(Advisornews.in)
सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
जैसे-जैसे दिन गुजर रहे है, मध्यप्रदेश के चुनाव में रणनीतिक तौर पर अलग-अलग परिवर्तन नज़र आ रहे है। अलग-अलग संस्थाओं, राजनैतिक दलों और राजनीति के दलालों द्वारा कराये जा रहें सर्वेक्षणों के परिणाम पिछले 15 दिनों के दौरान चढ़ाव की ओर नहीं उतार पर हैं। भले ही यह परिवर्तन छोटा हो, पर आंतरिक रूप से दोनों ही राजनैतिक दलों में चल रही उठा-पटक लगभग फर्जी कहें जाने वाले इस सर्वेक्षणों में संदेह की परिधि में है। इन सर्वेक्षणों के परिणामों से दोनों दलों के प्रभावशाली नेता अपने-अपने हाई कमान को सब्जबाघ दिखाने में लगे हुये हैं। तो दोनों ही दलों के शीर्ष आकलनकर्ता राजनीति की इस चालबाजी को राजनैतिक दलों पर से घटते जनता के विश्वास के तौर पर देख रहें है।
सर्वेक्षणों के परिणाम कांगे्रस को यह अति आत्मविश्वास दे रहें हैं 120 नहीं, 150 नहीं, कांग्रेस कुछ न करें तो भी 180 सीटों पर जाकर ठहरती है। कुल मिलाकर कांग्रेस की इतनी बड़ी बढ़त की संभावना और उसके प्रादेशिक नेताओं का राजनैतिक आचरण दल के अंदर चल रहें व्यक्तिगत लाभ के षड़यंत्र सभी कुछ विपरीत है। इसके बावजूद कांग्रेस 120 से 180 के मध्य की उम्मीद लगाकर अपनी रणनीति को क्रियान्वित कर रही है। यह बात अलग है कि राजनैतिक रूप से चुनावी तैयारियों को लेकर कांग्रेस कोई ऐसा गंभीर कार्य नहीं कर रही है जिससे कुटनीतिक दृष्टि से कांग्रेस की भविष्य की रणनीति से जोड़कर देखा जा सकें। अलग-अलग क्षेत्रों में कांग्रेसी नेताआों के मध्य आंतरिक विद्रोह के संकेत मौजूद है, जो चुनाव के पूर्व पार्टी के लिये सर दर्द बन सकते है। परंतु सर्वेक्षण कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस को शीर्ष पर बिठा रहा रहा है, इन स्थितियों में कार्यकर्ता से लेकर छोटे-बडे सभी नेता बस शपथ ग्रहण की तारिख का इंतजार कर रहें हैं।
दूसरी ओर भाजपा शिवराज सिंह के वायदों और मंच से हो रही नाटकीय घोषणाओं को अब अपना आधार मान रही है। इन घोषणाओं के मध्य पार्टी के छोटे-बडे नेताओं के बीच चल रहा विवाद और आंतरिक मतभेद पार्टी को प्राथमिक नज़र नहीं आ रहें। सिंधिया समर्थकों के तेवर पिछले उपचुनाव के तरह इस बार भी पूरे अधिकारों के साथ संघ की वरिष्ठता को दर किनार कर प्रभावी ढंग से सामने आ रहे है। भाजपा के कितने बड़े नेता इस आंतरिक लड़ाई में जीवन भर के लिये अपाहिज बन जायेंगे इसका अनुमान अभी किसी को नहीं है। शक्ति परीक्षण का दौर इस तरह जारी है कि मंच पर लगभग नृत्य करते हुये मुख्यमंत्री की प्रभावी घोषणाएं भी संशय के दायरे में बनी हुई है। राज्य में बजट है नहीं और घोषणाओं का अम्बार इस तरह लग रहा है मानों एक रात में ही सब कुछ बेच कर मध्यप्रदेश को शिवराज सिंह स्वर्ग से सुन्दर घोषित कर देंगे। सर्वेक्षणों का प्रभाव भाजपा पर भी पड़ रहा है परंतु भाजपा इसे फर्जी करार देकर केवल अपने पक्ष में आने वाले परिणामों को भी सच मान नहीं है। संघ की कितनी भूमिका इन चुनाव में भाजपा के पक्ष में होगी इसका आकलन चुनाव के समय पर ही किया जा सकेगा। वैसे भाजपा के कई वरिष्ठ नेता इन चुनावी माहौल को पार्टी के पक्ष में नहीं मान पा रहे। यह कथन बहुत महत्वपूर्ण है कि 20 साल में भाजपा में और कुछ पाया हो या खोया न हो एक राजनैतिक दल के रूप में गंभीर आचरण करने वाली पार्टी का ओहदा जरूर गवां दिया है। राज्य की समस्या यथावत है नई घोषणाओं की पूर्ति के लिए आज भी पैसा नहीं है। फिर भी एक नौटंकी मंच पर चल रही है, जिसमें मुख्यमंत्री कभी लाड़ले भांजे-भांजियों कभी लाड़ली बहनों के पक्ष में बेसुरा राग गा-गाकर व्यक्त कर रहे हैं, तो दूसरे मंच पर कांग्रेस वरिष्ठ कहें जाने वाले नेता बिना किसी सिर पैर के दावे करके भाजपा से दो कदम आगे घोषणा करने में व्यस्त है। तो वहीं कांग्रेस का चाणक्य कांग्रेस को भाड़ में डालने की घोषणा कर रहा है। यह चुनाव आश्वासनों और घोषणाओं के मामले में पूरी तरह फर्जी और औचित्यहीन है यह तय है।