई सबसे अधिक सार्वजनिक घोषणाओं शिवराज अग्रणी है। इन घोषणाओं को करते वक्त मतदाता की रूची का ध्यान रखा गया है इस घोषणाओं का दूरगामी प्रभाव का कोई अध्ययन नहीं किया गया। इसमें संदेह होना चाहिए कि यह योजनाएं चुनाव के लिये की गई है और चुनाव के बाद क्रमशः इनका अस्तित्वहीन हो जाना तय है। भाजपा इन दिनों परेशान है तो अपने आंतरिक विद्रोह से, राष्ट्रीय स्तर से जो संकेत बार-बार भाजपा हाई कमान से मिल रहे है वे यह स्पष्ट करते है कि मध्यप्रदेश सहित चुनावी राज्यों के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा का संगठन चरमरा रहा है। इसका प्रमुख कारण लोगों के अनुसार भाजपा में पैदा हुई तानाशाही प्रवृत्तियां और वरिष्ठ किंतु प्रभावशील राजनेताओं का राष्ट्रीय राजनीति से लगभग पूर्णतः अलग हो जाना है। यही कारण है कि चाहे नये संसद भवन का उद्घाटन हो या किसी अन्य विशिष्ट व्यक्ति के लिये आयोजित किया जाने वाला विशेष समारोह भाजपा के प्रत्येक नेता की आंख सभा कार्यक्रम स्थल पर अडवानी और मुरली मनोहर जोशी को खोजती है। जिन्हें भाजपा के वर्तमान नेतृत्व में अंधे कुएं में इस तरह कैद कर दिया है कि वे चाहकर भी पार्टी में न अपनी राय रख सकते है और नाही भविष्य की योजनाओं में कोई हस्तक्षेप कर सकते है। मध्यप्रदेश में भाजपा एक बार पुनः कांग्रेस के सामने धीरे-धीरे तन के खड़ी हो रही है। राजनैतिक पे्रक्षको को इंतजार है दोनों दलों के द्वारा समूची विधानसभाओं में उम्मीदवारी की घोषणा का और उसके बाद उठने वाले तूफान का।