(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
इस बार मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव जनता की इच्छाओं, आकांशाओं और परेशानियों को मुद्दा बनाकर कम लड़े जा रहे हैं। कथा वाचकों, धार्मिक अनुष्ठानों और हिन्दू धर्म से संबंधित अन्य क्रियाकलापों पर अधिक दोनों ही राजनैतिक दल मध्यप्रदेश में इस बात पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं कि कौन कितनी अधिक कथाएं, शिवपूराण, अभिषेक, पूजा, धर्म यात्राएं करके आम हिन्दू मतदाता को प्रभावित कर पाता है। धर्म आधारित इस निर्वाचन में जनता की समस्याएं बहुत पीछे चली गई है, समस्याओं के निवारण के नाम पर जनता को आश्वासनों के टुकड़े फेके जा रहे, जिससे उन्हें यह भ्रम बना रहे कि फला पार्टी जीती तो गैस के दाम कम होंगे महगांई घटेगी अस्थायी नौकरी स्थायी में बदलेगी परंतु ऐसा कुछ हो पाना संभव नज़र नहीं आता।
जुलूस, समारोह, झंडा यात्राओं आदि में भीड़ के रूप में मस्त मतदाता इन निर्वाचनों के दौरान अवकाश बनाने के मूड में है। यह एहसास हो रहा है कि मतदाता को स्वयं अपनी समस्या का एहसास अब नहीं रहा है। आने वाले कल में जिन परेशानियों को वो कई सालों से भोगता चला आ रहा था, उसके निरन्तर रहने में भी उसे कोई परेशानी नहीं है। चंद बुन्दी के लड्डू के डब्बों और राजनैतिक जुलूसों में आम आदमी अपना अस्तित्व खो चुका है। वास्तव में मध्यप्रदेश के निर्वाचन ऊपरी दिखावे की राजनीति में एक झूठी धार्मिकता की चादर ओढकर कुछ इस तरह प्रगट हो रहे हैं कि आने वाला कल झूठी संवेदनाओं और आश्वासनों के चलते अँधेरे में नज़र आने लगा है। राजनैतिक दलों में स्थिरता नाम की नहीं है जिन्हें हम राजनेता कहते है उनके बयानों में गंभीरता या शालिनता नाम मात्र को नहीं है। सब कुछ ऐसा चल रहा है कि कुछ बहरूपिये राजनीति के मैदान में बिना किसी योजना बिना किसी संस्कार के उदण्ड भाषा में उटपटांग हरकत करते हुये मतदाता को प्रभावित कर जीतने की एक योजना बना चुके है। 
आश्चर्य इस बात का है कि समूचे मध्यप्रदेश में दोनों राजनैतिक दलों के पास अब कोई गंभीर नेता नहीं रहा है। यही कारण है कि ओछे बयानों और निम्न स्तरीय राजनीतिक गतिविधियों के चलते राज्य में पहली बार निर्वाचन सबसे निम्न स्तरीय प्रक्रियाओं के माध्यम से होने जा रहा है। 
मध्यप्रदेश को देश में सबसे शांत और शालीन राज्य के रूप में जाना जाता था। इस राज्य की परम्पराओं ने स्व. कुशाभाऊ ठाकरे, स्व. सुन्दरलाल पटवा, स्व. अर्जुन सिंह, स्व. विरेन्द्र कुमार सकलेचा जैसे शीर्ष नेताओं को हमेशा स्मरण किया जाता रहा है। जिन्होनें राजनैतिक मर्यादाओं की एक लाइन हमेशा कायम रखी और राज्य को एक स्थिर और राज्य को मानसिक रूप से मजबूत राजनैतिक तंत्र दिया। वर्ष 2023 में होने वाले चुनाव में दोनों ही राजनैतिक दलों की पूरी पाइप लाइन ही खाली है। कोई सोच नहीं है तात्कालिक प्रतिक्रिया में शब्दों की मर्यादा नहीं है और राजनैतिक हमले कब व्यक्तिगत हमलों में परिवर्तित होते हैं इस बात की कोई गारंटी नहीं है। यही कारण है कि प्रलोभन की रोटियां लेकर दोनों ही राजनैतिक दल धार्मिक आडम्बर करके मतदाताओं को प्रभावित करना चाहते है। एक और 18 वर्ष तक सरकार चलाने वाली भाजपा यह दावा नहीं कर पा रही कि उसने वास्ताव में इतने सालों में किया क्या है। दूसरी ओर वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता कमलनाथ के नेतृत्व में कांगे्रस भी यह स्पष्ट नहीं कर पा रही कि 15 महीने के सरकार वास्तव में थी किसके लिये और भविष्य में उसे यदि अवसर फिर मिले तो वह कौन सी नई क्रांति करके प्रदेश में एक नया राजनैतिक वातावरण निर्मित कर सकती है। आम दर्जे का मतदाता दोनों दलों को लेकर ही शंका में है, भ्रम की स्थिति में केवल मंच से चलने वाली धार्मिक कथाएं उसमें इकट्ठा होने वाली भीड़, होने वाला करोडो रूपये का खर्च अब राजनैतिक प्रचार बन गया है। इसी प्रचार के भरोसे कोई महाकाल भाग रहा है कोई अपने क्षेत्र में करोडो रूपये का पंडाल लगाकर हनुमान और शिव की कथाएं मतदाताओं को सूना रहा है। परंतु कथाओं के सार में आम व्यक्ति की समस्याओं का न कोई दर्शन है और नाही कोई प्रभाव।