(Advisornews.in)

सुधीर पाण्डे
भोपाल(एडवाइजर):
जैसा की तय था कि विधानसभा के चुनाव के करीब आते-आते मध्यप्रदेश में सक्रिय दोनों ही राजनैतिक दलों में आतंरिक मतभेद और प्रभावशील नेताओं द्वारा वर्चस्व स्थापित किये जाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही कार्यकर्ता संशय में है कि वे राजनैतिक गतिविधियों में संलग्न हो या फिर दोनों ही पार्टियों मे शामिल किसी भी गुट को अपना सब कुछ मान ले। गतिविधियों में अखिल भारतीय स्तर पर राज्य के ओरा प्रभावशील कहें जाने वाले नेताओं को दिल्ली आंमत्रित कर अखिल भारतीय अध्यक्ष के सामने चुनाव की तैयारियों का विश्लेषण किया। 
बताते है कि कमलनाथ ने मध्यप्रदेश कांग्रेस की ओर से तीन अलग-अलग सर्वेक्षण प्रस्तुत किये, जिनके परिणाम उत्साहवर्धक थे। राहुल गांधी ने संभवतः इन्हीं सर्वेक्षण के आधार पर यह दावेदारी भी कि मध्यप्रदेश कांग्रेस 150 सीट जीतेगी, परंतु यह दावा व्यवहारिकता की कसौटी में खरा उतरता हुआ नज़र नहीं आ रहा है। उन स्थितियों में जब 16 लोगों की बैठक में जीतू पटवारी जैसे उत्साही और युवा विधायक को बुलाया ही नहीं जाता। आदिवासी समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले उमंग सिंगार पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले कमलेश्वर पटेल इस 16 लोगों के गिरोह में शामिल ही नहीं किये जाते। केवल दावेदारी के आधार पर और तीन नहीं तीस सर्वेक्षणों की रिपोर्ट भी यदि 150 विधायक गिन रही है तो उसे सच नहीं माना जा सकता। 
कांग्रेस की इस बैठक से जो परिणाम निकालने थे, नहीं निकल सकें। इसका प्रमुख कारण हाई कमान का राज्य की राजनीति एवं सामाजिक स्थितियों से अंजान रहना भी है और इस महत्वपूर्ण बैठक चुन-चुन कर केवल अपने को आमंत्रित करने की मध्यप्रदेश कांग्रेस की नियत का भी है। 
दूसरी ओर भाजपा अपने अंतर कलह से जुझ रही है। एक रात ख़बर चलती है कि बीडी शर्मा गये और उनके स्थान पर प्रहलाद पटेल आ गये। पूरे राज्य में भाजपा के नेता इन नये समीकरण के आधार पर अपने रणनीति बनाने लगते है। दूसरे ही पल एक प्रश्न खड़ा हो जाता है कि एक ही राज्य में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष का पद केवल पिछड़े वर्ग को ही कैसे दिया जा सकता है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि प्रहलाद पटेल के आने के साथ ही साथ राज्य में मुख्यमंत्री भी बदला जायेगा। स्वयं भाजपा के वरिष्ठ नेता मानते है कि शिवराज जिस शैली में और जितनी अदाओं के साथ चुनावी मंच को रंगमंच बनाकर अभियन के साथ-साथ हवाई वायदे कर रहे हैं वो कर पाना किसी नये मुख्यमंत्री के लिये संभव नहीं है। परिणामतः इस ख़बर पर तत्काल रोक लगती है और राज्य में भाजपा के संगठन की स्थिति पुनः यथावत बन जाती है। भाजपा इस समय सार्वजनीक मंच से इनते वायदे करती जा रही है कि यदि गलती से उसकी सरकार बन गयी तो उसे मध्यप्रदेश के कुल बजट का दुगना बजट चुनाव के बाद राज्य विधानसभा में मध्यप्रदेश के लिये प्रस्तुत करना होगा, जो असंभव है। भाजपा यह जानती है कि इस बार का चुनाव जनआक्रोश और जननिराशा के मध्य उसे लड़ना हैं। महाकाल मंदिर में लगी महाकाल की झांकी में 850 करोड़ से अधिक की मूर्तिया एक आंधी में टूट के बिख़रा जाती है, विपक्ष इसे महाकाल का कोप कहता है। वहीं भाजपा पूरी ताकत से इस कथित भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के लिये अपने बयानों के तीर छोड़ना शुरू कर देती है। परंतु महाकाल के भक्तों के मध्य इस घटना से पड़ने वाले भावनात्मक प्रभाव से भाजपा स्वयं को बचा नहीं पाती है। 
राज्य के अलग-अलग स्थानों में महाकाल लोक, देवी लोक और न जाने कौन-कौन से लोकों की कल्पना करोड़ों रूपये खर्च करके की जा रही है। ये ऐसे स्थान निर्मित किये जा रहें है जहां 30 किमी की गति से चलने वाली तेज हवायें वर्षो पुराने इन मंदिरों के वास्तविक स्वरूप को चंद मिनटों में पुर्नस्थापित कर देती है। नोटंकी का यह सिलसिल इस चुनाव में भाजपा के लिये सबसे बड़ा सिर दर्द है। स्टेज पर अभिनय करके हाथ जोड़के और दण्डवत प्रणाम करके गरीब मतदाताओं को लुभा लेने का यह क्रम आने वाले चुनाव में भाजपा के लिये प्रभावहीन होता जा रहा हैं। 
परंतु यह सत्य है कि कांग्रेस हो भाजपा एक प्रभावशाली नेतृत्व अपने ही दल की गरीमा और गंभीरता को हर अर्थ में समाप्त करने के लिये आमादा है, ताकि आने वाले कल में वह स्वयं को मध्यप्रदेश का नेता प्रमाणित कर सकें।